"जलयान": अवतरणों में अंतर

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== यातायातोपयोगी (Transportation) जहाज ==
 
'''(क) यात्री जहाज (Passenger Liners)''' दुनियाँ के एक बंदरगाह से दूसरे तक यात्रियों को ले जाने का काम करते हैं। इनके द्वारा माल बहुत ही कम ढोया जाता है, क्योंकि इनके अधिकांश भागों में यात्रियों के आवास तथा सुख सुविधा की सभी प्रकार की रचनाएँ बनी होती हैं ।हैं।
 
'''(ख) व्यापारी जहाज (Merchant Ships)''' अधिकतर हलका माल ढोने के काम में ही आया करते हैं। अत: इनमें यात्रियों के आवास कक्ष बहुत थोड़े होते हैं। सामान को उठाने धरने के लिये इनपर कुछ क्रेन भी लगे रहते हैं।
 
'''(ग) माल जहाज (Cargo Ships)''' अक्सर भारी माल ढोने के लिये बनाए जाते हैं। बिखरा हुआ माल, जैस अनाज, कोयला, धातुओं के अयस्क आदि, जिन्हें खुलामाल (Bulk cargo) कहते हैं, डेक के ऊपर बने बड़े बड़े कुएँनुमा गोदामों में भरने के बाद उनका ढक्कन बंद कर दिया जाता है। बँधा हुआ सामान, जिसे पैक माल (General cargo) कहते हैं, गोदामों में चुन दिया जाता है। यंत्रादि बहुधा डेक पर भी लादे जाते हैं, जिसे डेकमाल (Deck cargo) कहते हैं। सामान खाली हो जाने पर ऐसे जहाज जब हल्के हो जाते हैं तब उनके निम्नतम (पेंदे के) भाग में बने विशेष कक्षों में मिट्टी, रोड़ी, पानी आदि भर दिया जाता है, जिससे कि वे समुद्र में ठीक सतह पर बैठकर तैर सकें। इस प्रकार के बोझे को नीरम (Ballast) कहते हैं ।हैं।
 
'''(घ) टंकी जहाज (Tankers)''' इनमें पेट्रोल, इर्धंन, तेल, गुड़ का शीरा आदि भरकर ले जाया जाता है। अत: इनकी रचना में अधिकतर टंकियों का ही भाग रहता है और तरल पदार्थों को निकालने के लिये जहाँ तहाँ पंप भी लगे होते हैं। इन जहाजों में इंजन सबसे पिछले भाग में लगाया जाता है, जिससे पेट्रोल आदि में आग लगने की आशंका न रहे। इनमें क्रेन बिलकुल नहीं होते, बल्कि इनके आगे के सिरे से पीछे के सिरे तक एक लंबा पुल अवश्य बनाया जाता है, जिससे समुद्र की लहरों का पानी डेक पर आ जाने के समय कार्यकर्ता एक सिरे से दूसरे सिरे तक आ जा सकें।
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(क) युद्धोपयोगी, सैनिक जहाजों (Warships) पर भारी भारी तोपें लगी रहने, चाल बहुत तेज होने तथा चारों तरफ से कवचीय प्लेटों का आवरण चढ़ा रहने स इनके ढाँचों पर भारी प्रतिबल पड़ा करते हैं। केंद्रीय भाग में चिमनी के आस पास ही समस्त आवश्यक अधिरचनाएँ बना दी जाती हैं, जिससे चारों तरफ के खाली भागों में तोपों के गोलों के जाने के लिये निर्बाध जगह रह सके।
 
(ख) वायुयान बाहक (Aircraft Carrier) इनके सपाट डेक पर नाना प्रकार के बम, रॉकेट, तारपीडो और जल सुरंगों से सुसज्जित वायुयान रखे जाते हैं, जो यहीं से उड़ उड़कर शत्रु पर दूर दूर तक सब प्रकार के हमले कर सकते हैं। इन जहाजों पर अपनी सुरक्षा के लिये भी कुछ तोपें लगी रहती हैं, लेकिन फिर भी ये जहाज बड़े युद्धपोतों की संरक्षा में ही काम करते हैं ।हैं।
 
(ग) बड़े विध्वंसक जहाजों (Fleetr Destroyers) का काम शत्रु की पनडुब्बियों से बड़े युद्धपोतों की रक्षा करना, शत्रु पर तारपीडों से हमला करना तथा अपने जंगी बेड़े के आगे आगे चलक अग्रदूत का सा काम करना होता है। आकार में छोटे होने के कारण साफ मौसम में तो ये जहाज अच्छी तेज गति से चल सकते हैं, लेकिन तूफानी मौसिम में इन्हें बड़ी सतर्कता बरतनी पड़ती है ।है।
 
(घ) पनडुब्बियाँ (Submarines) शत्रु के युद्धपोतों, माल जहाजों तथा सेनावाहक जहाजों पर छिट पुट हमले करके उन्हें परेशान कर सकती हैं। ये पानी में डुबकी लगाकर अपने जंगी बेड़ों से बहुत आगे तक जाकर वहाँ की खबरें भी ले आती हैं।
 
(ङ) सुरंग निवारक (Mine Sweeper) जहाज शत्रु द्वारा बिछाई गई विस्फोटक समुद्री सुरंगों को अपने जंगी बेड़े के आगे आगे साफ करते चलते हैं। अपनी सुरक्षा के लिये इनपर कुछ तोपें भी लगी होती हैं ।हैं।
 
(च) क्रूज़र जहाज (Cruiser) युद्धपोतों से छोटे होने पर भी सब प्रकार के युद्धों में स्वतंत्रता पूर्वक भाग ले सकते हैं। इनमें आक्रमणात्मक तथा पैतरा बदलने की व्यवस्था रहती है एवं इनकी गति बहुत अच्छी होती है। इनके टरेटों (turrets) पर माध्यम नाप की तोपें लगी होती हैं, जो सब ऋतुओं में अच्छा काम करती हैं ।हैं।
 
(छ) इनके अतिरिक्त शत्रु को हानि पहुँचाने के लिये उसके समुद्र के निकट सुरंगें बिछानेवाले (Mine Layers) जहाज भी बनाए जाते हैं। सुरंगें बिछाने का काम हवाई जहाजों, जंगी जहाजों और पनडुब्बियों आदि से भी लिया जा सकता है। जंगी नौबेड़ों के साथ युद्ध सामग्री और तेल पहुँचानेवाले तथा सेनावाहक जहाज भी रहा करते हैं।
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== जहाज के ढाँचों पर पड़नेवाले प्रतिबल (stresses) ==
प्रत्येक जहाज के ढाँचे की अभिकल्पना (design) इस प्रकार से की जाती है कि उसके इंजनों, प्रणोदित्रों अथवा पैडल व्हीलों, सहायक यंत्रों तथा पंचों आदि के चलने के कारण और विशेषकर समुद्री लहरों के कारण जो विकृतियाँ तथा प्रतिबल पड़ें, उन्हें वह सह ले। जहाजों के चलते समय जब सामने की हवा का मुकाबिला करना होता है। उस समय यदि जहाज की चौड़ाई के बराबर लंबी लहरें उठने लगती हैं, तो कई बेर कोई एक ही बड़ी लहर बीच में जहाज को अधर में उठा ले सकती है। तब जहाज के आगे और पीछे क सिरे ठीक उसी प्रकर से लटकते रहेंगे जैसे कि किसी लदी हुई शहतीर को बीच में से सहारा देकर उठा लिया हो। जहाज का इस दशा को उत्तलन (ऊपर को उठा लिया जाना, hogging) कहते हैं ।हैं। कभी कभी ऐसा भी होता है कि जहाज का आगे और पीछे का सिरा तो लहरों पर टिक जाता है और बीच का स्थान खाली हो जाता है, ठीक वैसा ही जैसे कोई लदी हुई शहतीर दोनों सिरों पर टिकी हो। इस परिस्थिति में जहाज के ढाँचे पर पड़नेवाले प्रतिबलों को अवतलन (sagging) कहते है ।है। कभी कभी इन दोनों परिस्थितियों का मिश्रण भी हो जाता है, जिसमें पड़नेवाले प्रतिबल कर्तन (shear stress) कहलाते हैं। जब हवा तिरछी चलती है तब कभी कभी जहाज के ढाँचे में मरोड़ प्रतिबल (twisting strains) पड़ते हैं ।हैं। जब बगली हवा चलती है तब पार्श्वीय विकृतियाँ उत्पन्न होती हैं। इसके अतिरिक्त पानी में डूबे रहनेवाले भाग पर समुद्री पानी का भी अत्यधिक दाब पड़कर ढाँचे को चिपकाने की प्रवृत्ति दिखाता है ।है। सबसे अधिक तथा विकट प्रकार की विकृतियाँ तो आगे और पीछे के सिरों पर उस समय पैदा होती हैं जब जहाज में माल के विषम लदान और लहरों के प्रभाव तथा पानी के उत्प्लावक बल के कारण जगह जगह पर नमन घूर्ण (bending moments) पैदा होने लगते हैं।
 
लहरों द्वारा पड़नेवाली विकृतियों की गणना करते समय मान लिया जाता है कि प्रत्येक लहर की लंबाई जहाज की चौड़ाई के बराबर और उनकी ऊँचाई लंबाई के वें भाग के उराबर है।
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जहाज का पठाण (नौतल, keel) लोहे या ढले इस्पात द्वारा तीन प्रकार से बनाया जाता है, यथा इकहरी मोटी छड़ों, चपटी पट्टियों अथवा प्लेटों द्वारा। यही सबसे नीचे रहनेवाला बुनियादी अवयव है, जिसके सहारे समस्त ढाँचा खड़ा किया जाता है।
 
मरिया (Keelson) एक से अधिक तथा विभिन्न आकार के बनाए जाते हैं। इनमें से जो प्रमुख होता है वह जहाज के पेंदे की मध्य रेखा पर खड़ा लगया जाता है। सब मिलकर समस्त पेंदे को सहारा देते हैं। पठाण के आगे के सिरे मल्लजोड़ (Scarph) द्वारा ।द्वारा।
 
ऊपर को उठा हुआ जो अवयव ढले हुए इस्पात का बनाकर जोड़ा जाता है वह दुंबाल (Stern) कहलाता है। इसी में खाँचे बनाकर बीचवाला मरिया और बाहरी खोल के प्लेट बैठाकर जड़ दिए जाते हैं। पीछे की तरफ ढले इस्पात का जो खड़ा अवयव इसी प्रकार जोड़ा जाता है वह दुंबाल स्तंभ या कुदास (Sternpost) कहलाता है। रडर को सहारा देने के लिये और यदि एक या तीन प्रणोदित्र (propeller) युक्त जहाज हों तो मध्यवर्ती प्रणोदित्र के घूमने के लिये भी इसी में जगह बनाई जाती है१ जहाज के समस्त ढाँचे की रचना पंजरनुमा होती है ।है। पंजर के समस्त अंग एंगल आयरन और पट्टियों द्वारा ही बनाए जाते हैं। ये पंजर दोहरे होते हैं, एक भीतरी और दूसरा बाहरी। जिन स्थानों पर जहाज का निचला फर्श टिकता है, वे बाहरी और भीतरी पंजरों के बीच में खड़े लगाए जाते हैं इन्हें मरिया अथवा फ्लोर्स भी कहते हैं। इनके कारण पेंदा बहुत ही दृढ़ हो जाता है। जहाज की दोनों बगलियों के पंजरों को दृढ़ता प्रदान करने के लिये, उनके बीच में लंब पट्टियाँ तथा आड़ी स्थूणाएँ (धरनें) लगा दी जाती हैं। लंब पट्टियाँ जहाज के पंजर से एेंगल प्लेटों के साथ रिवेटों द्वारा जड़ दी जाती हैं। संपूर्ण जहाज का पंजर कई खंडों में बनाकर प्रत्येक पंजर के ऊपरी सिरे पर भी एक एक धरन लगा दी जाती है, जो ऊपरी डेक के प्लेट को सहारा देती है।
 
जिन जहाजों में एक से अधिक डेक होते हैं, उनमें प्रत्येक डेक को सँभालने के लिये प्रत्येक खंड में एक एक स्थूणा लगाई जाती है। ऊपरी डेक सदैव इस्पात की प्लेटों का बनाया जाता है और उसपर लकड़ी के तख्ते बैठा दिए जाते हैं। नीचे के डेक लकड़ी के तख्तों से ही बनाए जाते हैं। कुछ जहाजों में नीचे के डेक भी इस्पात की प्लेटों से बनाते हैं। यह सब उपयोग पर निर्भर करता है। जहाज के पंजर की आड़ी धरनों के बीच, उन्हें सहारा देने के लिये एक एक खंभा भी इस्पात का लगा दिया जाता है। जिन जहाजों की चौड़ाई अधिक होती है उनके मध्य खंभे के दोनों ओर एक खंभा और लगा दिया जाता है। मालवाहक जहाजों के गोदामों में अधिक खुली जगह की आवश्यकता पड़ा करती है। अत: उनमें खंभे न लगाकर अन्य प्रकार की युक्तियों से काम लिया जाता है।
"https://hi.wikipedia.org/wiki/जलयान" से प्राप्त