"पर्यावरणीय नीति": अवतरणों में अंतर

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|issue=859}}</ref> इसके अतिरिक्त गैर्रेट हार्डिन का बाद में प्रकाशित लेख "एक्सप्लोरिंग न्यू एथिक्स फॉर सर्वाइवल",और अल्डो लिओपोल्ड की एक किताब ''अ सैंड कंट्री ऑल्मनैक'' के एक निबंध "दा लैंड एथिक" ने बड़ा प्रभाव डाला.इस निबंध में लिओपोल्ड ने स्पष्टतया यह दावा पेश किया है कि पारिस्थितिकीय संकट की जड़ें दार्शनिक थी (1949).<ref>{{cite book|title=A Sand County Almanac| first=Aldo| last=Leopold| year=1949| chapter=The Land Ethic}}</ref>
 
इस क्षेत्र की पहली शैक्षिक पत्रिका 1970 के उत्तरार्ध में उत्तरी अमेरिका से और 1980 के प्रारम्भ में-1979 में अमेरिका से निकलने वाली पत्रिका ''पर्यावरणीय नैतिकता'' और कनाडा से 1983 में निकलने वाली पत्रिका थी.''[[The Trumpeter: Journal of Ecosophy]]'' इस प्रकार की पहली ब्रिटिश पत्रिका,''इन्वाइरन्मेन्टल वैल्यूज़'' , 1992 में लौंच की गयी.
 
== पर्यावरण नैतिकता की मार्शल द्वारा प्रतिपादित श्रेणियां ==
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=== पारिस्थितिक विस्तार ===
एलन मार्शल के मुक्तिवादी विस्तार की श्रेणी ना सिर्फ मानव अधिकारों पर बल देती है बल्कि सभी जैविक (और कुछ अजैविक) संस्थाओं और उनके आवश्यक विविधता के बुनियादी अन्योन्याश्रय की मान्यता पर बल देती है. जहां हम मुक्तिवादी विस्तार को प्राकृतिक संसार के राजनीतिक प्रतिबिंब का हिस्सा मान सकते हैं वहीं पारिस्थितिक विस्तार को हम प्राकृतिक दुनिया के एक वैज्ञानिक प्रतिबिंब के रूप में मान सकते हैं. पारिस्थितिक विस्तार मोटे रूप से स्मिथ के ईको-होलिस्म के समान ही है,और इसका तर्क यह है कि यह पारिस्थितिक तंत्र अथवा वैश्विक पर्यावरण में अन्तर्निहित मूल्य के लिए वे महत्वपूर्ण हैं. अन्य विद्वानों की तरह,होम्स रोल्सटोन , ने भी इस दृष्टिकोण को अपनाया है.
 
इस श्रेणी में जेम्स लवलौक की गाइआ परिकल्पना भी शामिल है जिसके अनुसार पृथ्वी समय समय पर अपनी शारीरिक संरचना बदलती रहती है ताकि जैविक और अजैविक पदार्थों में संतुलन बना रहे. पृथ्वी को एकीकृत,संपूर्ण संस्थान माना गया है जिस पर लम्बे समय में मनुष्य जाती का कोई महत्व नहीं होगा.
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मानवकेंद्रवाद सिद्धांत इस बात की अनुमति नहीं देते हैं कि इंसान के नजरिए से तैयार नैतिकता गलत भी हो सकती है,यह मानना आवश्यक नहीं है कि मनुष्य जाति इस संसार की सबसे बड़ी सच्चाई है. दार्शनिक बारूक स्पिनोज़ा का तर्क है कि हम चीजों को गलत तरीके से उनकी हमारे लिए उपयोगिता के संदर्भ में मूल्यांकन करते हैं.{{Fact|date=February 2007}} स्पिनोज़ा ने समझाया कि अगर हम वस्तुओं को तटस्थ भाव से देखें तो हम पायेंगे कि ब्रह्माण्ड में हर वस्तु का अपना एक अनूठा मूल्य है. इसी तरह, यह संभव है कि एक मानव केन्द्रित या अन्थ्रोपोसेंट्रिक /एंड्रोसेंट्रिक नैतिकता वास्तविकता में सच्चाई का सटीक चित्रण नहीं हो,और एक बड़ी तस्वीर भी संभव है जिसे हम एक मानव दृष्टिकोण से समझने में सक्षम नहीं है.
 
पीटर वार्डी ने दो तरह के मानवकेंद्रवाद के भेद को प्रतिष्ठित किया.<ref>[21] ^पीटर वार्डी और पॉल ग्रोस्च (1994, 1999), p.२३१ एथिक्स की पहेली.</ref> एक सशक्त अन्थ्रोपोसेंट्रिक नैतिक थीसिस का तर्क है कि इंसान वास्तविकता के केंद्र में रहे हैं और यह उनके लिए सही भी है. कमजोर मानवकेंद्रवाद , हालांकि,यह तर्क देता है कि वास्तविकता को केवल मानव की नज़र से ही देखा जाना चाहिए,मनुष्य जिस प्रकार से वास्तविकता को देखते हैं उन्हें उसके केंद्र में होना ही चाहिए.
 
इस मुद्दे पर एक और नज़रिया ब्रायन नॉरटन का है,इन्होने पर्यावरणीय यथार्थवाद, का प्रतिपादन किया.यह पर्यावरणीय यथार्थवाद अब इस क्षेत्र में एक मुख्य विचारधारा बन गया है. पर्यावरणीय यथार्थवाद ने अन्थ्रोपोसेंट्रिस्ट नैतिकता और नॉन अन्थ्रोपोसेंट्रिस्ट नैतिकता के समर्थकों के बीच के विवाद पर अपना दृष्टिकोण बनाने से मना कर दिया. इसके बजाय, नॉरटन ''सशक्त मानवकेंद्रवाद '' और ''कमजोर या विस्तारित मानवकेंद्रवाद '' के बीच भेद करना पसंद करते हैं और उन्होंने यह विचार प्रतिपादित किया की सिर्फ कमजोर या विस्तारित मानवकेंद्रवाद ही प्राकृत वस्तुओं से उनका मूल्य निकालने में मनुष्य की जो क्षमता है,उसे कम आंक सकता है.<ref>[http://sapiens.revues.org/index88.html अफ़िस्सा, एच एस (][http://sapiens.revues.org/index88.html 2008) "पारिस्थितिक व्यावहारिकता का परिवर्तनकारी मूल्य. ][http://sapiens.revues.org/index88.html ब्रायन जी नोर्टन के कार्य का "एक परिचय. ][http://sapiens.revues.org/index88.html ''S.A.P.I.E.N.S.'' '''1''' (1) ]</ref>