"शिव कुमार बटालवी": अवतरणों में अंतर
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बाद की जिंदगी में उनके पिता को कादियां में पटवारी की नौकरी मिली और इसी अवधि के दौरान उन्होंने अपना सबसे अच्छा साहित्यिक अवदान दिया. 1960 में उनकी कविताओं का पहला संकलन'' पीड़ां दा परांगा '' (दु:खों का दुपट्टा) प्रकाशित हुआ, जो काफी सफल रहा. 1965 में अपनी महत्वपूर्ण कृति महाकाव्य नाटिका ''लूना'' (1965) के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार पाने वाले वे सबसे कम उम्र के साहित्यकार बन गये<ref>[http://www.sahitya-akademi.gov.in/old_version/awa10316.htm#punjabi साहित्य अकादमी अवॉर्ड - पंजाबी 1957-2007] ''साहित्य अकादमी अवॉर्ड आधिकारिक लिस्टिंग'' .</ref>. काव्य पाठ और अपनी कविता को गाने की वजह से लोगों में वे और उनका काम काफी प्रसिद्ध हुआ.
1967 के प्रारंभ में उन्होंने शादी की और 1968 में [[चण्डीगढ़|चंडीगढ़]] चले गये, जहां वे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में जन संपर्क अधिकरी बने. बाद के वर्षों में वे खराब स्वास्थ्य से त्रस्त रहे, हालांकि उन्होंने बेहतर लेखन जारी रखा. उनके लेखन में उनकी चर्चित मौत की इच्छा हमेशा से स्पष्ट रही है
== व्यक्तिगत जीवन ==
व्यक्तिगत जीवन 5 फ़रवरी 1967 को उनकी शादी [[गुरदासपुर जिला|गुरदासपुर जिले]] के किरी मांग्याल की ब्राह्मण कन्या अरुणा से हुई
== कार्य ==
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* ''अलविदा'' (विदाई) (1974)
* ''शवि कुमार : संपूर्ण काव्य संग्रह '' (संपूर्ण कार्य); लाहौर बुक शॉप, लुधियाना.
* ''विरह दा सुल्तान ''
1993. आईएसबीएन 81-7201-417-1.
* ''लुना'' (अंग्रेजी, बी.एम.भट्टा द्वारा अनुदित, [[भारतीय साहित्य अकादमी|साहित्य अकादमी]], 2005, आईएसबीएन 81-260-1873-9.
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