"मोइनुद्दीन चिश्ती": अवतरणों में अंतर
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यह माना जाता है कि मोइनुद्दीन चिस्ती का जन्म ५३६ हिज़री संवत् अर्थात ११४१ ई॰ पूर्वी पर्सिया के सिस्तान क्षेत्र में हुआ।<ref>[http://www.dargahajmer.com/g_birth.htm</ref> दरगाह शरीफ़ का आधिकारिक जालस्थल]। अन्य खाते के अनुसार उनका जन्म [[ईरान]] के [[इस्फ़हान]] नगर में हुआ।
==हज़्रत ख्वाजा गरीब नवाज़==
हज़्रत ख्वाजा गरीब नवाज़ विश्व् के महान सूफी सन्त् हैं।हज़्रत ख्वाजा गरीब नवाज़ का असलि नाम "हज़्रत ख्वाजा मोइनुद्दिनहसन चिश्टि" हैं।उन्को गरीब नवाज़ नाम इसलिये दिय गया हैं, क्युँकि जब उन के यहाँ कोइ मन्नत् माँगते है तो वो पुरि होति है,और हर गरीब
===जन्म===
हज़्रत गरीब नवाज़(र.अ) का जन्म ५३६ हिज़री संवत् अर्थात ११४१ ई॰ में खुर्स्न प्रान्त् के संजर गांव (इरान्) मैं हुआ था।खन्डह्र के उत्तरि दिशा में हैं,यह जगह २४ घ्ंटों मैं पहुँचा जा सकते हैं। गरीब नवाज़ के पिता "स्यिद ग्यासुददिन हासन" (र.अ)के दादा हज़्रत मुसा करीम(रअ) थे।गरीब नवाज़(रअ) की माँ " बिबी माह-ए-नूर" के प्रदादा "हज़्रत इम्मम हुस्सैन(रअ)" थे।तो हज़्रत गरीब् नवज़ अपने पिता के परिवर से हुस्सैनि सैयद थे, और माँ की तरफ से ह्सेनि सयीद हैं।गरिब नवाज़(र अ)की माँ हज़्रत बिबी उम्मुलव्रा कह्ती हैं कि"जब उनके प्रिय पुत्र उनके ग्र्भ में थे, तब उनके घर में खुशीयाँ,सुख और उन्नती थी,उनके शत्रु भी उनके मित्र बन गये और उन्हें शुभ् और धृमनिश्ष्ट् स्वप्न आते थे।"<ref>http://www.gharibnawaz.com/gharibnawaz.html</ref>
=== शिक्षा ===
ख्वाजा सहेब (र्.अ) ने अपनी पेहली शिक्षा अपने घर में ही पाई।उनके पिता बहुत महान और ग्यानी थे,ख्वाजा साहेब ने क़ुरान ९ साल की आयु में खतम कर लिया ।उसके बाद वे संजर् के म्क्त्बास में गए
===नया जीवन===
अल्लह के इच्छा के अनुसार हज़्रत ख्वाजा गरीब नवाज़् के पिताजी स्वर्ग सीधार गये,वे अनाथ हो गये।उन्होनें अपने पिता से एक उपवन और मिल्ल प्राप्त हुआ। उनके पिता कि म्रुत्य के कुछ् मासों के बाद उनकी माँ का देहाँत् हो गया।ख्वाजा सहिब(र.अ) अपनी छोटी आयु से भी हमेशा फकिर और द्र्वेशीयों के साथ पाये जाते थे।उनके मन में गरीबों और फकिरों के लिये बहुत सम्मान् और आदर था।
एक दिन जब वे पेडों को पानी दे रहे थे, तब एक म्ज़्जुब आए थे।वह म्ज़्जुब "शेक इब्रहिम कुन्दोज़ि (र.अ)"हैं,जब हज़्रत ख्वाजा गरीब नवाज़ ने एक बुढे,व्रुध आदमी को देखा,वे अपना कार्य को छोद कर
===अल्लाह का वरदान===
ख्वाजा साहेब (र अ)मेक्का पहुँचे और एक दिन जब वे नमाज़ पढ् रहे थे
===ख्वाजा साहेब का हिन्दुस्थान और अजमेर में प्रवेश===
हज़्र्त ख्वाजा सहेब(र अ) भरत की तरफ आ रहे थे,अपने शिष्यों के साथ अल्लाह के प्रेम और हज़्रत मुहम्म्द(स अ व्) के अशीर्वाद के साथ ।वे पेहले हैरत् पहुँचे,फिर सब्ज़्वार हये
===अज्मेर मैं उनका प्रवेश ===
ज्ब वे अजमेर् मैं एक वृक्ष की छाया मैं बेटे थे,तब राजा के सैनिक अपने ऊँटों के साथ आए और क्रुरता के साथ उन्हें वहाँ से उट ने के लिये कहा,जब हज़्र्त ने उन्हें कई ओर बांद् ने के लिये कहा तो उन सैनिकों ने उनकी बात् नहीं सुनी और खडे रहे, तो हज़्रत ख्वाजा गरीब नवाज़ ने सुशिष्टता से कहा कि"लो
हज़्रत और उनके प्रश्ंसक अन्ना सागर रोज़ स्न्नान करने जाते हैं,लेकिन एक दिन राजा के सैनिकों ने हज़्रत के प्रशंसकों को रोक दिया तब उनके एक् प्रशंसक वपस आकर उन्हें सारी घट्ना बताते हैं,तब् ख्वाजा सहेब(र अ)ने उनके प्रश्ंसक को एक कुज़ा (मट्का)दिया,और उसमें पानी भर कर् लाने के लिये दिया और जब उन्होंने उसमें पानी भरा तो सारा तालाब का पानी उस मटके मैं आगया।जब यह बात सब को मालुम हुई तो सब आश्च्रय चकित हो गये।सारा तालाब सुख गया,ख्वाजा साहेब् बहुत दयालु थे, उसके बाद कुछ लोगों ने ख्वाजा सहेब से क्षमा माँगी तो उन होनें पानी वापस तालाब में दाल दिया।इस घट्ना के बाद बहुत लोगों ने इस्लाम अपना लिया ।हज़्रत ख्वाजा गरिब नवाज़ के पास अल्लाह का वरदान हैं,जो भी उनके पास जाते हैं उन की बातों से इतने प्रभावित होते हैं कि उनसे दुर नहीं होना चाहते।बहुत लोगों ने इस्लाम अपना लिया।कुछ उद्दाह्र्ण हैं:शादि दिओ,अजए पाल जोगी ।
"शाद दोई" उस समय का पदा लिखा मनुष्य
शाद दोई उस समय का शिक्षित आद्मी था,जो ख्वाजा साहेब से सामना करने आया था
अजाय पाल जोगी बाहुत बडा जादुगर था,उसको राजा ने ख्वाजा साहेब को ट्क्कर देने के लिये भेजा था।अजय पाल ने ख्वाजा सहेब पर् एक बडा सा पत्थर पैंका लेलिन ख्वाजा सहेब को कुछ नहीं हुआ।और वो भी ख्वाजा सहेब के पैरों पर गीर जाता हैं और क्षमा माँगता हैं,और इस्लाम को अपना लेता हैं,तो हज़्रत ख्वाजा सहेब उसका नाम "अब्दुल्लाह्" रख दिया।
हज़्रत ख्वाजा गरीब नवाज़ भारत मैं सीर्फ् इस्लाम,प्रेम,एकता,और शांति का सांदेश देने के लिये आए थे,और वे सफल भी रहे।
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==उनके अखरी पल==
६३३ हिज़री के आते ही उन्हें पता था कि यह उनका अखरी वृष हैं इसलिए जब वे अजमेर के जुम्मा मसाजीद में अपने प्रशंसको के साथ बैटे थे,तो उनहोंने शेख अली संगल(र अ)से केहते हैं की वे हज़्रत ब्खतीयार काकी (र अ)को पत्र लिखकर आने के लिये कहें हैं।ख्वाजा साहेब के बाद क़ुरान-ए-पाक, उनका गालिचा और उनके चप्पल काकी (र अ)को दिया गया और कहा"यह विशवास मुहम्म्द(स अ व्) का हैं,जो मुझे मेरे पीर-ओ-मुर्शीद से मिला हैं,मैं आप पर विशवास करके आप को दे रहा हुँ और उसके बाद उनका हाथ लिया और नभ की ओर देखा और कहा "मैंने तुम्हें अल्लाह पर न्यास्त किया हैं और तुम्हें यह मौका दिया हैं उस आदर और सम्मान प्राप्त करने के लिए।"
उस के बाद ५ और६ रजब को ख्वाजा साहेब अपने कमरे के अंदर गए और क़ुरान-ए-पाक पडने लगे,रात भर उनकी आवाज़ सुनाई दि लेकिन सुबाह को आवाज़ सुनाई नहीं दि।जब कमरे को खोल कर देखा गया,तब वे स्वर्ग चले गये थे
उनकी जनाज़े की नमाज़ उन के बडे पुत्र ख्वाजा फाकरुद्दिन (र अ) ने पदा।वहाँ उनके बहुत सारे प्रशंसक आए थे,और आते रहेंगे।
हर साल हज़्रत के यहाँ उनका उर्स होता हैं बहुत बडे पैमाने प्र हो
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