"पवन ऊर्जा": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:GreenMountainWindFarm Fluvanna 2004.jpg|thumb|right|पवन चक्कियां]]
बहती [[वायु]] से उत्पन्न की गई उर्जा को '''पवन ऊर्जा''' कहते हैं। वायु एक [[नवीकरणीय ऊर्जा]] स्त्रोतस्रोत है। पवन ऊर्जा बनाने के लिये हवादार जगहों पर पवन चक्कियों को लगाया जाता है, जिनके द्वारा वायु की [[गतिज उर्जा]], [[यान्त्रिक उर्जा]] मेमें परिवर्तित हो जाती है। इस यन्त्रिक ऊर्जा को [[जनरेटर|जनित्र]] की मदद से [[विद्युत]] ऊर्जा मे परिवर्तित किया जा सकता है। हिन्दी में बहती हवा को पवन कहा जाता है।
 
पवन ऊर्जा ( wind energy ) का आशय वायु से गतिज ऊर्जा को लेकर उसे उपयोगी यांत्रिकी अथवा विद्युत ऊर्जा के रूप में परिवर्तित करना है।
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== पवन ऊर्जा का मूल सिद्धांत ==
 
सूर्य प्रति सेकण्डसेकंड पचास लाख टन पदार्थ को ऊर्जा में परिवर्तित करता है। इस ऊर्जा का जो थोड़ा सा अंश पृथ्वी पर पहुचतापहुँचता है, वह यहाँ कई रूपों में प्राप्त होता है। सौर विकिरण सर्वप्रथम पृथ्वी की सतह या भूपृष्ठ द्वारा अवशोषित किया जाता है, तत्पश्चात वह विभिन्न रूपों में आसपास के वायुमंडल में स्थानांतरित हो जाता है। चूँकि पृथ्वी की सतह एक सामान या समतल नहीं है, अतः अवशोषित ऊर्जा की मात्रा भी स्थान व समय के अनुसार भिन्न भिन्न होती है। इसके परिणामस्वरूप तापक्रम, घनत्व तथा दबाव संबंधी विभिन्नताएं उत्पन्न होती है- जो फिर ऐसे बलों को उत्पन्न करती हैहैं, जो वायु को एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रवाहित होने के लिए विवश कर देतेदेती है।हैं । गर्म होने से विस्तारित वायु, जो की गर्म होने से हलकी हो जाती है, ऊपर कोकी ओर उठती है तथा ऊपर की ठंडी वायु नीचे आकर उसका स्थान ले लेती है।है, इसके फलस्वरूप वायुमंडल में अर्ध अर्द्ध- स्थायी पैटर्न उत्पन्न हो जाते है।हैं । वायु का चलन, सतह के असमान गर्म होने के कारण होता है।
 
== पवन ऊर्जा के उपयोग के लाभ ==
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'''यह साफ़-सुथरी हैः-'''
 
वायु का ऊर्जा उत्पादन करने हेतु उपयोग करने में न तो किसी भी प्रकार के प्रदुषणप्रदूषण की कि समस्या, या अम्लीय वर्षा किकी समस्या, या खानों के अपवाह या विषाक्त प्रदूषक पदार्थो जैसी कोई समस्या है, और ना ही इसके कारण हेक्टेयरों तक फैली भूमि क्षतिग्रस्त होती है । वास्तव में मानव किकी पर्यावरणीय आवश्यकताओं किकी पूर्ण आपूर्ति पवन ऊर्जा रूपांतरण तंत्रों द्वारा हो जाती है । कार्बन - डाईआक्साइड के उत्सर्जन को कम करने के लिए उपलब्ध कुछेक तकनीकी विकल्पों में पवन ऊर्जा भी एक है । चूँकि इसमे गैसीय प्रदूषको के उत्सर्जन जैसी कोई समस्या नहीं है जो कि ग्रीन हाउस प्रभाव को उत्पन्न करके पर्यावरणीय समस्याओं को बढ़ाए, . अतः विद्युत उत्पादन हेतु पवन ऊर्जा ही सबसे अधिक स्वीकृत स्त्रोतोंस्रोतों में से एक है । यह नवीकरण योग्य ऊर्जा ही विश्वव्यापी उष्णता तथा अम्लीय वर्षा से संघर्ष कर सकती है ।
 
 
'''यह असमाप्य हैः-'''
 
पवन अथवा वायु सुगमता से उपलब्ध है तथा कभी न समाप्त होने वाली है, जब कि जिवाश्मीयजीवाश्मीय इंधनईन्धन सिमितसीमित है । हालांकि और अधिक जिवाश्मीयजीवाश्मीय इंधनोंईंधनों किकी खोज किकी दिशा में सतत गवेषक कार्य चल रहा है, परन्तु विश्व के औद्योगिक तथा विकासशील देशोदेशों की कि निरंतर बढ़ती इंधनईंधन किकी आवश्यकता निश्चित रूप से आने वाले भविष्य में इन उच्च श्रेणी के इंधनईंधन स्त्रोतोंस्रोतों को समाप्त कर ही देगी । इस समस्या से निपटने के लिए, पवन ऊर्जा ही एकमात्र संभावित विकल्प है, जो कि नवीकृत भी होता रहता है । सूर्य किकीं विकिरित ऊर्जा से पवन ऊर्जा सतत रूप से नवीकृत होती रहती है और इसका दोहन सरलतापूर्वक किया जा सकता है ।
 
 
'''इसकी आपूर्ति असीमित हैः-'''
 
पवन निशुल्क तथा प्रचुरता में उपलब्ध है, सरलता से प्राप्य है, समाप्त होने वाली नहीं है तथा इसकी आपूर्ति भी निर्बाध है । पवन अथवा वायु पर किसी भी देश या वाणिज्यिक प्रतिष्ठान का एकाधिकार नहीं है, जैसा कि जिवाश्मीयजीवाश्मीय इंधनोंईंधनों, यथा- तेल, गैस, या नाभिक इंधनों,ईंधनों- जैसे युरेनियमयूरेनियम आदि, के साथ है । चूँकि ऊर्जा क़ी मांग सतत रूप से बढ़ती ही जायेगी, इसलिए कच्चे तेल के बढ़ते हुए मूल्यों के साथ निश्चित रूप से पवन ऊर्जा ही एकमात्र आकर्षक विकल्प प्रस्तुत करती है ।
 
 
'''यह सुरक्षित हैः-'''
 
पवन ऊर्जा संयत्रों का परिचालन सुरक्षित है । आधुनिक व उन्नत माइक्रोप्रोसेसर्स के प्रयोग से समस्त संयंत्र पूर्णतः स्वचालित हो गए हैहैं तथा संयंत्र के परिचालन के लिए अधिक श्रमिकोश्रमिकों क़ी आवश्यकता भी नहीं रह गई है । निर्माण तथा रखरखाव क़ी दृष्टि से भी यह पूर्णतः सुरक्षित है । यह बात तापीय ऊर्जा संयंत्रों अथवा नाभकीय ऊर्जा संयंत्रों पर लागू नहीं होती । आधुनिक पवन संयंत्रों में प्रयुक्त प्रभावी सुरक्षा यांत्रिकी से यहाँ तक संभव हो गया है कि इन्हें सार्वजनिक स्थलों पर भी थोड़ी सी क्षति अथवा बिना किसी क्षति के स्थापित किया जा सकता है ।
 
 
'''पवन प्रणाली के लिए अधिक स्थान किकी आवश्यकता नहीं :-'''
 
पवन चालित प्रणाली के लिए तुलनात्मक रूप से कम स्थान की आवश्यकता होती है, और इसे हर उस स्थान पर, जहाँ भी वायु की स्थिति अनुकूल हो, लगाया जा सकता है । उदाहरण के लिए इसे पहाड़ी के शिखर पर, समतल सपाट भू - प्रदेश, वनों तथा मरुस्थलों तक में लगाया जा सकता है । संयंत्र को अपतटीय क्षेत्रों तथा छिछले पानी में भी लगाया जा सकता है । यदि पवन संयंत्रों को कृषि भूमि में भी लगाया जाता है तो मीनार के आधार स्थान तक खेती की जा सकती है ।
 
 
'''इनका शीघ्र निर्माण किया जा सकता हैः-'''
 
पवन चक्की श्रृंखलाओं में अनेकोअनेक अपेक्षाकृत छोटी - छोटी इकाइयां होती हैहैं । इन्हें सरलता व शीघ्रता से समूहों में बनाया जा सकता है, जिसके परिणामस्वरूप इनकी योजना बनाने में लचीलापन आ जाता है । किसी भी पवन चक्की फ़ार्म के पूरा होने के पहले ही निवेशित पूंजी शीघ्रता से वापस मिलने लगती है । मांग के बढ़ने के साथ - साथ, जब भी आवश्यकता अनुभव हो, नयी इकाइयां जोड़ी जा सकती है । इन्हें एक ही स्थान पर, समूह के रूप में या सम्पूर्ण देश के क्षेत्रों में बिखराकरबिखरा कर लगाया जा सकता है ।
 
 
'''इनमें रखरखाव की कम आवश्यकता होती हैः-'''
 
चूँकि यह पवन चालित संयंत्र सरल व परिचालन में आसान होते हैहैं, अतः अन्य विकल्पों की तुलना में इनके रखरखाव की आवश्यकता कम होती है ।
 
 
'''पवन ऊर्जा कम खर्चीली हैः-'''
 
चूँकि वायु बिना मूल्य उपलब्ध है, इसलिए इसमें इंधनईंधन के मूल्यों में वृद्धि के साथ मुद्रास्फीति का कोई भी कोई जोखम नहीं है । इस प्रकार पवन ऊर्जा धन तथा इंधनईंधन दोनों ही रूपों में बचत करती है । अतः पवन ऊर्जा मूल्यप्रभावी है । आज विश्व के कई क्षेत्रों में, जहां वायु के स्त्रोतस्रोत केन्द्रित है, वहां पवन ऊर्जा तेल चालित तथा नाभकीय - शक्ति से उत्पादित विद्युत को कड़ी चुनौती दे रही है, क्योंकि परम्परागत ऊर्जा स्त्रोतोंस्रोतों के विकास की लागत जहां दिन - प्रतिदिन बढ़ रही है, वहीँ पवन ऊर्जा की लागत तीव्रता से गिर रही है । वायु चालित टरबाइनों की दिनों - दिन बढ़ती हुई विश्वसनीयता से यह सिद्ध हो रहा है कीकि निकट भविष्य में अधिक से अधिक क्षेत्र ऊर्जा के अन्य रूपों की अपेक्षा पवन ऊर्जा को सबसे कम व्यय वाले आकर्षक विकल्प के रूप में अपनाएंगे ।
 
== पवन ऊर्जा के उपयोग की सीमाएं ==
 
पवन चालित संयंत्र महंगे है और केवल वहीं लगाए जा सकते है जहां आवश्यकतानुरूप वायु उपलब्ध हो। उच्च पवन गति वाले क्षेत्र पहुँच से बाहर हो सकते हैहैं अथवा उच्च वोल्ट क्षमता वाली पारेषण लाइनों से दूर स्थित हो सकते हैहैं , जिससे पवन ऊर्जा के संचार में समस्या हो सकती है। साथ ही विद्युत् की आवश्यकता समय के अनुसार घटती - बढ़ती रहती है तथा विद्युत उत्पादन को मांग चक्र के अनुसार समायोजित करना होता है। चूँकि पवन -शक्ति की मात्रा या गति में अचानक परिवर्तन हो सकते हैहैं , अतः यह भी संभव है कीकि मांग या आवश्यकता के समय यह उपलब्ध ही ना हो। अतः सतत रूप से एक ही मात्रा में उपलब्ध न होने तथा अविश्वसनीय आपूर्ति के कारण पवन ऊर्जा की व्यवहारिक असुविधा ने इसके उपयोग को, उन्हीउन्हीं क्षेत्रों तक सीमित कर दिया है जहाँ या तो विद्युत की सतत आपूर्ति की आवश्यकता नहीं है, या आवश्यकतानुरूप आपूर्ति हेतु एक अन्य स्थायी ऊर्जा विकल्प उपलब्ध है। विद्युत ऊर्जा का भंडारण कठिन एवं महँगा भी है, इसलिए पवन ऊर्जा का उपयोग किसी अन्य प्रकार की ऊर्जा के साथ साथ अथवा गैर - वैद्युत भंडारण के साथ किया जा सकता है। पवन ऊर्जा का उपयोग जलविद्युत ऊर्जा जनित्रों के साथ करना अधिक लाभप्रद है, क्योंकि जल का उपयोग ऊर्जा भंडारण के स्त्रोत के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है, और भूमिगत संपीडितसंपीड़ित वायु के भंडारण का उपयोग एक अन्य विकल्प है।
 
== पवन ऊर्जा के उपयोग से संबंधित पर्यावरणीय समस्याएँ ==
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'''विद्युत चुम्बकीय व्यवधान --'''
 
पवन उत्पादक संयंत्र विद्युत चुंबकीय संकेत वातावरण में प्रसारित करेंगे । क्षेतिजक्षैतिज अक्ष वाले पवन चालित टर्बाइनों के घुमतेघूमते हुए फलक ( ब्लेड ) दूरदर्शन संकेतों के दृश्य अंश विरूपित करके निकटवर्तीय क्षेत्रों में व्यवधान उत्पन्न कर सकते हैहैं । संयंत्रों से दूरी बढ़ने के साथ साथ यह व्यतिकरण कम हो सकता है, फिर भी यह परा - उच्च आवृत्ति ( यू एच एफ ) चैनलों को कई किलोमीटर की दूरी पर भी प्रभावित कर सकता है । अगर ब्लेड स्थिर भी हो, तो भी वायु में प्रसारित संकेत ' छद्म बिम्ब ' ( घोस्ट इमेज ) उत्पन्न कर सकते है । इस समस्या को समुचित स्थल - चयन तथा सूक्ष्म तरंग ( माइक्रोवेव ) संपर्क के बीच ' दृष्टि रेखा ' को बदल कर तथा संयंत्रों को प्रसारण केन्द्रों कीसे निकटतादूर कोलगा घटाकर दूरकर किया जा सकता है ।
 
 
'''शोर --'''
 
अनेक विकसित देशों में ' शोर ' की समस्या को पवन ऊर्जा विकास के विरुद्ध हथियार के रूप में प्रस्तुत किया जाता है । पवन चालित संयंत्र से शोर उत्पन्न होने के दो प्रमुख स्त्रोत हैः यांत्रिकी शोर जो कीकि घूमते हुए यांत्रिक एवं वैद्युतिक घटकों से उत्पन्न होता है, और जिसे उचित गियर - प्रणाली या ध्वनी - रोधकध्वनिरोधक आच्छादन लगाकर कम किया जा सकता है । दूसरा कारण है सीटी जैसी वह आवाज जो फलकों के ऊपर वायु के प्रवाहित होने से उत्पन्न वायुगतिकीय शोर है, जिसकी अलग -अलग आवृत्तिआवृत्तियां होती हैहैं
 
 
'''वन्य जीव --'''
 
अनेकोंअनेक प्रकृति प्रेमी व्यक्तियोंप्रकृतिप्रेमीयों या क्लबों की यह आशंका है की पवनकि चालितपवनचालित संयंत्रों की उपस्थिति प्रवासी पक्षियों तथा सामान्य पक्षियों को भयभीत करती है । परन्तु आंकड़ोआंकड़ों से यह अब सिद्ध हो चुका है कि पक्षी के टकराने की घटनाएं निचली उड़ान के स्टारस्तर पर ही होती है, और इनऐसे पक्षियों की संख्या बहुत ही कम होती है ।
 
 
'''सौंदर्य बोध --'''
 
निस्संदेह वायु चालित टर्बाइनों का प्राकृतिक दृश्यावली पर निश्चित रूप से कुछ दुष्प्रभाव पड़ता है और यह दृश्य -प्रदूषण को जन्म देता है । जब बड़ी - बड़ी ऊँची मीनारें खड़ी की जाती है तो वे निश्चित रूप से प्राकृतिक दृश्यावली की सुरम्यता को प्रभावित करती हैहैं ( विकसित देश इस दिशा में अधिक जागरुक हैं, जबकि विकासशील देशों में अधिकतर इसे प्रगति का चिन्ह माना जा रहा है ) । इन सबके अतिरिक्त, कम उंचाई पर वायुयान संचालन, राडार रडार-प्रसारणों तथा संचार के अन्य माध्यमों पर भी इसके दुष्प्रभाव पड़ सकते हैं ।
 
== इन्हें भी देखें ==