"श्रीसीतारामकेलिकौमुदी": अवतरणों में अंतर

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'''''श्रीसीतारामकेलिकौमुदी''''' (२००८), शब्दार्थ: ''[[सीता]] और [[राम]] की (बाल) लीलाओं की चन्द्रिका'', [[हिन्दी साहित्य]] की रीतिकाव्य परम्परा में [[ब्रजभाषा]] (कुछ पद [[मैथिली]] में भी) में रचित एक [[मुक्तक]] [[काव्य]] है। इसकी रचना [[जगद्गुरु रामभद्राचार्य]] (१९५०-) द्वारा २००७ एवं २००८ में की गई थी। <ref name="ssrkkprologue1">रामभद्राचार्य २००८, पृष्ठ "क"–"ड़"</ref>काव्यकृति [[वाल्मीकि रामायण]] एवं [[तुलसीदास]] की [[श्रीरामचरितमानस]] के [[बालकाण्ड]] की पृष्ठभूमि पर आधारित है और सीता तथा राम के बाल्यकाल की मधुर केलिओं (लीलाओं) एवं मुख्य प्रसंगों का वर्णन करने वाले मुक्तक पदों से युक्त है । श्रीसीतारामकेलिकौमुदी में ३२४ पद हैं, जो १०८ पदों वाले तीन भागों में विभक्त हैं। पदों की रचना अमात्रिका, कवित्त, गीत, घनाक्षरी, चौपैया, द्रुमिल एवं मत्तगयन्द नामक सात [[प्राकृत]] छन्दों में हुई है।
 
ग्रन्थ की एक प्रति हिन्दी टीका के साथ [[जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय]], [[चित्रकूट]], [[उत्तर प्रदेश]] द्वारा प्रकाशित की गई थी। पुस्तक का विमोचन ३० अक्टूबर २००८ को किया गया था।
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प्रस्तुत काव्य तीन भागों में विभक्त है, जिन्हें कवि ने तीन किरणों के नाम से सम्बोधित किया है। प्रथम किरण [[अयोध्या]] पर केन्द्रित है और इसके वर्ण्यविषय राम जन्म और उनके बाल्यकाल की लीलाएं एवं प्रसंग हैं। द्वितीय किरण मिथिला में केन्द्रित है और सीता के अवतरण और उनकी बालोचित केलिओं एवं प्रसंगों को अत्यन्त सजीवता से प्रस्तुत करती है। तृतीय किरण के पूर्वार्ध में [[नारद मुनि]] द्वारा सीता एवं राम के मध्य परस्पर संदेशों के आदान-प्रदान का वर्णन है तथा उत्तरार्ध राम की अयोध्या से मिथिला की यात्रा का वर्णन करता है और अयोध्या के राजकुमारों का विवाह मिथिला की राजकुमारियों के संग होने के प्रसंग के साथ समाप्त होता है। अधिकांश मुक्तक विविध अलंकारों से सुसज्जित होकर सीता और राम की किसी मनोरम झांकी अथवा उनकी किसी चित्ताकर्षक लीला का वर्णन करते हैं। जबकि [[रामायण]] की प्रमुख घटनाएँ अत्यन्त संक्षेप में सार रूप में प्रस्तुत की गई हैं।.
 
प्रत्येक भाग के अन्त में, १०८ पदों के पश्चात कवि ने १०९ वीं पुष्पिका में फलश्रुति का वर्णन किया है और काव्यकृति के लिए एक सुन्दर [[रूपक]] प्रस्तुत करते हुए अभिलाषा व्यक्त की है कि [[वैष्णव]] रूपी चकोर श्रीसीतारामकेलिकौमुदी की चन्द्रकलाओं का निरन्तर पान करते रहें। [[भारतीय साहित्य]] में, [[चकोर]] पक्षी द्वारा मात्र [[चन्द्रमा]] की किरणों का पान कर जीवन धारण करने का उल्लेख किया जाता है। <ref>मोनियर विलियम्स २००५, पृष्ठ ३८०</ref> यह अन्तिम पद सभी तीन भागों में समान है।
 
=== प्रथम किरण ===
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==== लघुक्षरी पद ====
 
श्रीसीतारामकेलिकौमुदी की द्वितीय किरण में घनाक्षरी [[छन्द]] में रचित तीन पदों (२.३, २.४ तथा २.१८) में केवल लघु अक्षरों का प्रयोग किया गया है। <ref>रामभद्राचार्य २००८, पृष्ठ ८३-८४,९३</ref> एक उदाहरण (२.३) यहाँ द्रष्टव्य है –
 
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