"विश्वरूप": अवतरणों में अंतर

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अर्जुन नें विश्वरूप में कीटों से लेकर हर प्रकार के जीवों को देखा। भीष्म, द्रोण, कर्ण आदि सभी को देखा तथा हजारों त्रिदेवों को देखा। अर्जुन भगवान के इस विशाल स्वरूप को देखकर भगवान से चतुर्भुज स्वरूप में आने के लिये प्रार्थना करने लगा।
 
अर्जुन बोले "हे जगत्पिता! मैं आपमें सचराचर ब्रह्मांड का दर्शन कर रहा हूँ। मैं आपमें मुनिवरों, देवताओं, कमलासन पर विराजित ब्रह्मा, सपरिवार महादेव तथा दिव्य सर्पों को देख रहा हूँ। आपको अगणित भुजाओं, नेत्रों, पेटों, मुखों वाला देख रहा हूँ। हे परात्पर ब्रह्म! न मुझे आपका अंत दिख रहा है, न ही मध्य तथा न ही आदि (प्रारंभ) दिख रहा है। मैं आपको हजारों सूर्यों से अधिक प्रकाशमय गदा, चक्र, शंख आदि से युक्त देख रहा हूँ। आपको प्रारंभ तथा समाप्ति से रहित, सूर्य तथा चंद्र रूपी नेत्रों वाले, सारे जगत् को अापके तेज से संतृप्त होते हुए देख रहा हूँ।"<ref>[http://hindi.webdunia.com/religion/religion/hindu/geeta/Chapter11_15-31.htm अर्जुन द्वारा भगवान के विश्वरूप का देखा जाना और उनकी स्तुति करना], वेबदुनियाँ</ref>
 
== संदर्भ ==