"सामवेद संहिता": अवतरणों में अंतर

छोNo edit summary
छो सन्दर्भ की स्थिति ठीक की।
पंक्ति 8:
सामवेद का महत्व इसी से पता चलता है कि गीता में कहा गया है कि -वेदानां सामवेदोऽस्मि। <REF>गीता-अ० १०, श्लोक २२ </REF>। [[महाभारत]] में गीता के अतिरिक्त ''अनुशासन पर्व'' में भी सामवेद की महत्ता को दर्शाया गया है- ''सामवेदश्च वेदानां यजुषां शतरुद्रीयम्''। <REF>म०भा०,अ० १४ श्लोक ३२३ </ref>।[[अग्नि पुराण]] के अनुसार सामवेद के विभिन्न मंत्रों के विधिवत जप आदि से रोग व्याधियों से मुक्त हुआ जा सकता है एवं बचा जा सकता है, तथा कामनाओं की सिद्धि हो सकती है। सामवेद ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग की त्रिवेणी है। ऋषियों ने विशिष्ट मंत्रों का संकलन करके गायन की पद्धति विकसित की। अधुनिक विद्वान् भी इस तथ्य को स्वीकार करने लगे हैं कि समस्त स्वर, ताल, लय, छंद, गति, मन्त्र, स्वर-चिकित्सा, राग नृत्य मुद्रा, भाव आदि सामवेद से ही निकले हैं।
 
सामवेद में ऐसे मन्त्र मिलते हैं जिनसे यह प्रमाणित होता है कि वैदिक ऋषियों को एसे वैज्ञानिक सत्यों का ज्ञान था जिनकी जानकारी आधुनिक वैज्ञानिकों को सहस्त्राब्दियों बाद प्राप्त हो सकी है। उदाहरणतः- इन्द्र ने पृथ्वी को घुमाते हुए रखा है। <ref> सामवेद,ऐन्द्र काण्ड,मंत्र १२१ </ref> चन्द्र के मंडल में सूर्य की किरणे विलीन हो कर उसे प्रकाशित करती हैं। <ref>सामवेद, ऐन्द्र काण्ड, मंत्र १४७ </ref>। साम मन्त्र क्रमांक २७ का भाषार्थ है- यह अग्नि द्यूलोक से पृथ्वी तक संव्याप्त जीवों तक का पालन कर्ता है। यह जल को रूप एवं गति देने में समर्थ है।