"प्रतिपिंड": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Antibody.svg|thumb|255px|प्रत्येक प्रतिपिंड एक विशिष्ट प्रतिजन से जोड़ता है, पारस्परिक रूप से जिस प्रकार ताला और चाबी एक दुसरे से जुड़ते हैं.]]
 
'''प्रतिपिंड (एंटीबॉडी), ('''इम्युनोग्लोबुलिन<ref name="pmid8450761">{{cite journal |author=Litman GW, Rast JP, Shamblott MJ |title=Phylogenetic diversification of immunoglobulin genes and the antibody repertoire |journal=Mol. Biol. Evol. |volume=10 |issue=1 |pages=60–72 |year=1993 |pmid=8450761 |doi=}}</ref>(immunoglobulins),''' ''' संक्षिप्ताक्षर में '''आईजी (Ig)''' ) के नाम से भी जाने जाते हैं, गामा रक्तगोलिका (globulin) प्रोटीन हैं, जो मेरुदण्डीय प्राणियों के रक्त या अन्य शारीरिक तरल पदार्थों में पाए जाते हैं, तथा इनका प्रयोग प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा बैक्टीरिया तथा वायरस(विषाणु) जैसे बाह्य पदार्थों को पहचानने तथा उन्हें बेअसर करने में किया जाता है. ये आम तौर पर पांच संरचनात्मक ईकाइयों से मिल कर बने हैं-जिनमे से प्रत्येक की दो बड़ी व भारी श्रृंखलाएं तथा दो छोटी व हल्की श्रृंखलाएं होती हैं-जो एक साथ मिल कर, उदाहरण के लिए, एक इकाई के साथ मोनोमर्स (monomers), दो इकाईयों के साथ डाइमर्स (dimers) और पांच इकाईयों के साथ मिल कर पेंटामर्स (pentamers) बनाती हैं. प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) एक प्रकार की सफ़ेद रक्त कोशिका से निर्मित होते हैं जिन्हें प्लाविका कोशिका (प्लाज़्मा सेल) कहा जाता है. प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) भारी श्रृंखलाएं तथा प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) भी कई विभिन्न प्रकार के हैं, जो सामूहिक रूप से अलग-अलग प्रकार के ''आइसोटाइप'' (isotypes) बनाते हैं, जो उनकी भारी श्रृंखला पर आधारित होते हैं. स्तनधारियों में पांच विभिन्न प्रकार के प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) ज्ञात हैं, जो अलग अलग कार्य करते हैं, तथा वे विभिन्न प्रकार के बाह्य पदार्थ से लड़ने के लिए उचित प्रतिरक्षा (इम्यून) प्रतिक्रिया को जानने में सहायता करते हैं.<ref name="Market">इलिओनोरा मार्केट, नीना पापावासिलियो (2003) [http://biology.plosjournals.org/perlserv/?request=get-document&amp;doi=10.1371/journal.pbio.0000016 ''वी (डी)जे अनुकूली प्रतिरक्षा प्रणाली के पुनर्संयोजन और विकास'' ] पलोस (PLoS) जीवविज्ञान1(1): e16.</ref>
 
हालांकि सभी प्रतिपिंडों (एंटीबॉडी) की सामान्य संरचना बहुत समान होती है, प्रोटीन की नोक पर छोटा सा क्षेत्र अत्यंत परिवर्तनशील है, जो थोड़ी अलग टिप संरचनाओं वाले लाखों प्रतिपिंडों (एंटीबॉडी) या प्रतिजन (एंटीजन) को अस्तित्व में बने रहने की अनुमति देता है. इस क्षेत्र को अत्याधिक परिवर्तनशील (hypervariable) क्षेत्र के रूप में जाना जाता है. इनमें से प्रत्येक प्रकार (वेरिएंट) अन्य लक्ष्य के साथ जुड़ सकता है जिसे प्रतिजन (एंटीजन) कहते हैं.<ref name="Janeway5">{{cite book | author = [[Charles Janeway|Janeway CA, Jr]] ''et al.'' | title = Immunobiology. | edition = 5th | publisher = Garland Publishing | year = 2001 | url = http://www.ncbi.nlm.nih.gov/books/bv.fcgi?call=bv.View..ShowTOC&rid=imm.TOC&depth=10 | isbn = 0-8153-3642-X }}</ref> प्रतिपिंडों (एंटीबॉडी) में यह विशाल विविधता प्रतिरक्षा प्रणाली को समान रूप से विशाल विविधता वाले प्रतिजनों (एंटीजन) के प्रकारों को पहचानने में सहायता करती है. प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) द्वारा पहचाना गया प्रतिजन (एंटीजन) का विशिष्ट भाग एपिटोप (epitope) कहलाता है. ये एपीटोप अपने प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) के साथ अत्याधिक विशिष्ट प्रक्रिया द्वारा जुड़ जाते हैं, जिसे इंड्यूस्ड फिट (induced fit) कहते हैं, तथा जो शरीर की रचना के लिए जिम्मेवार लाखों विभिन्न अणुओं के बीच प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) को केवल अपने विशिष्ट प्रतिजन (एंटीजन) को पहचानने तथा उसके साथ जुड़ने की अनुमति देते हैं. प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) द्वारा एक प्रतिजन (एंटीजन) की पहचान इसे प्रतिरक्षा (प्रतिरक्षा (immune)) प्रणाली के अन्य भागों द्वारा हमले के लिए ''चिह्नित'' करती है. प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) लक्ष्यों को सीधे भी बेअसर कर सकते हैं, उदाहरण के लिए, रोगज़नक़ (pathogen) के हिस्से के साथ जुड़ कर, जो संक्रमण का कारण बन सकता है.<ref name="Rhoades">{{cite book | author = Rhoades RA, Pflanzer RG | title = Human Physiology| edition = 4th | publisher = Thomson Learning | year = 2002 | isbn = 0-534-42174-1}}</ref>
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|pmid=8476565
|doi=10.1146/annurev.iy.11.040193.001555}}
</ref> बीसीआर(BCR) सरफेस-बाउंड आईजीडी (IgD) या आईजीएम(IgM) से मिल कर बना होता है और इसमें Ig-α और Ig-β हीट्रोडाइमर (heterodimers) जुड़े होते हैं, जो संकेत हस्तांतरित करने में सक्षम हैं.<ref name="isbn0-7817-3650-1">{{cite book
|author=Wintrobe, Maxwell Myer
|authorlink= Maxwell Wintrobe
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| rowspan="5"|[[चित्र:Mono-und-Polymere.svg|170px|कुछ प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) समूह में विकसित हो जाते है जो गुणाकार प्रतिजन अणुओं को जुड़ते हैं.]]
| -
| align="center"| आईजीडी (IgD)
| align="center"| 1
| बी कोशिका (B Cell) पर एंटीजन रिसेप्टर के रूप में काम करता है जो एंटीजन के संपर्क में नहीं आते.<ref name="Geisberger">{{cite journal |author=Geisberger R, Lamers M, Achatz G |title=The riddle of the dual expression of IgM and IgD |journal=Immunology |volume=118 |issue=4 |pages=429–37 |year=2006 |pmid=16895553 |doi=10.1111/j.1365-2567.2006.02386.x |pmc=1782314}}</ref><ref name="Geisberger"/> इसे एंटीमाइक्रोबायल कारकों को उत्पन्न करने के लिए बेसोफिल और मास्ट कोशिकाओं को सक्रिय करते हुए दिखाया गया है.<ref name="Chen">{{cite journal |author=Chen K, Xu W, Wilson M, He B, Miller NW, Bengtén E, Edholm ES, Santini PA, Rath P, Chiu A, Cattalini M, Litzman J, B Bussel J, Huang B, Meini A, Riesbeck K, Cunningham-Rundles C, Plebani A, Cerutti A |title=Immunoglobulin D enhances immune surveillance by activating antimicrobial, proinflammatory and B cell-stimulating programs in basophils |journal=Nature Immunology |volume=10 |issue=8 |pages=889–98 |year=2009 |pmid=19561614 |doi=10.1038/ni.1748 |pmc=2785232}}</ref>
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| बी कोशिकाओं (B cells) की सतह पर तथा बहुत अधिक उत्सुकता के साथ स्रावी रूप में व्यक्त किया जाता है. बी सेल की मध्यस्थता युक्त इम्युनिटी के प्रारंभिक दौर में, पर्याप्त IgG से पहले, रोगज़नक़ों को नष्ट करता है.<ref name="Pier" /><ref name="Geisberger" />
|}
प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) विभिन्न प्रकारों में उपलब्ध हैं जिन्हें आइसोटाइप या वर्ग (classes) कहा जाता है. स्तनधारी भ्रूणों में पांच तरह के प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) आइसोटाइप पाए जाते हैं जिन्हें आईजीए (IgA), आईजीडी (IgD), आईजीई(IgE), आईजीजी (IgG) और आईजीएम(IgM) कहते हैं. इन सबका नाम आईजी/Ig उपसर्ग से शुरू होता है जिसका अर्थ है इम्युनोग्लोबुलिन (immunoglobulin), जो प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) का ही एक अन्य नाम है, और इनके जैविक गुणों, कार्यात्मक स्थानों, तथा अलग अलग प्रतिजनों (एंटीजन) से निपटने की क्षमता में विभिन्नता पाई जाती है, जैसा कि उपरोक्त सारिणी में दर्शाया गया है.<ref name="woof">{{cite journal |author=Woof J, Burton D |title=Human antibody-Fc receptor interactions illuminated by crystal structures |journal=Nat Rev Immunol |volume=4 |issue=2 |pages=89–99 |year=2004 |pmid=15040582 |doi=10.1038/nri1266}}</ref>
 
कोशिका के विकास और सक्रियण के दौरान बी कोशिका (B Cell) के प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) आईसोटाइप परिवर्तित होते हैं. अपरिपक्व बी कोशिकाएं (B cells) (B cells), जो कभी भी एक प्रतिजन (एंटीजन) के संपर्क में नहीं आईं, सीधी सादी बी कोशिकाओं (B cells) (B cells) के रूप में जानी जाती है तथा सेल सरफेस बाउंड फॉर्म (cell surface bound form) में केवल आइजीएम (IgM) आईसोटाइप को ही व्यक्त करती हैं. परिपक्वता की स्थिति तक पहुंचने पर बी कोशिकाएं (B cells) (B cells) आईजीएम(IgM) व आईजीडी (IgD), दोनों को व्यक्त करने लगती हैं-इन दोनों इम्युनोग्लोबुलिन (immunoglobulin) आइसोटाइपों की सह-अभिव्यक्ति बी कोशिका (B Cell) को 'परिपक्व' तथा प्रतिजन (एंटीजन) के लिए प्रतिक्रिया करने के लिए तैयार करती है.<ref name="Goding">{{cite journal |author=Goding J |title=Allotypes of IgM and IgD receptors in the mouse: a probe for lymphocyte differentiation |journal=Contemp Top Immunobiol |volume=8 |issue= |pages=203–43 |year= 1978|pmid=357078}}</ref> बी कोशिका (B cell) सक्रियण के पश्चात् एक प्रतिजन (एंटीजन) के साथ कोशिका से जुड़े प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) के अणु के जुड़ने की प्रक्रिया होती है, जिसके कारण कोशिका विभाजित हो जाती है और एक प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) बनाने वाली कोशिका में परिवर्तित हो जाती है जिसे प्लाविका कोशिका कहते हैं. इस सक्रिय अवस्था में बी कोशिका (B Cell), मेम्बरेन बाउंड फॉर्म (झिल्लीनुमा प्रकार) की बजाए स्राव के रूप में प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) उत्पन्न करने लगती है. सक्रिय बी कोशिकाओं (B cells) की कुछ संतान कोशिकाएं आइसोटाइप परिवर्तन की प्रक्रिया से गुज़रती हैं, एक ऐसा तंत्र जो एंटीबॉडी के आईजीएम(IgM) या आईजीडी (IgD) को दूसरे एंटोबॉडी आइसोटाइप आईजीई/IgE, आईजीए/IgA या आइजीजी/IgG में बदल देता है, जिनकी प्रतिरक्षा प्रणाली में निर्धारित भूमिकाएं होती हैं.
 
== संरचना ==
 
प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) भारी (~150 केडीए/kDa) गोल आकार के प्लाविका प्रोटीन हैं. उनके कुछ अमीनो अम्ल अवशेषों के साथ चीनी की श्रृंखलाएं जुड़ी हैं.<ref>{{cite journal |author=Mattu T, Pleass R, Willis A, Kilian M, Wormald M, Lellouch A, Rudd P, Woof J, Dwek R |title=The glycosylation and structure of human serum IgA1, Fab, and Fc regions and the role of N-glycosylation on Fc alpha receptor interactions |journal=J Biol Chem |volume=273 |issue=4 |pages=2260–72 |year=1998 |pmid=9442070 |doi=10.1074/jbc.273.4.2260}}</ref> दूसरे शब्दों में, प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) ग्लाइकोप्रोटीन (glycoprotein) हैं. प्रत्येक प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) की मूल कार्यात्मक इकाई एक इम्यूनोग्लोबुलिन (आईजी/Ig) मोनोमर (जिसमे केवल एक आईजी/Ig इकाई शामिल है) होती है; स्रावित एंटीबॉडी आईजीए/IgA की तरह दो आईजी/Ig इकाइयों के साथ डाईमरिक (dimeric), टेलीओस्ट मछली के आईजीएम(IgM) की तरह चार आईजी/Ig इकाइयों के साथ टेट्रामेरिक (tetrameric) या स्तनधारी के आईजीएम(IgM) की तरह पांच आईजी/Ig इकाइयों के साथ पेंटामेरिक (pentameric) हो सकते हैं.
प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) के अस्थिर हिस्से इसके वी/V क्षेत्र और स्थिर हिस्से सी/C क्षेत्र हैं.
 
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=== भारी श्रृंखला ===
{{details|इम्यूनोग्लोबुलिन की भारी श्रृंखला}}
स्तनधारियों में पांच तरह की आईजी/Ig भारी श्रृंखलाएं पाई जाती हैं जिन्हें यूनानी भाषा के अक्षरों: α, δ, ε, γ, और μ द्वारा दर्शाया जाता है.<ref name="Janeway5" /> दर्शायी गयी भारी श्रृंखला का प्रकार प्रतिपिंड(एंटीबॉडी) के ''वर्ग'' को परिभाषित करता है; ये श्रृंखलाएं क्रमशः आईजीए(IgA), आईजीडी (IgD), आइजीई(IgE), आइजीजी (IgG), व आईजीएम(IgM) में पाई जाती हैं.<ref name="Rhoades" /> विशिष्ट भारी श्रृंखलाएं आकार तथा संरचना में भिन्न होती हैं; α और γ में लगभग 450 अमीनो अम्ल होते हैं, जबकि μ और ε में लगभग 550 अमीनो अम्ल होते हैं.<ref name="Janeway5" />
[[चित्र:Immunoglobulin basic unit.svg|thumb|1.फैब रीजन2.ऍफ़सी रीजन3.एक परिवर्तनशील (वीएल) और एक निरंतर (सीएल) प्रभाव क्षेत्र के साथ भारी श्रृंखला,एक कोर क्षेत्र, और दो से अधिक स्थिर (CH2 और CH3) प्रभाव क्षेत्र.4.एक परिवर्तनशील (वीएल) और एक निरंतर (सीएल) डोमेन5 के साथ हल्की श्रृंखला.प्रतिजन बाध्यकारी साइट (पाराटोप)6.कोर क्षेत्र.]]
 
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कोशिकाओं के बाहर स्वयं को दोहराने वाले रोगकारकों का मुकाबला करने के लिए, प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) उन्हें आपस में इकठ्ठा करने के लिए एक साथ बांध देते हैं, जिससे वे चिपक जाते हैं. चूंकि एक प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) के कम से कम दो पैराटोप (paratope) होते हैं, ये इन प्रतिजनों (एंटीजन) की सतह पर स्थित समान एपिटोप (epitopes) को जोड़ कर कर एक से अधिक प्रतिजन(एंटीजन) को बांध सकते हैं. रोगकारकों (pathogens) की कोटिंग द्वारा, एंटीबॉडी कोशिकाओं में उन प्रेरक कार्यों को रोगकारकों के खिलाफ उत्तेजित करते हैं जो उनका एफसी/Fc क्षेत्र पहचानते हैं.<ref name="Pier" />
 
कोटेड रोगकारकों (pathogens) को पहचानने वाली कोशिकाओं में एफसी/Fc रिसेप्टर होते हैं, जैसा कि नाम से स्पष्ट है - आईजीए(IgA), आइजीजी (IgG) और आइजीई(IgE) प्रतिपिंडों (एंटीबॉडी) के एफसी/Fc क्षेत्र के साथ प्रक्रिया करते हैं. किसी विशेष कोशिका पर एफसी/Fc रिसेप्टर के साथ किसी विशेष प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) का जुड़ाव उस कोशिका में प्रेरक क्रिया को बढ़ावा देता है, फैगोसाइट (phagocytes) फैगोसाइटोस (phagocytose) हो जाएगा, मास्ट कोशिकाएं और न्यूट्रोफिल्स (neutrophils) डिग्रेन्युलेट हो जायेंगी, प्राकृतिक हत्यारी कोशिकाएं साइटोकिन (cytokines) व साइटोटॉक्सिक (cytotoxic) अणु छोड़ेंगी जो अंततः हमलावर सूक्ष्म जीवों का विनाश करेंगी. एफसी/Fc रिसेप्टर आइसोटाइप पर आधारित हैं जो विशिष्ट रोगकारकों के लिए केवल उपयुक्त प्रतिरक्षा (immune) तंत्र को जागृत करते हैं, जिससे रोगनाशक प्रणाली को अत्यधिक लचीलापन मिलता है.<ref name="Janeway5" />
 
=== प्राकृतिक प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) ===
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=== प्रभाव-क्षेत्र में परिवर्तनशीलता ===
[[चित्र:Hypervariabledomains.PNG|thumb|250px|right|भारी श्रृंखला के हाईपरवेरिएबल क्षेत्रों को लाल में दिखाया गया, पिडीबी (PDB) 1IGT]]
गुणसूत्र का क्षेत्र (locus) जो प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) को कूटबद्ध करता है, विशाल है और इसमें प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) के प्रत्येक प्रभाव क्षेत्र के लिए अलग अलग प्रकार के विशिष्ट जीन पाए जाते हैं, वह स्थान जहां भारी श्रृंखला वाले जीन (आईजीएच@/IGH@) होते हैं, गुणसूत्र 14 पर पाया जाता है और वह स्थान जहां लैम्ब्डा और कप्पा हल्की श्रृंखला वाले जीन (आईजीएल@/IGL@ व आईजीके@/IGK@) होते हैं, मनुष्यों में गुणसूत्र 22 व 2 पर पाया जाता है. इन प्रभाव क्षेत्र में से एक प्रभाव क्षेत्र अस्थिर प्रभाव क्षेत्र कहलाता है जो प्रत्येक प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) की प्रत्येक भारी तथा हल्की श्रृंखला में उपस्थित है, किन्तु विभिन्न बी कोशिकाओं (B cells) द्वारा उत्पन्न विभिन्न प्रतिपिंडों (एंटीबॉडी) में अलग अलग हो सकता है. अस्थिर प्रभाव क्षेत्र के बीच अंतर तीन छल्लों पर स्थित होता है जिन्हें अत्यंत परिवर्तनशील क्षेत्र (hypervariable regions) (एचवी-1/HV-1, एचवी-2/HV-2 या एचवी-3/HV-3) या उत्प्रेरक निर्धारण क्षेत्र (सीडीआर1/CDR1, सीडीआर2/CDR2 या सीडीआर3/CDR3) कहते हैं. अस्थिर प्रभाव क्षेत्र में संरक्षित ढांचों के क्षेत्र सीडीआर/CDR के सहायक होते हैं. भारी श्रृंखला के स्थान पर लगभग 65 विभिन्न तरह के प्रभाव क्षेत्र जीन होते हैं जिनके सीडीआर/CDR अलग-अलग होते हैं. इन जीनों को प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) के दूसरे प्रभाव क्षेत्र के प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) के जीनों के समूह में मिलाने से उच्च विविधता वाले प्रतिपिंडों (एंटीबॉडी) की एक विशाल तादाद उत्पन्न होती है. यह संयोजन वी (डी)जे (V(D)J) पुर्नसंयोजन कहलाता है जिसके बारे में नीचे चर्चा की गयी है.<ref>पीटर परहम. "प्रतिरक्षा प्रणाली 2 एड. गारलैंड विज्ञान: न्यूयॉर्क, 2005. पृष्ठ.47-62</ref>
 
=== वी (डी)जे (V(D)J) पुर्नसंयोजन ===
[[चित्र:VDJ recombination.png|thumb|250px|right|इम्युनोग्लोबुलिन भारी श्रृंखला के वी (डी)जे पुनर्संयोजन का एकांगी अवलोकन]]
इम्युनोग्लोबुलिन का शारीरिक पुर्नसंयोजन, जो ''वी (डी)जे (V(D)J) पुर्नसंयोजन'' के नाम से भी जाना जाता है, विशिष्ट इम्युनोग्लोबुलिन अस्थिर क्षेत्र के निर्माण में शामिल होता है. भारी तथा हल्की श्रृंखला के प्रत्येक इम्युनोग्लोबुलिन का अस्थिर क्षेत्र कई हिस्सों में कूटबद्ध होता है - जिन्हें जीन खंड के रूप में जाना जाता है. इन खण्डों को अस्थिर (वी/V), विविध (डी/D) और संयोजक (जे/J) खंड कहा जाता है.<ref name="namazee" /> वी (V),डी (D) और जे (J) खंड, आईजी/Ig भारी श्रृंखलाओं में पाए जाते हैं, किन्तु केवल वी (V) तथा जे (J) खंड ही आईजी/Ig हल्की श्रृंखलाओं में मिलते हैं. वी (V),डी (D) और जे (J) खण्डों की एकाधिक प्रतियां उपलब्ध होती हैं और स्तनधारियों के जीनोम में अग्रानुक्रम में व्यवस्थित हैं. अस्थि मज्जा में विकसित होने वाली प्रत्येक बी कोशिका (B Cell) क्रम रहित चुनाव तथा एक वी/(V), एक डी (D) और एक जे (J) जीन खण्डों (या हल्की श्रृंखला में एक वी (V) और एक जे (J) जीन खण्डों) के संयोजन द्वारा एक इम्युनोग्लोबुलिन क्षेत्र को जोड़ेगी. क्योंकि प्रत्येक जीन खंड की एकाधिक प्रतियां हैं और प्रत्येक इम्युनोग्लोबुलिन अस्थिर क्षेत्र को बनाने के लिए जीन खण्डों के अलग अलग संयोजनों का प्रयोग किया जा सकता है, यह प्रक्रिया विशाल मात्रा में प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) उत्पन्न करती है जिनमे से प्रत्येक का [[wikt:paratope|पैराटोप]] (paratope) अलग होता है और इसलिए प्रतिजन(एंटीजन) विशेषताओं में विभिन्नता होती है.<ref name="Market" />
 
वी (डी)जे (V(D)J) पुर्नसंयोजन के दौरान बी कोशिका (B Cell) द्वारा, एक कार्यात्मक इम्युनोग्लोबुलिन जीन उत्पन्न करने के बाद, यह किसी और अस्थिर क्षेत्र को व्यक्त नहीं कर सकती (एक प्रक्रिया जो एलेलिक अपवाद (allelic exclusion) के नाम से जानी जाती है), इसलिए प्रत्येक बी कोशिका (B Cell) केवल एक प्रकार की अस्थिर श्रृंखलाओं वाले प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) उत्पन्न कर सकती है.<ref name="Janeway5" /><ref>{{cite journal |author=Bergman Y, Cedar H |title=A stepwise epigenetic process controls immunoglobulin allelic exclusion |journal=Nat Rev Immunol |volume=4 |issue=10 |pages=753–61 |year=2004 |pmid=15459667 |doi=10.1038/nri1458}}</ref>
 
=== दैहिक अतिउत्परिवर्तन एवं आकर्षण (एफिनिटी) की परिपक्वता ===
पंक्ति 156:
एंटीजन से सक्रियण के बाद, बी कोशिकाएं (B cells) [[कोशिका विभाजन|संख्या में तेज़ी से बढ़ने]] लगती हैं. इन तेज़ी से विभाजित होती कोशिकाओं में, भारी तथा हल्की श्रृंखलाओं के अस्थिर प्रभाव क्षेत्र को कूटबद्ध करने वाले जीन एक प्रक्रिया द्वारा उच्च दर के परिवर्तन बिंदु से गुज़रते हैं, जिसे ''सोमेटिक हाइपरम्यूटेशन'' (somatic hypermutation) (एसएचएम/SHM) कहा जाता है. एसएचएम/SHM के परिणामस्वरूप प्रत्येक कोशिका डिवीजन में प्रति अस्थिर जीन लगभग एक न्युक्लियोटाइड बदलता है.<ref name="diaz" /> परिणामस्वरूप, कोई भी संतान बी कोशिकाएं (B cells) अपनी प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) श्रृंखलाओं के विभिन्न प्रभाव क्षेत्रों में मामूली अमीनो अम्ल अंतर हासिल करेगी.
 
इससे प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) समूह की विविधता बढती है और यह प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) द्वारा प्रतिजन(एंटीजन) को आकर्षित करने की क्षमता को प्रभावित करता है.<ref>{{cite journal |author=Honjo T, Habu S |title=Origin of immune diversity: genetic variation and selection |journal=Annu Rev Biochem |volume=54 |issue= |pages=803–30 |year=1985 |pmid=3927822 |doi=10.1146/annurev.bi.54.070185.004103}}</ref> किसी बिंदु पर परिवर्तनों के कारण ऐसे प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) उत्पन्न होंगे जिनकी मूल प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) की अपेक्षा अपने प्रतिजन(एंटीजन) से प्रतिक्रिया क्षमता कमज़ोर (कम आकर्षण) होगी और कुछ परिवर्तन शक्तिशाली प्रतिक्रिया (उच्च आकर्षण) वाले प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) उत्पन्न करेंगे.<ref name="orguil">{{cite journal |author=Or-Guil M, Wittenbrink N, Weiser AA, Schuchhardt J |title=Recirculation of germinal center B cells: a multilevel selection strategy for antibody maturation |journal=Immunol. Rev. |volume=216 |issue= |pages=130–41 |year=2007 |pmid=17367339 |doi=10.1111/j.1600-065X.2007.00507.x}}</ref> बी कोशिकाएं (B cells) जो अपनी सतह पर उच्च आकर्षण वाले प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) व्यक्त करती हैं, उन्हें दूसरी कोशिकाओं के साथ प्रतिक्रिया के दौरान जीवित रहने के मज़बूत संकेत मिलेंगें जबकि कम आकर्षण वाले प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) को यह संकेत नहीं मिलेंगे और एपॉपटोसिस (apoptosis) द्वारा समाप्त हो जाएंगे.<ref name="orguil" /> इस प्रकार प्रतिजन(एंटीजन) के प्रति उच्च आकर्षण वाले प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) व्यक्त करने वाली बी कोशिकाएं (B cells), कार्य तथा जीवन की दौड़ में कम आकर्षण वाले प्रतिपिंडों (एंटीबॉडी) को पछाड़ देंगी. अधिक जुड़ाव आकर्षण वाले एंटीबॉडी उत्पन्न करने की प्रक्रिया को ''एफिनिटी मैच्योरेशन'' कहा जाता है. एफिनिटी मैच्योरेशन परिपक्व बी कोशिकाओं (B cells) में वी (डी)जे (V(D)J) पुर्नसंयोजन के बाद होता है और यह सहायक टी (T) कोशिकाओं से मिलने वाली सहायता पर निर्भर है.<ref>{{Cite journal | author = Neuberger M, Ehrenstein M, Rada C, Sale J, Batista F, Williams G, Milstein C |title=Memory in the B-cell compartment: antibody affinity maturation |journal=Philos Trans R Soc Lond B Biol Sci |volume=355 |issue=1395 |pages=357–60 |year=2000 |month=March |pmid=10794054 |pmc=1692737 |doi=10.1098/rstb.2000.0573}}</ref>
[[चित्र:Class switch recombination.png|thumb|250px|right|मेकॉनिस्म ऑफ़ क्लास स्विच रीकॉमबीनेशन दाट अल्लौज़ आइसोतैप स्विचिंग इन अक्तिवेटेड बी सेल्ज़]]
 
=== वर्ग परिवर्तन ===
 
आइसोटाइप या वर्ग परिवर्तन एक जैविक प्रक्रिया है जो बी कोशिकाओं (B cells) के सक्रिय होने के बाद घटित होती है तथा जो कोशिका को विभिन्न वर्गों के प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) (आईजीए(IgA), आइजीई(IgE) या , आइजीजी (IgG)) उत्पन्न करने की अनुमति देती है.<ref name="Market" /> प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) के विभिन्न वर्गों और प्रेरक कार्यों को इम्युनोग्लोबुलिन की भारी श्रृंखला के 'स्थिर' (C) क्षेत्रों द्वारा परिभाषित किया जाता है.प्रारम्भ में सीधी सादी बी कोशिकाएं (B cells) समान एंटीजन जुड़ाव क्षेत्रों के साथ केवल कोशिका सतह आईजीएम(IgM) व आईजीडी (IgD) को ही व्यक्त करती हैं. प्रत्येक आइसोटाइप एक अलग कार्य के लिए अनुकूलित है, इसलिए सक्रियण के पश्चात् एक प्रतिजन(एंटीजन) को प्रभावशाली ढंग से समाप्त करने के लिए आइजीजी (IgG), आईजीए(IgA) या आइजीई(IgE) उत्प्रेरक सुविधा युक्त एक प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) की आवश्यकता हो सकती है. वर्ग परिवर्तन समान रूप से सक्रिय बी कोशिका (B Cell) की विभिन्न संतान कोशिकाओं को विभिन्न प्रकारों के आइसोटाइप उत्पन्न करने की अनुमति देता है. वर्ग परिवर्तन के दौरान, प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) भारी श्रृंखला का केवल स्थिर क्षेत्र बदलता है, अस्थिर क्षेत्र या विशेष रूप से प्रतिजन(एंटीजन) अपरिवर्तित रहते हैं. इस प्रकार एकल बी कोशिका (B Cell) के वंशज समान प्रतिजन(एंटीजन) के लिए विशिष्ट किन्तु प्रत्येक एंटिजेनिक चुनौती के लिए उपयुक्त प्रेरक क्रिया उत्पन्न करने की क्षमता के साथ प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) उत्पन्न कर सकते हैं. वर्ग परिवर्तन साइटोकिन्स (cytokines) द्वारा शुरू होता है, उत्पन्न होने वाले आइसोटाइप इस बात पर निर्भर करते हैं कि बी कोशिकाओं (B cells) के वातावरण में कौन से साइटोकिन्स (cytokines) मौजूद हैं.<ref>{{cite journal |author=Stavnezer J, Amemiya CT |title=Evolution of isotype switching |journal=Semin. Immunol. |volume=16 |issue=4 |pages=257–75 |year=2004 |pmid=15522624 |doi=10.1016/j.smim.2004.08.005}}</ref>
 
भारी श्रृंखला जीन स्थान (locus) में वर्ग परिवर्तन पुनर्संयोजन (CSR) तंत्र द्वारा वर्ग परिवर्तन होता है . यह तंत्र संरक्षित न्युक्लियोटाइड रूपांकनों पर निर्भर करता है, जिन्हें ''स्विच (एस/S) क्षेत्र'' कहते हैं तथा जो प्रत्येक स्थिर क्षेत्र जीन के [[डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक अम्ल|डीएनए (DNA)]] अपस्ट्रीम में (δ-श्रृंखला को छोड़ कर) पाया जाता है. दो चुने हुए एस/S क्षेत्रों में एंजाइमों की श्रृंखला की गतिविधि द्वारा डीएनए (DNA) किनारे तोड़े जाते हैं.<ref>{{cite journal |author=Durandy A |title=Activation-induced cytidine deaminase: a dual role in class-switch recombination and somatic hypermutation |journal=Eur. J. Immunol. |volume=33 |issue=8 |pages=2069–73 |year=2003 |pmid=12884279 |doi=10.1002/eji.200324133}}</ref><ref>{{cite journal |author=Casali P, Zan H |title=Class switching and Myc translocation: how does DNA break? |journal=Nat. Immunol. |volume=5 |issue=11 |pages=1101–3 |year=2004 |pmid=15496946 |doi=10.1038/ni1104-1101}}</ref> अस्थिर प्रभाव क्षेत्र एक्सॉन (exon) को वांछित स्थिर क्षेत्र (γ, α या ε) से गैर समरूप सिरे जोड़ना (non-homologous end joining) (NHEJ) नामक प्रक्रिया द्वारा पुनः जोड़ा जाता है. इस प्रक्रिया का परिणाम एक इम्युनोग्लोबुलिन जीन के रूप में सामने आता है जो अलग आइसोटाइप के प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) को कूटबद्ध करता है.<ref>{{cite journal |author=Lieber MR, Yu K, Raghavan SC |title=Roles of nonhomologous DNA end joining, V(D)J recombination, and class switch recombination in chromosomal translocations |journal=DNA Repair (Amst.) |volume=5 |issue=9-10 |pages=1234–45 |year=2006 |pmid=16793349 |doi=10.1016/j.dnarep.2006.05.013}}</ref>
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स्तनधारियों में प्रतिजन(एंटीजन) डाल कर विशेष प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) उत्पन्न किये जा रहे हैं जैसे प्रतिपिंडों (एंटीबॉडी) की छोटी मात्रा के लिए चूहे या खरगोश या बड़ी मात्रा के लिए बकरी, भेड़ या घोड़े का प्रयोग किया जाता है. इन जानवरों से निकाले गये रक्त के [[प्लाविका|सीरम]] में ''पॉलीक्लोनल एंटीबॉडी'' - एकाधिक प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) जो समान प्रतिजन(एंटीजन) से जुड़ते हैं - होते हैं, जिन्हें अब एंटीसीरम कहा जा सकता है. अंडे की जर्दी में पॉलीक्लोनल प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) उत्पन्न करने के लिए भी मुर्गियों को एंटीजन के इंजेक्शन लगाए जाते हैं.<ref>{{cite journal |author=Tini M, Jewell UR, Camenisch G, Chilov D, Gassmann M |title=Generation and application of chicken egg-yolk antibodies |journal=Comp. Biochem. Physiol., Part a Mol. Integr. Physiol. |volume=131 |issue=3 |pages=569–74 |year=2002 |pmid=11867282 |doi=10.1016/S1095-6433(01)00508-6}}</ref> प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) जो एक प्रतिजन(एंटीजन) के एकल एपिटोप (epitope) के लिए विशिष्ट हो, को प्राप्त करने के लिए जानवर से एंटीबॉडी-स्रावित करने वाले लिम्फोसाइट अलग किये जाते हैं तथा उन्हें कैंसर कोशिका लाइन के साथ मिला कर अमर किया जाता है. इन मिली हुई कोशिकाओं को हाइब्रिडोमा कहा जाता है, और ये लगातार वृद्धि करेंगी तथा उत्तकों में प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) का स्राव करेंगी. समान प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) उत्पन्न करने वाली कोशिका क्लोन उत्पन्न करने के लिए एकल हाइब्रिडोमा कोशिकाएं डिल्यूशन क्लोनिंग द्वारा अलग की जाती हैं; ये प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) ''मोनोक्लोनल एंटीबॉडी'' कहलाते हैं.<ref>{{cite journal |author=Cole SP, Campling BG, Atlaw T, Kozbor D, Roder JC |title=Human monoclonal antibodies |journal=Mol. Cell. Biochem. |volume=62 |issue=2 |pages=109–20 |year=1984 |pmid=6087121 |doi=10.1007/BF00223301}}</ref> पॉलीक्लोनल और मोनोक्लोनल एंटीबॉडी को अक्सर प्रोटीन A/G या एंटीजन एफिनिटी क्रोमैटोग्राफी द्वारा शुद्ध किया जाता है.<ref>{{cite journal |author=Kabir S |title=Immunoglobulin purification by affinity chromatography using protein A mimetic ligands prepared by combinatorial chemical synthesis |journal=Immunol Invest |volume=31 |issue=3-4 |pages=263–78 | year = 2002 |pmid=12472184 |doi=10.1081/IMM-120016245}}</ref>
 
अनुसंधान में, शुद्ध एंटीबॉडी का उपयोग कई अनुप्रयोगों में किया जाता है. आम तौर पर इनका सबसे अधिक प्रयोग इंट्रासेल्युलर और एक्स्ट्रासेल्युलर प्रोटीन को पहचानने तथा ढूंढने के लिए किया जाता है. एंटीबॉडी का उपयोग, कोशिका के प्रकारों में उनके द्वारा व्यक्त प्रोटीन द्वारा अंतर करने के लिए, फ्लो साइटोमीट्री में किया जाता है; विभिन्न प्रकार की कोशिकाएं अपनी सतह पर अलग अलग अणुओं के अलग अलग गुच्छों के (क्लस्टर) संयोजनों को व्यक्त करती हैं, और अलग प्रकार के इंट्रासेल्युलर और स्रावित किये जाने वाले प्रोटीन का निर्माण करती हैं.<ref name="Stecher">{{cite journal |author=Brehm-Stecher B, Johnson E |title=Single-cell microbiology: tools, technologies, and applications |url=http://mmbr.asm.org/cgi/content/full/68/3/538?view=long&pmid=15353569 | doi = 10.1128/MMBR.68.3.538-559.2004 |journal=Microbiol Mol Biol Rev |volume=68 |issue=3 |pages=538–59 |year=2004 |pmid=15353569 |pmc=515252}}</ref> इनका प्रयोग प्रतिरक्षक अवक्षेपण द्वारा कोशिका अपघटन<ref>{{cite journal |author=Williams N |title=Immunoprecipitation procedures |journal=Methods Cell Biol |volume=62 |issue= |pages=449–53 |year=2000 |pmid=10503210 |doi=10.1016/S0091-679X(08)61549-6}}</ref> में दूसरे अणुओं से प्रोटीनों या उनसे जुडी किसी भी चीज़ (सह-प्रतिरक्षक अवक्षेपण) को अलग करने के लिए, वेस्टर्न ब्लॉट विश्लेषण में इलेक्ट्रोफोरेसिस<ref>{{cite journal |author=Kurien B, Scofield R |title=Western blotting |journal=Methods |volume=38 |issue=4 |pages=283–93 |year=2006 |pmid=16483794 |doi=10.1016/j.ymeth.2005.11.007}}</ref> द्वारा अलग किये गये प्रोटीनों को पहचानने के लिए, तथा प्रतिपिंड ऊतक रसायन विज्ञान या इम्यूनोफ्लोरेसेंस में ऊत्तक के खण्डों में प्रोटीन अभिव्यक्ति को जांचने या सूक्ष्मदर्शी की सहायता से कोशिकाओं के अन्दर प्रोटीन को ढूंढने के लिए भी किया जा रहा है.<ref name="Stecher" /><ref>{{cite journal |author=Scanziani E |title=Immunohistochemical staining of fixed tissues |journal=Methods Mol Biol |volume=104 |issue= |pages=133–40 |year= 1998|pmid=9711649 |doi=10.1385/0-89603-525-5:133}}</ref> एलिसा (ELISA ) और एलीस्पॉट (ELISPOT) तकनीकों का प्रयोग करके एंटीबॉडी की सहायता से भी प्रोटीन ढूंढें और मापे जा सकते हैं.<ref>{{cite journal |author=Reen DJ.|title=Enzyme-linked immunosorbent assay (ELISA)|journal=Methods Mol Biol.|volume=32 |issue= |pages=461–6 |year= 1994|pmid=7951745 |doi=10.1385/0-89603-268-X:461}}</ref><ref>{{cite journal |author=Kalyuzhny AE |title=Chemistry and biology of the ELISPOT assay|journal=Methods Mol Biol.|volume=302 |issue= |pages=15–31 |year= 2005|pmid=15937343 |doi=10.1385/1-59259-903-6:015}}</ref>
 
== संरचना अनुमान ==
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1920 के दशक में, माइकल हाइडलबर्गर और ओसवाल्ड एवरी ने पाया कि प्रतिजनों (एंटीजन) को प्रतिपिंडों (एंटीबॉडी) द्वारा अलग किया जा सकता था और दिखाया कि प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) प्रोटीन के बने थे.<ref>{{cite journal |author=Van Epps HL |title=Michael Heidelberger and the demystification of antibodies |journal=J. Exp. Med. |volume=203 |issue=1 |pages=5 |year=2006 |pmid=16523537 |url=http://www.jem.org/cgi/reprint/203/1/5.pdf |doi=10.1084/jem.2031fta |pmc=2118068}}</ref> 1930 के दशक के अंत में जॉन मर्राक द्वारा प्रतिजन (एंटीजन)-प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) प्रक्रियाओं के जैव रासायनिक गुणों का गहन निरीक्षण किया गया.<ref>{{cite book |last= Marrack | first = JR | title = Chemistry of antigens and antibodies | edition = 2nd | year = 1938 | publisher = His Majesty's Stationery Office | location = London | isbn= | oclc=3220539}}</ref> अगली प्रमुख उपलब्धि 1940 के दशक में मिली, जब लिनस पॉलिंग ने इहर्लिश द्वारा प्रस्तावित लॉक-एंड-की सिद्धांत की यह दिखा कर पुष्टि की कि एंटीबॉडी और एंटीजन की आपसी प्रक्रियाएं उनकी रासायनिक संरचना की बजाए उनके आकार पर अधिक निर्भर थी.<ref>{{cite web |url=http://profiles.nlm.nih.gov/MM/Views/Exhibit/narrative/specificity.html |title=The Linus Pauling Papers: How Antibodies and Enzymes Work |accessdate=2007-06-05}}</ref> 1948 में, एस्ट्रिड फेगरेओस ने पाया कि प्लाविका कोशिकाओं के रूप में बी कोशिकाएं (B cells) प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) उत्पन्न करने के लिए जिम्मेदार थीं.<ref>{{cite journal | author = Silverstein AM | title = Labeled antigens and antibodies: the evolution of magic markers and magic bullets | journal = Nat. Immunol. | volume = 5 | issue = 12 | pages = 1211–7 | year = 2004 | pmid = 15549122 | url = http://users.path.ox.ac.uk/~seminars/halelibrary/Paper%2018.pdf | doi = 10.1038/ni1140}}</ref>
 
आगे का काम प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) प्रोटीन की संरचनाओं की विशेषताओं पर केंद्रित रहा. इन संरचनात्मक अध्ययनों में एक प्रमुख उपलब्धि 1960 के दशक के शुरु में गेराल्ड एडलमैन और जोसेफ गैली द्वारा प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) हल्की श्रृंखलाओं की खोज<ref>{{cite journal |author=Edelman GM, Gally JA |title=The nature of Bence-Jones proteins. Chemical similarities to polypetide chains of myeloma globulins and normal gamma-globulins |journal=J. Exp. Med. |volume=116 |issue= |pages = 207–27 |year=1962 |pmid=13889153 |doi=10.1084/jem.116.2.207 |pmc=2137388}}</ref>, और यह उनकी यह मान्यता थी कि यह प्रोटीन 1845 में हेनरी बेंस जोन्स द्वारा वर्णित बेंस-जोन्स प्रोटीन के समान था.<ref>{{cite journal |author=Stevens FJ, Solomon A, Schiffer M |title=Bence Jones proteins: a powerful tool for the fundamental study of protein chemistry and pathophysiology |journal=Biochemistry |volume=30 |issue=28 |pages=6803–5 |year=1991 |pmid=2069946 |doi=10.1021/bi00242a001}}</ref> एडलमैन ने खोज की कि एंटीबॉडी डाइसल्फाइड बंधन से जुडी भारी तथा हल्की श्रृंखलाओं से बने हैं. लगभग इसी समय, रोडनी पोर्टर द्वारा आईजीजी (IgG) के एंटीबॉडी बाइंडिंग (Fab) तथा एंटीबॉडी टेल (एफसी/Fc) क्षेत्रों का वर्णन किया गया.<ref name="edel">{{cite journal |author=Raju TN |title=The Nobel chronicles. 1972: Gerald M Edelman (b 1929) and Rodney R Porter (1917-85) |journal=Lancet |volume=354 |issue=9183 |pages=1040 |year=1999 |pmid=10501404 |doi=}}</ref> साथ मिल कर, इन वैज्ञानिकों ने आईजीजी (IgG) की संरचना तथा पूरे अमीनो अम्ल क्रम की खोज की, एक ऐसी उपलब्धि जिसके लिए उन्हें संयुक्त रूप से 1972 में शरीर विज्ञान या औषधि का नोबल पुरस्कार मिला.<ref name="edel" /> जबकि अधिकांश शुरूआती अध्ययन आईजीएम(IgM) तथा आईजीजी (IgG) पर केन्द्रित थे, 1960 के दशक में दूसरे इम्युनोग्लोबुलिन आइसोटाइप की पहचान की गयी: थॉमस टोमासी ने स्रावी प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) आईजीए (IgA)<ref>{{cite journal |author=Tomasi TB |title=The discovery of secretory IgA and the mucosal immune system |journal=Immunol. Today |volume=13 |issue=10 |pages=416–8 |year=1992 |pmid=1343085 |doi=10.1016/0167-5699(92)90093-M}}</ref> की खोज की तथा डेविड रोवे{{dn}} व जॉन फाहे{{dn}} ने आईजीडी (IgD)<ref>{{cite journal |author=Preud'homme JL, Petit I, Barra A, Morel F, Lecron JC, Lelièvre E |title=Structural and functional properties of membrane and secreted IgD |journal=Mol. Immunol. |volume=37 |issue=15 |pages=871–87 |year=2000 |pmid=11282392 |doi=10.1016/S0161-5890(01)00006-2}}</ref> की पहचान की, तथा आईजीई (IgE) की पहचान एलर्जी प्रतिक्रियाओं में शामिल प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) के एक वर्ग के रूप में किकिशिगे इशीज़ाका व तेरुकी इशीज़ाका द्वारा की गयी.<ref>{{cite journal |author=Johansson SG |title=The discovery of immunoglobulin E |journal=Allergy and asthma proceedings : the official journal of regional and state allergy societies |volume=27 |issue=2 Suppl 1 |pages=S3–6 |year=2006 |pmid=16722325}}</ref> इम्युनोग्लोबुलिन जीन के शारीरिक पुर्नसंयोजन के समय इन प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) प्रोटीनों की विशाल विविधता के आधार को पहचानने वाला आनुवांशिक अध्ययन 1976 में सुसुमू तोनेगावा द्वारा किया गया था.<ref>{{cite journal |author=Hozumi N, Tonegawa S |title=Evidence for somatic rearrangement of immunoglobulin genes coding for variable and constant regions |journal=Proc. Natl. Acad. Sci. U.S.A. |volume=73 |issue=10 |pages=3628–32 |year=1976 |pmid=824647 |pmc=431171 |doi=10.1073/pnas.73.10.3628}}</ref>
 
== इन्हें भी देखें ==