"नमाज़": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
Sanjeev bot (वार्ता | योगदान) छो सन्दर्भ की स्थिति ठीक की। |
Sanjeev bot (वार्ता | योगदान) छो बॉट से अल्पविराम (,) की स्थिति ठीक की। |
||
पंक्ति 47:
रसूल ख़ुदा सिल्ली अल्लाह अलैहि आला वसल्लम ने भी इसी बात की तरफ़ इशारा फ़रमाया है:
{{Quotation|नमाज़ और हज-ओ-तवाफ़ को इस लिए वाजिब क़रार दिया गया है ताकि ज़िक्र ख़ुदा (याद ख़ुदा) मुहक़्क़िक़ हो सके}}
शहीद महिराब
{{Quotation|ख़ुदावंद आलम ने नमाज़ को इस लिए वाजिब क़रार दिया है ताकि इंसान तकब्बुर से पाक-ओ-पाकीज़ा हो जाएनमाज़ के ज़रीये ख़ुदा से क़रीब हो जाओ। नमाज़ गुनाहों को इंसान से इस तरह गिरा देती है जैसे दरख़्त से सूखे पत्ते गिरते हैं,नमाज़ इंसान को (गुनाहों से) इस तरह आज़ाद कर देती हैजैसे जानवरों की गर्दन से रस्सी खोल कर उन्हें आज़ाद किया जाता है हज़रत अली रज़ी अल्लाह अन्ना}}
हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलाम अल्लाह अलैहा मस्जिद नबवी में अपने तारीख़ी ख़ुतबा में इस्लामी दस्तो रात के फ़लसफ़ा को ब्यान फ़रमाते हुए नमाज़ के बारे में इशारा फ़रमाती पैं:
पंक्ति 55:
इमाम रज़ा अलैहि अस्सलाम फ़लसफ़ा-ए-नमाज़ के सिलसिला में यूं फ़रमाते हैं:
{{Quotation|नमाज़ के वाजिब होने का सबब,ख़ुदावंद आलम की ख़ुदाई और उसकी रबूबियत का इक़रार, शिर्क की नफ़ी और इंसान का ख़ुदावंद आलम की बारगाह में ख़ुशू-ओ-ख़ुज़ू के साथ खड़ा होना है। नमाज़ गुनाहों का एतराफ़ और गुज़शता गुनाहों से तलब अफ़व और तौबा है। सजदा, ख़ुदावंद आलम की ताज़ीम-ओ-तकरीम के लिए ख़ाक पर चेहरा रखना है}}
नमाज़ सबब बनती है कि इंसान हमेशा ख़ुदा की याद में रहे और उसे भूले नहीं
=== नमाज़ अक़ल और वजदान के आईना में ===
इस्लामी हक़ के इलावा कि जो मुस्लमान इस्लाम की वजह से एक दूसरे की गर्दन पर रखते हैं एक दूसरा हक़ भी है जिस को इंसानी हक़ खा जाता है जो इंसानियत की बिना पर एक दूसरे की गर्दन पर है। उन्हें इंसानी हुक़ूक़ में से एक हक़, दूसरों की मुहब्बत और नेकियों और एहसान का शुक्रिया अदा करना है अगरचे मुस्लमान ना हूँ। दूसरों के एहसानात और नेकियां हमारे ऊपर शुक्र यए की ज़िम्मेदारी को आइद करती हैं और ये हक़ तमाम ज़बानों, ज़ातों, मिल्लतों और मुल्कों में यकसाँ और मुसावी है। लुतफ़ और नेकी जितनी ज़्यादा और नेकी करने वाला जितना अज़ीम-ओ-बुज़ुर्ग हो शुक्र भी इतना ही ज़्यादा और बेहतर होना चाहिए।
|