"पदार्थ (भारतीय दर्शन)": अवतरणों में अंतर
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महर्षि कणाद ने भौतिक राशियों 1 (अमूर्त) को द्रव्य, [[गुण]], [[कर्म]], सामान्य, विशेष और समवाय के रूप में नामाङ्कित किया है।
यहाँ '[[द्रव्य]]' के अन्तर्गत ठोस ([[पृथ्वी]]), द्रव (अप्), [[ऊर्जा]] (तेजस्), गैस ([[वायु]])
पूर्व में यह कहा गया है कि भौतिकी में अधुनातन 'आत्मा' और 'मन' के विषय में कुछ भी अध्ययन नहीं हुआ है, जब कि वैशेषिक दर्शन इन्हें क्रमश: इन्द्रिय ज्ञान और अनुभव का कारक मानता है, अर्थात् 'आत्मा' प्रेक्षक है और 'मन' अनुभव प्राप्त करने का उसका उपकरण। इस हेतु पदार्थमय संसार की भौतिक राशियों की सीमा से बहिष्कृत रहने पर भी, वैशेषिक दर्शन द्वारा 'आत्मा' और 'मन' को भौतिक राशियों में सम्मिलित करना न्याय संगत प्रतीत होता है, क्योंकि ये तत्व प्रेक्षण और अनुभव के लिये नितान्त आवश्यक हैं। तथापि आधुनिक भौतिकी के अनुसार 'आत्मा' और 'मन' के व्यतिरिक्त, प्रस्तुत प्रबन्ध में 'पृथ्वी' से 'दिक्' पर्यन्त वैशेषिकों के प्रथम सात द्रव्यों की विवेचना करते हुए भौतिकी में उल्लिखित उनके प्रतिरूपों के साथ तुलनात्मक अघ्ययन किया जायेगा।
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[[भौतिकी]] के अनुसार 'पदार्थ' को भौतिक राशि (physical quantity) के समतुल्य माना जा सकता है, जब कि वैशेषिक मान्यतानुसार पदार्थ में 'भूत' (Basic Matter) और आधिभौतिक (आत्मा और मन) से सम्बन्धित राशियाँ सम्मिलित होती हैं, जहाँ 'भूत' भौतिक इन्द्रियों द्वारा ग्राह्य है। सम्प्रति भौतिक राशि को अधोलिखित प्रकार से परिभाषित कर सकते हैं-
भूत विशिष्ट ज्ञान को भौतिक पदार्थ कहते हैं। अर्थात् इसे (i) भूत (Basic Matter) (ii) इससे सम्बन्धित विशिष्ट ज्ञान
उपर्युक्त परिभाषा में 'विशिष्ट ज्ञान' का अर्थ है- इसका आधार, इसका सहगामी कारक से संयोग, और इसका आधार (आश्रय) के अतिरिक्त अन्य से सम्बन्ध। इस हेतु ठोस, द्रव, ऊर्जा, गैस और प्लाज्मा 'भूत' हैं अथवा भिन्न-भिन्न अवस्थाओं के पदार्थ हैं, क्योंकि ये बहिरिन्द्रियों जैसे नाक, रसना, आँख, त्वचा और कान के द्वारा प्रत्यक्ष ग्राह्य हैं। अथवा यह कह सकते हैं कि इन्द्रियों से ग्राह्य विशेष गुणवान् पदार्थ भौतिक पदार्थ हैं।
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