"नादिर शाह": अवतरणों में अंतर

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=== भारत पर आक्रमण ===
पश्चिम की दिशा में संतुष्ट होने के बाद नादिर शाह ने पूरब की ओर अपना ध्यान केंद्रित किया। सैन्य खर्च का भार जनता पर पड़ा। उसने [[कन्दहार]] पर अधिकार कर लिया। इस बात का बहाना बना कर कि मुगलों ने अफ़गान भगोड़ों को शरण दे रखी है उसने मुगल साम्राज्य की ओर कूच किया। [[काबुल]] पर कब्जा़ करने के बाद उसने [[दिल्ली]] पर आक्रमण किया। [[करनाल]] में मुगल राजा मोहम्मद शाह और नादिर की सेना के बीच लड़ाई हुई। इसमें नादिर की सेना मुग़लों के मुकाबले छोटी थी पर अपने बारूदी अस्त्रों के कारण फ़ारसी सेना जीत गई। उसके मार्च १७३९ में दिल्ली पहुँचने पर यह अफ़वाह फैली कि नादिर शाह मारा गया। इससे दिल्ली में भगदड़ मच गई और फारसी सेना का कत्ल शुरू हो गया। उसने इसका बदला लेने के लिए दिल्ली में भयानक खूनखराबा किया और एक दिन में कोई २०,००० - २२,००० लोग मार दिए। इसके अलावा उसने शाह से विपुल धनराशि भी ली। मोहम्मद शाह ने सिंधु नदी के पश्चिम की सारी भूमि भी नादिर शाह को दान में दे दी। हीरे जवाहरात का एक ज़खीरा भी उसे भेंट किया गया जिसमें [[कोहेनूर]] (''कूह - ए - नूर'') , ''दरिया - नूर'' और ''ताज - ए - मह'' शामिल थे जिनकी एक अपनी खूनी कहानी है। नादिर को जो सम्पदा मिली वो करीब ७० करोड़ रुपयों की थी। यह राशि अपने तत्कालीन [[सप्तवर्षीय युद|सातवर्षीय युद्ध]] (१७५६-१७६३) के तुल्य था जिसमें [[फ्रांस]] की सरकार ने [[ऑस्ट्रिया]] की सरकार को दिया था। नादिर ने दिल्ली में साम्राज्य विस्तार का लक्ष्य नहीं रखा। उसका उद्देश्य अपनी सेना के लिए आवश्यक धनराशि इकठ्ठा करनी थी जो उसे मिल गई थी। कहा जाता है कि दिल्ली से लौटने पर उसके पास इतना धन हो गया था कि अगले तीन वर्षों तक उसने जनता से कर नहीं लिया था।
 
== दिल्ली के बाद ==