"मगध महाजनपद": अवतरणों में अंतर

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* रोमिला थापर - मौर्य साम्राज्य के पतन के लिए केन्द्रीय शासन अधिकारी तन्त्र का अव्यवस्था एवं अप्रशिक्षित होना।
 
मौर्य शासन - भारत में सर्वप्रथम मौर्य वंश के शासनकाल में ही राष्ट्रीय राजनीतिक एकता स्थापित हुइ थी। मौर्य प्रशासन में सत्ता का सुदृढ़ केन्द्रीयकरण था परन्तु राजा निरंकुश नहीं होता था। मौर्य काल में गणतन्त्र का ह्रास हुआ और राजतन्त्रात्मक व्यवस्था सुदृढ़ हुई। कौटिल्य ने राज्य सप्तांक सिद्धान्त निर्दिष्ट किया था, जिनके आधार पर मौर्य प्रशासन और उसकी गृह तथा विदेश नीति संचालित होती थी -राजा,अमात्य जनपद , दुर्ग दुर्ग, कोष, सेना और,मित्र।
 
== [[शुंग राजवंश]] ==
 
पुष्यमित्र शुंग- मौर्य साम्राज्य के अन्तिम शासक वृहद्रथ की हत्या करके १८४ई.पू. में पुष्यमित्र ने मौर्य साम्राज्य के राज्य पर अधिकार कर लिया । जिस नये राजवंश की स्थापना की उसे पूरे देश में शुंग राजवंश के नाम से जाना जाता है। शुंग ब्राह्मण थे। बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के फ़लस्वरुप अशोक द्वारा यज्ञों पर रोक लगा दिये जाने के बाद उन्होंने पुरोहित का कर्म त्यागकर सैनिक वृति को अपना लिया था। पुष्यमित्र अन्तिम मौर्य शासक वृहद्रथ का प्रधान सेनापति था। पुष्यमित्र शुंग के पश्चात इस वंश में नौ शासक और हुए जिनके नाम थे -अग्निमित्र, वसुज्येष्ठ,वसुमित्र , भद्रक,तीन अज्ञात शासक , भागवत और देवभूति। एक दिन सेना का निरिक्षण करते समय वृह्द्र्थ की धोखे से हत्या कर दी। उसने ‘सेनानी’ की उपाधि धारण की थी। दीर्घकाल तक मौर्यों की सेना का सेनापति होने के कारण पुष्यमित्र इसी रुप में विख्यात था तथा राजा बन जाने के बाद भी उसने अपनी यह उपाधि बनाये रखी। शुंग काल में संस्कृत भाषा का पुनरुत्थान हुआ था मनुस्मृति के वर्तमान स्वरुप की रचना इसी युग में हुई थी। अतः उसने निस्संदेह राजत्व को प्राप्त किया था । परवर्ती मौर्यों के निर्बल शासन में मगध का सरकारी प्रशासन तन्त्र शिथिल पड़ गया था एवं देश को आन्तरिक एवं बाह्य संकटों का खतरा था । ऐसी विकट स्थिति में पुष्य मित्र शुंग ने मगध साम्राज्य पर अपना अधिकार जमाकर जहाँ एक ओर यवनों के आक्रमण से देश की रक्षा की और देश में शान्ति और व्यवस्था की स्थापना कर वैदिक धर्म एवं आदेशों की जो अशोक के शासनकाल में अपेक्षित हो गये थे । इसी कारण इसका काल वैदिक प्रतिक्रिया अथवा वैदिक पुनर्जागरण का काल कहलाता है । शुंग वंश के अन्तिम सम्राट देवभूति की हत्या करके उसके सचिव वसुदेव ने ७५ ई. पू. कण्व वंश की नींंव डाली ।
 
;शुंगकालीन संस्कृति के प्रमुख तथ्य
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* पुष्यमित्र शुंग ने ब्राह्मण धर्म का पुनरुत्थान किया। शुंग के सर्वोत्तम स्मारक स्तूप हैं।
 
* बोधगया के विशाल मन्दिर के चारों और एक छोटी पाषाण वेदिका मिली है।इसका निर्माण भी शुंगकाल में हुआ था। इसमें कमल, राजा, रानी, पुरुष, पशु , बोधिवृक्ष, छ्त्र, त्रिरत्न , कल्पवृक्ष,आदि प्रमुख हैं।
 
* स्वर्ण मुद्रा निष्क, दिनार, सुवर्ण , मात्रिक कहा जाता था। ताँबे के सिक्‍के काषार्पण कहलाते थे। चाँदी के सिक्‍के के लिए ‘पुराण’अथवा ‘धारण’ शब्द आया है।
 
* शुंग काल में समाज में बाल विवाह का प्रचलन हो गया था। तथा कन्याओं का विवाह आठ से १२ वर्ष की आयु में किया जाने लगा था।
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* शुंग राजाओं का काल वैदिक काल की अपेक्षा एक बड़े वर्ग के लोगों के मस्तिष्क परम्परा, संस्कृति एवं विचारधारा को प्रतिबिम्बित कर सकने में अधिक समर्थ है।
 
* शुंग काल के उत्कृष्ट नमूने बिहार के बोधगया से प्राप्त होते हैं। भरहुत ,सांची सांची, बेसनगर की कला भी उत्कृष्ट है।
 
* महाभाष्य के अलावा मनुस्मृति का मौजूदा स्वरुप सम्भवतः इसी युग में रचा गया था। विद्वानो के अनुसार शुंग काल में ही महाभारत के शान्तिपूर्ण तथा अश्‍वमेध का भी परिवर्तन हुआ। माना जाता है की पुष्यमित्र ने बौद्ध धर्मावलम्बियों पर बहुत अत्याचार किया,लेकिन सम्भवतः इसका कारण बौद्धों द्वारा विदेशी आक्रमण अर्थात यवनों की मदद करना था। पुष्यमित्र ने अशोक द्वारा निर्माण करवाये गये ८४ हजार स्तूपों को नष्ट करवाया। बौद्ध ग्रन्थ दिव्यावदान के अनुसार यह भी सच है कि उसने कुछ बौद्धों को अपना मन्त्री नियुक्‍त कर रखा था। पुराणों के अनुसार पुष्यमित्र ने ३६ वर्षों तक शासन किया। इस प्रकार उसका काल ई.पू से १४८ई.पू.तक माना जाता है।
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वसुमित्र - शुंग वंश का चौथा राजा वसुमित्र हुआ। उसने यवनों को पराजित किया था। एक दिन नृत्य का आनन्द लेते समय मूजदेव नामक व्यक्‍ति ने उसकी हत्या कर दी। उसने १० वर्षों तक शाशन किय ।
वसुमित्र के बाद भद्रक , पुलिंदक, घोष तथा फिर वज्रमित्र क्रमशः राजा हुए। इसके शाशन के १४वें वर्ष में तक्षशिला के यवन नरेश एंटीयालकीड्स का राजदूत हेलियोंडोरस उसके विदिशा स्थित दरबार में उपस्थित हुआ था। वह अत्यन्त विलासी शाशक था। उसके अमात्य वसुदेव ने उसकी हत्या कर दी। इस प्रकार शुंग वंश का अन्त हो गया।
 
महत्व- इस वंश के राजाओं ने मगध साम्रज्य के केन्द्रीय भाग की विदेशियों से रक्षा की तथा मध्य भारत में शान्ति और सुव्यव्स्था की स्थापना कर विकेन्द्रीकरण की प्रवृत्ति को कुछ समय तक रोके रखा। मौर्य साम्राज्य के ध्वंसावशेषों पर उन्होंने वैदिक संस्कृति के आदर्शों की प्रतिष्ठा की। यही कारण है की उसका शासनकाल वैदिक पुनर्जागरण का काल माना जाता है।