"चण्डी चरित्र": अवतरणों में अंतर

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न डरौं अरि सौं जब जाय लड़ौं, निश्चय कर अपनी जीत करौं,<br /> अरु सिख हों आपने ही मन कौ इह लालच हउ गुन तउ उचरों,<br /> जब आव की अउध निदान बनै अति ही रन मै तब जूझ मरों ॥२३१॥
भाल निपट विशाल शशिमृग मीन खंजन लोचनी,
भाल बदन विशाल कोमल सकल विध्न विमोचनी ।विमोचनी।
सिंह वाहिनी धनुष धारिणी कनक सेवत सोहिनी,
रूण्ड माल अरोल राजत् मुनिन के मन मोहिनी ।मोहिनी।
एक रूप अनेक तेरो मैया गुणन की गिनती नहीं,
कछु ज्ञान अतः ही सुजान भक्तन भाव से विनती करी ।करी।
वर वेष अनूड़ा खड़ग खप्पर अभय अंकुश धारिणी,
कर काज लाज जहाज जननी जनन के हित कारिणी ।कारिणी।
मंद हास प्रकाश चहूं दिस विंध्य वासिनी गाईये,
क्रोध तज अभिमान परिहर दुष्ट बुद्धि नसाईये ।नसाईये।
उठत बैठत चलत सोवत बार बार मनाईये,
चण्ड मुण्ड विनाशिनी जी के चरण हित चित्त लाईये ।लाईये।
चंद्र फल और वृंद होते अधिक आनंद रूप हैं,
सर्व सुख दाता विधाता दर्श पर्श अनूप हैं ।हैं।
तू योग भोग विलासिनी शिव पार्श्व हिम गिरी नंदिनी,
दुरत तुरत निवारिणी जग तारिणी अद्य खंजिनी ।खंजिनी।
आदि माया ललित काया प्रथम मधु कैटभ छ्ले,
त्रिभुवन भार उतारवे को महा महिषासुर मले ।मले।
इंद्र चंद्र कुबेर वरूणो सुरन के आनंद भये,
भुवन चौदह मैया दश दिशन में सुनत ही सब दुख गये ।गये।
धूम्रलोचन भस्म कीनो मैया क्रोध के ‘हुँ’कार सों,
हनी है सेना मैया सकल ताकी सिंह के भभकार सों ।सों।
चण्ड मुण्ड प्रचण्ड दोऊ मैया प्रवल से अति भ्रष्ट हैं,
मुण्ड जिनके किए खण्डन असुर मण्डल दुष्ट हैं ।हैं।
रक्तबीज असुर अधर्मी आयो हैं दल जोड़ के,
शोर कर मरवे को धायो कियो रण घनघोर से ।से।
जय जय भवानी युक्ति ठानी सर्व शक्ति बुलाईके,
महा शुम्भ निशुम्भ योद्धा हन्यो खड़ग् बजाईके ।बजाईके।
परस्पर जब युद्ध माच्यो दिवस सों रजनी भई,
दास कारण असुर मारे मैया पुष्प घन वर्षा भई ।भई।
चित्त लाई चंडी चरित्र पढ़त और सुनत जो निसदिन सदा,
पुत्र मित्र कलात्र सुख सों दुख न आवे डिग कदा ।कदा।
भुक्ति मुक्ति सुबुद्धि बहुधन धान्य सुख संपत्त लिए,
शत्रु नाश प्रकाश दुनिया आनंद मंगल जन्म लहें
 
भाल निपट विशाल शशिमृग मीन खंजन लोचनी,
भाल बदन विशाल कोमल सकल विध्न विमोचनी ।विमोचनी।
सिंह वाहिनी धनुष धारिणी कनक सेवत सोहिनी,
रूण्ड माल अरोल राजत् मुनिन के मन मोहिनी ।मोहिनी।
एक रूप अनेक तेरो मैया गुणन की गिनती नहीं,
कछु ज्ञान अतः ही सुजान भक्तन भाव से विनती करी ।करी।
वर वेष अनूड़ा खड़ग खप्पर अभय अंकुश धारिणी,
कर काज लाज जहाज जननी जनन के हित कारिणी ।कारिणी।
मंद हास प्रकाश चहूं दिस विंध्य वासिनी गाईये,
क्रोध तज अभिमान परिहर दुष्ट बुद्धि नसाईये ।नसाईये।
उठत बैठत चलत सोवत बार बार मनाईये,
चण्ड मुण्ड विनाशिनी जी के चरण हित चित्त लाईये ।लाईये।
चंद्र फल और वृंद होते अधिक आनंद रूप हैं,
सर्व सुख दाता विधाता दर्श पर्श अनूप हैं ।हैं।
तू योग भोग विलासिनी शिव पार्श्व हिम गिरी नंदिनी,
दुरत तुरत निवारिणी जग तारिणी अद्य खंजिनी ।खंजिनी।
आदि माया ललित काया प्रथम मधु कैटभ छ्ले,
त्रिभुवन भार उतारवे को महा महिषासुर मले ।मले।
इंद्र चंद्र कुबेर वरूणो सुरन के आनंद भये,
भुवन चौदह मैया दश दिशन में सुनत ही सब दुख गये ।गये।
धूम्रलोचन भस्म कीनो मैया क्रोध के ‘हुँ’कार सों,
हनी है सेना मैया सकल ताकी सिंह के भभकार सों ।सों।
चण्ड मुण्ड प्रचण्ड दोऊ मैया प्रवल से अति भ्रष्ट हैं,
मुण्ड जिनके किए खण्डन असुर मण्डल दुष्ट हैं ।हैं।
रक्तबीज असुर अधर्मी आयो हैं दल जोड़ के,
शोर कर मरवे को धायो कियो रण घनघोर से ।से।
जय जय भवानी युक्ति ठानी सर्व शक्ति बुलाईके,
महा शुम्भ निशुम्भ योद्धा हन्यो खड़ग् बजाईके ।बजाईके।
परस्पर जब युद्ध माच्यो दिवस सों रजनी भई,
दास कारण असुर मारे मैया पुष्प घन वर्षा भई ।भई।
चित्त लाई चंडी चरित्र पढ़त और सुनत जो निसदिन सदा,
पुत्र मित्र कलात्र सुख सों दुख न आवे डिग कदा ।कदा।
भुक्ति मुक्ति सुबुद्धि बहुधन धान्य सुख संपत्त लिए,
शत्रु नाश प्रकाश दुनिया आनंद मंगल जन्म लहें