"जापान का इतिहास": अवतरणों में अंतर

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जापान के प्राचीन इतिहास के संबंध में कोई निश्चयात्मक जानकारी नहीं प्राप्त है। जापानी लोककथाओं के अनुसार विश्व के निर्माता ने सूर्य देवी तथा चन्द्र देवी को भी रचा ।रचा। फिर उसका पोता [[क्यूशू]] द्वीप पर आया और बाद में उनकी संतान [[होंशू]] द्वीप पर फैल गए ।गए। हँलांकि यह लोककथा है पर इसमें कुछ सच्चाई भी नजर आती है।
 
पौराणिक मतानुसार जिम्मू नामक एक सम्राट् ९६० ई. पू. राज्यसिंहासन पर बैठा, और वहीं से जापान की व्यवस्थित कहानी आरंभ हुई। अनुमानत: तीसरी या चौथी शताब्दी में 'ययातों' नामक जाति ने दक्षिणी जापान में अपना आधिपत्य स्थापित किया ५ वीं शताब्दी में चीन और कोरिया से संपर्क बढ़ने पर [[चीनी लिपि]], [[चिकित्साविज्ञान]] और [[बौद्धधर्म]] जापान को प्राप्त हुए। जापानी नेताओं शासननीति चीन से सीखी किंतु सत्ता का हस्तांतरण परिवारों तक ही सीमित रहा। ८ वीं शताब्दी में कुछ काल तक राजधानी [[नारा]] में रखने के बाद [[क्योटो]] में स्थापित की गई जो १८६८ तक रही।
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== प्राचीन काल ==
[[चित्र:Horyu-ji08s3200.jpg|right|thumb|300px|'''होर्यू-जी''' : इकारुगा का बौद्ध मन्दिर]]
जापान का प्रथम लिखित साक्ष्य 57 ईस्वी के एक चीनी लेख से मिलता है ।है। इसमें एक ऐसे राजनीतिज्ञ के [[चीन]] दौरे का वर्णन है जो ''पूरब के किसी द्वीप'' से आया था ।था। धीरे-धीरे दोनो देशों के बीच राजनैतिक और सांस्कृतिक सम्बंध स्थापित हुए ।हुए। उस समय जापानी एक बहुदैविक धर्म का पालन करते थे जिसमें कई देवता हुआ करते थे ।थे। छठी शताब्दी में चीन से होकर [[बौद्ध धर्म]] जापान पहुंचा ।पहुंचा। इसके बाद पुराने धर्म को ''[[शिंतो]]'' की संज्ञा दी गई जिसका शाब्दिक अर्थ होता है - ''देवताओं का [[पंथ]]'' । बौद्ध धर्म ने पुरानी मान्यताओं को खत्म नहीं किया पर मुख्य धर्म बौद्ध ही बना रहा ।रहा। बौद्ध धर्म के आगमान के साथ साथ लोग, लिखने की प्रणाली ([[लिपि]]) तथा मंदिरो का सांस्कृतिक तथा शैक्षणिक कार्यों के लिए उपयोग भी जापान में चीन से आया।
 
शिंतो मान्यताओं के अनुसार जब कोई राजा मरता है तो उसके बाद का शासक अपना राजधानी पहले से किसी अलग स्थान पर बनाएगा ।बनाएगा। बौद्ध धर्म के आगमन के बाद इस मान्यता को त्याग दिया गया ।गया। 710 ईस्वी में राजा ने ''नॉरा'' नामक एक शहर में अपनी स्थायी राजधानी बनाई ।बनाई। शताब्दी के अन्त तक इसे ''हाइरा'' नामक नगर में स्थानान्तरित कर दिया गया जिसे बाद में [[क्योटो]] का नाम दिया गया ।गया। सन् 910 में जापानी शासक फूजीवारा ने अपने आप को जापान की राजनैतिक शक्ति से अलग कर लिया ।लिया। इसके बाद तक जापान की सत्ता का प्रमुख राजनैतिक रूप से जापान से अलग रहा ।रहा। यह अपने समकालीन [[भारतीय]], [[यूरोपी]] तथा [[इस्लामी]] क्षेत्रों से पूरी तरह भिन्न था जहाँ सत्ता का प्रमुख ही शक्ति का प्रमुख भी होता था ।था। इस वंश का शासन ग्यारहवीं शताब्दी के अन्त तक रहा ।रहा। कई लोगों की नजर में यह काल जापानी सभ्यता का स्वर्णकाल था ।था। चीन से सम्पर्क क्षीण पड़ता गया और जापान ने अपना खुद की पहचान बनाई ।बनाई। दसवी सदी में बौद्ध धर्म का मार्ग चीन और जापान में लोकप्रिय हुआ ।हुआ। जापान मे कई [[पैगोडा|पैगोडाओं]] का निर्माण हुआ ।हुआ। लगभग सभी जापानी पैगोडा में विषम संख्या में तल्ले थे ।थे।
 
== मध्यकाल ==
 
मध्यकाल मे जापान में [[सामंतवाद]] का जन्म हुआ ।हुआ। जापानी सामंतों को [[समुराई]] कहते थे ।थे। जापानी सामंतो ने कोरिया पर दो बार चढ़ाई की पर उन्हें कोरिया तथा चीन के मिंग शासको ने हरा दिया ।दिया।
=== कुबलय खान ===
तेरहवीं शताब्दी में [[कुबलय खान]] मध्य एशिया के सबसे बड़े सम्राट के रूप में उभरा जिसका साम्राज्य पश्चिम में फारस, [[बाल्कन]] तथा पूर्व में [[चीन]] तथा [[कोरिया]] तक फैला था ।था। 1268 में उसने जापान के समुराईयों के सरगना के पास एक कूटनीतिक पत्र [[क्योटो]] भैजा जिसमें भारी धनराशि भैंट करने को कहा गया था, अन्यथा वीभत्स परिणामों की धमकी दी गई ।गई। जापानियों ने इसका कोई उत्तर नहीं दिया ।दिया। युद्ध को रोका न जा सका ।सका। सन् 1274 में कुबलय खान ने लगभग 35,000 चीनी तथा कोरियाई सैनिकों तथा उनके मंगोल प्रधानो के साथ जापान की ओर 800 जहाजों में प्रस्थान किया ।किया। पर रास्ते में [[समुद्र]] में भीषण तूफान आने की वज़ह से उसे लौटना पड़ा ।पड़ा। पर, 1281 में पुनः, कुबलय खान ने जापान पर चढ़ाई की ।की। इस बार उसके पास लगभग 1,50.000 सैनिक थे और वह जापान के दक्षिणी पश्चिमी तट पर पहुंचा ।पहुंचा। दो महीनो के भीषण संघर्ष के बाद जापानियों को पीछे हटना पड़ा ।पड़ा। धीरे धीरे कुबलय खान की सेना जापानियों को अन्दर धकेलती गई और लगभग पूरे जापान को कुबलय खान ने जीत लिया ।लिया। पर, एक बार फिर मौसम ने जापानियों का साथ दिया और समुद्र में पुनः भयंकर तूफान आया ।आया। मंगोलो के तट पर खड़े पोतो को बहुत नुकसान पहुंचा और वे विचलित हो वापस भागने लगे ।लगे। इसके बाद बचे मंगोल लड़कों का जापानियों ने निर्दयतापूर्वक कत्ल कर दिया ।दिया। जापानियों की यह जीत निर्णायक साबित हुई और द्विताय विश्वयुद्ध से पहले किसी विदेशी सेना ने जापान की धरती पर कदम नहीं रखा ।रखा। इन तूफानो ने जापानियों को इतना फायदा पहुंचाया कि इनके नाम से एक पद जापान में काफी लोकप्रिय हुआ - [[कामिकाजे]], जिसका शाब्दिक अर्थ है - ''अलौकिक पवन''
 
=== यूरोपीय प्रादुर्भाव ===
 
सोलहवीं सदी में [[यूरोप]] के पुर्तगाली व्यापारियों तथा मिशनरियों ने जापान में पश्चिमी दुनिया के साथ व्यापारिक तथा सांस्कृतिक तालमेल की शुरूआत की ।की। जापानी लोगों ने यूपोरीय देशों के बारूद तथा हथियारों को बहुत पसन्द किया ।किया। यूरोपीय शक्तियों ने [[इसाई धर्म]] का भी प्रचार किया ।किया। 1549 में पहली बार जापान में इसाई धर्म का आगमन हुआ ।हुआ। दो वर्षों के भीतर जापान में करीब तीन लाख लोग ऐसे थे जिन्होनें ईसा मसीह के शब्दों को अंगीकार कर लिया ।लिया। ईसाई धर्म जापान में उसी प्रकार लोकप्रिय हुआ जिस प्रकार सातवीं सदी में बौद्ध धर्म ।धर्म। उस समय यह आवश्यक नहीं था कि यह नया धार्मिक सम्प्रदाय पुराने मतों से पूरी तरह अलग होगा ।होगा। पर ईसाई धर्म के प्रचारकों ने यह कह कर लोगो को थोड़ा आश्चर्यचकित किया कि ईसाई धर्म को स्वीकार करने के लिए उन्हें अपने अन्य धर्म त्यागने होंगे ।होंगे। यद्यपि इससे जापानियों को थोड़ा अजीब लगा, फिर भी धीरे-धीरे ईसाई धर्मावलम्बियो की संख्या में वृद्धि हुई ।हुई। 1615 ईस्वी तक जापान में लगभग पाँच लाख लोगो ने ईसाई धर्म को अपना लिया ।लिया। 1615 में समुराई सरगना शोगुन्ते को संदेह हुआ कि यूरोपीय व्यापारी तथा मिशनरी, वास्तव में, जापान पर एक सैन्य तथा राजनैतिक अधिपत्य के अग्रगामी हैं ।हैं। उसने विदेशियों पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए तथा उनका व्यापार एक कृत्रिम द्वीप (नागासाकी के पास) तक सीमित कर दिया ।दिया। ईसाई धर्म पर प्रतिबंध लगा दिया गया और लगभग 25 सालों तक ईसाईयों के खिलाफ प्रताड़ना तथा हत्या का सिलसिला जारी रहा ।रहा। 1638 में, अंततः, बचे हुए 37,000 ईसाईयों को नागासाकी के समीप एक द्वीप पर घेर लिया गया जिनका बाद में नरसंहार कर दिया गया ।गया।
 
== आधुनिक काल ==
1854 में पुनः जापान ने पश्चिमी देशों के साथ व्यापार संबंध स्थापित किया ।किया। अपने बढ़ते औद्योगिक क्षमता के संचालन के लिए जापान को प्राकृतिक संसाधनों की आवश्यकता पड़ी जिसके लिए उसने 1894-95 मे [[चीन-जापान युद्ध|चीन]] तथा 1904-1905 में रूस पर चढ़ाई किया ।किया। जापान ने [[रूस-जापान युद्ध]] में [[रूस]] को हरा दिया ।दिया। यह पहली बार हुआ जब किसी एशियाई राष्ट्र ने किसी यूरोपीय शक्ति पर विजय हासिल की थी ।थी। जापान ने [[द्वितीय विश्व युद्ध]] में [[धुरी राष्ट्रों]] का साथ दिया पर 1945 में [[अमेरिका]] द्वारा [[हिरोशिमा]] तथा [[नागासाकी]] पर [[परमाणु बम]] गिराने के साथ ही जापान ने आत्म समर्पण कर दिया ।दिया।
 
इसके बाद से जापान ने अपने आप को एक आर्थिक शक्ति के रूप में सुदृढ़ किया और अभी तकनीकी क्षेत्रों में उसका नाम अग्रणी राष्ट्रों में गिना जाता है ।है।
 
==इन्हें भी देखें==