"रवांडा जनसंहार": अवतरणों में अंतर

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जुलाई के मध्य में इस संहार पर काबू पाया गया। हालांकि, हत्या और बलात्कार की इन वीभत्स घटनाओं ने अफ्रीका की आबादी के बड़े हिस्से के लोगों को बुरी तरह प्रभावित किया है, इस घटना का असर लोगों के दिलो दिमाम पर आज भी बरकरार है।
इस संहार के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ और अमेरिका, ब्रिटेन, बेल्जियम समेत तमाम देशों को उनकी निष्क्रियता के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा। संयुक्त राष्ट्र यहां शांति स्थापना करने में नाकाम रहा। वहीं, पर्यवेक्षकों ने इस नरसंहार को समर्थन देने वाली फ्रांस की सरकार की भी जमकर आलोचना की। [मानवाधिकार]] की पैरोकार अधिकांश पश्चिमी देश इस पूरे मसले को खामोशी से देखते रहे। आधुनिक शोध इस बात पर बल देते हैं सामान्य जातीय तनाव इस [[नरसंहार]] की वजह न देकर इसकी वजह युरोपीय [[उपनिवेशवादी]] देशों अपने स्वार्थों के लिये [[हुतू]] और [[तुत्सी]] लोगों को कृत्रिम रूप से विभाजित किया जाना है। <ref>http://www.bhaskar.com/article/INT-20-years-of-the-rwanda-genocide-4571462-PHO.html</ref>
 
==सन्दर्भ==