"अनावृतबीजी": अवतरणों में अंतर

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'''अनावृतबीजी''' या '''विवृतबीज''' (<small>gymnosperm, जिम्नोस्पर्म</small>, अर्थ: नग्न बीज) ऐसे पौधों और वृक्षों को कहा जाता है जिनके बीज फूलों में पनपने और फलों में बंद होने की बजाए छोटी टहनियों या [[कोणधारी कोण|शंकुओं]] में खुली ('नग्न') अवस्था में होते हैं। यह दशा '[[आवृतबीजी]]' (<small>angiosperm, ऐंजियोस्पर्म</small>) वनस्पतियों से विपरीत होती है जिनपर फूल आते हैं (जिस कारणवश उन्हें 'फूलदार' या 'सपुष्पक' भी कहा जाता है) और जिनके बीज अक्सर फलों के अन्दर सुरक्षित होकर पनपते हैं। अनावृतबीजी वृक्षों का सबसे बड़ा उदाहरण [[कोणधारी]] हैं, जिनकी श्रेणी में [[चीड़]] (पाइन), [[तालिसपत्र]] (यू), [[प्रसरल]] (स्प्रूस), [[सनोबर]] (फ़र) और [[देवदार]] (सीडर) शामिल हैं।<ref name="ref60hipel">[http://books.google.com/books?id=WK86jibGx0MC Life: The Science of Biology], David Sadava, David M. Hillis, H. Craig Heller, May Berenbaum, Macmillan, 2009, ISBN 978-1-4292-4644-6, ''... Gymnosperms (which means “naked-seeded”) are so named because their ovules and seeds are not protected by ovary or fruit tissue ...''</ref>
 
== परिचय ==
विवृतबीज वनस्पति जगत् का एक अत्यंत पुराना वर्ग है। यह टेरिडोफाइटा (Pteridophyta) से अधिक जटिल और विकसित है और आवृतबीज (Angiosperm) से कम विकसित तथा अधिक पुराना है। इस वर्ग की प्रत्येक जाति या प्रजाति में बीज नग्न रहते हैं, अर्थात् उनके ऊपर कोई आवरण नहीं रहता। पुराने वैज्ञानिकों के विचार में यह एक प्राकृतिक वर्ग माना जाता था, पर अब नग्न बीज होना ही एक प्राकृतिक वर्ग का कारण बने, ऐसा नहीं भी माना जाता है। इस वर्ग के अनेक पौधे पृथ्वी के गर्भ में दबे या फॉसिल के रूपों में पाए जाते हैं, जिनसे ज्ञात होता है कि ऐसे पौधे लगभग चालिस करोड़ वर्ष पूर्व से ही इस पृथ्वी पर उगते चले आ रहे हैं। इनमें से अनेक प्रकार के तो अब, या लाखों करोड़ों वर्ष पूर्व ही, लुप्त हो गए और कई प्रकार के अब भी घने और बड़े जंगल बनाते हैं। चीड़, देवदार आदि बड़े वृक्ष विवृतबीज वर्ग के ही सदस्य हैं।
 
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इनके अतिरिक्त और भी जटिल और ठीक से नहीं समझे हुए गण पेंटोज़ाइलेलीज़ (Pentoxylales), कायटोनियेलीज़ (Caytoniales) इत्यादि हैं।
 
== साइकाडोफाइटा ==
=== टेरिडोरपर्मेलीज़ या साइकाडोफिलिकेली ===
इस गण कें अंतर्गत आनेवाले पौधे भूवैज्ञानिक काल के कार्बनी (Carboniforous) युग में, लगभग २५ करोड़ वर्ष से भी पूर्व के जमाने में, पाए जाते थे। इस गण के पौधे शुरू में फर्न समझे गए थे, परंतु इनमें बीज की खोज के बाद इन्हें टैरिडोस्पर्म कहा जाने लगा। पुराजीव कल्प के टेरिडोस्पर्म तीन काल में बाँटे गए हैं -
: (१) लिजिनॉप्टेरिडेसिई (Lyginopteridaceae), (२) मेडुलोज़ेसिई (Medullosaceae) और कैलामोपिटिए सिई (Calamopiteyaceae)।
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इसके तना का एक छोटा टुकड़ा मिला है, जिसे कोई विशेष नाम दिया गया है। पत्ती को सैजिनॉप्टेरिस (Sagenopteris) कहते हैं, जो एक स्थान से चार की संख्या में निकलती हैं। पत्ती की शिराएँ जाल जैसा आकार बनाती हैं। इनमें रध्रों (stomata) के किनारे के कोश हैप्लोकीलिक (haplocheilic) प्रकार के होते हैं। परागकण चार या तीन के गुच्छों में लगे होते हैं, जिन्हें काइटोनैन्थस (Caytonanthus) कहते हैं। परागकण में दो हवा भरे, फूले, बैलून जैसे आकार के होते हैं। बीज की फल से तुलना की जाती है। ये गोल आकार के होते हैं और अंदर कई बीजांड (ovules) लगे होते हैं।
 
=== बेनीटिटेलीज़ या साइकाडिऑइडेलीज़ (Bennettitales or Cycadeoidales) गण ===
इसको दो कुलों में विभाजित किया गया है :
*(१) विलियमसोनियेसिई (Williamsoniaecae) और
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साइकाडिआइडेसी कुल में मुख्य वंश साइकाडिआइडिया (Cycadeoidea), जिसे बेनीटिटस (Bennettitus) भी कहते हैं, पाया जाता था। करोड़ों वर्ष पूर्व पाए जानेवाले इस पौधे का फ़ासिल सजावट के लिए कमरों में रखा जाता है। इसके तने बहुत छोटे और नक्काशीदार होते थे। प्रजननहेतु अंग विविध प्रकार के होते थे। सा. वीलैंडी (C. wielandi), सा. इनजेन्स (C. ingens), सा. डकोटेनसिस (C dacotensis), इत्यादि मुख्य स्पोर बनाने वाले भाग थे। इस कुल की पत्तियों में रध्रं सिंडिटोकीलिक (syndetocheilic) प्रकार के होते थ जिससे वह विवृतबीज के अन्य पौधों से भिन्न हो गया है और आवृतबीज के पौधों से मिलता जुलता है। इस गण के भी सभी सदस्य लाखों वर्ष पूर्व ही लुप्त हो चुके है। ये लगभग २० करोड़ वर्ष पूर्व पाए जाते थे।
 
=== साइकडेलीज़===
साइकडेलीज़ गण के नौ वंश आजकल भी मिलते हैं, इनके अतिरिक्त अन्य सब लुप्त हो चुके हैं।
 
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पेंटाग्ज़िलेलीज़ एक ऐसा अनिश्चित वर्ग है जो साइकाडोफाइटा तथा कोनीफेरोफाइटा दोनों से मिलता जुलता है। इस कारण इसे यहाँ उपर्युक्त दोनों वर्गों के मध्य में ही लिखा जा रहा है। यह अब गण के स्तर पर रखा जाता है। इस गण की खोज भारतीय वनस्पतिशास्त्री आचार्य बीरबल साहनी ने की है। इसके अंतर्गत आनेवाले पौधों, या उनके अंगों के फॉसिल बिहार प्रदेश के राजमहल की पहाड़ियों के पत्थरों में दबे मिले हैं। तने को पेंटोज़ाइलान (Pentoxylon) कहते हैं, जो कई सेंटीमीटर मोटा होता था और इसमें पाँच रंभ (stoles) पाए जाते थे। इसके अतिरिक्त राजमहल के ही इलाके में निपानिया ग्राम से प्राप्त तना निपानियोज़ाइलान (Nipanioxylon) भी इसी गण में रखा जाता है। इस पौधे की पत्ती को निपानियोफिलम (Nipaniophyllum) कहते हैं, जो एक चौड़े पट्टे के आकार की होती थी। इसका रंभ आवृतबीज की तरह सिनडिटोकीलिक (syndetocheilic) प्रकार का होता है। बीज की दो जातियाँ पाई गई हैं, जिन्हें कारनोकोनाइटिस कॉम्पैक्टम (Carnoconites compactum) और का. लैक्सम (C. laxum) कहते हैं। बीज के साथ किसी प्रकार के पत्र इत्यादि नहीं लगे होते। नर फूल को सहानिया (Sahania) का नाम दिया गया है।
 
== कोनिफेरोफाइटा ==
=== कॉर्डाइटेलीज ===
कोनीफेरोफाइटा का प्रथम गण कॉर्डाइटेलीज (cordaiteles) हैं, जो साइकाडोफाइटा के पौधों से कहीं बड़े और विशाल वृक्ष हुआ करते थे। पृथ्वी पर प्रथम वृक्षोंवाले जंगल इन्हीं कारडाइटीज के ही थे, जो टेरिडोस्पर्म की तरह, २५ करोड़ वर्ष से पूर्व, इस धरती पर राज्य करते थे। इनकी ऊँचाई कभी कभी १०० फुट से भी अधिक होती थी। इन्हें तीन कुलों में विभाजित किया गया है :
:(१) पिटिई (Pityeae), (२) कारडाइटी (Cordaiteae) और (३) पोरोज़ाइलीई (Poroxyleae)।
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'''पोरोज़ाइली''' कुल में सिर्फ एक ही प्रजाति पोरोज़ाइकलन है, जिसके तने में भीतर बृहत् मज्जा होती है।
 
=== गिंगोएलीज़===
कोनीफेरोफाइटा का दूसरा गण हैं, गिंगोएलीज़ (Ginkgoales)। यह मेसोज़ोइक युग से, अर्थात् लगभग ५-७ करोड़ वर्ष पूर्व से, इस पृथ्वी पर पाया जा रहा है। उस समय में तो इसके कई वंश थे, पर आज कल सिर्फ एक ही जाति जीवित मिलती है। यह गिंगो बाइलोबा (Ginkgo biloba) एक अत्यंत सुंदर वृक्ष चीन देश में पाया जाता है। इसके कुछ इने गिने पौधे भारत में भी लगाए गए हैं। इसकी सुंदरता के कारण इसे 'मेडेन हेयर ट्री' (Maiden-hair tree) भी कहा जाता है।
 
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ऐसा अनुमान है कि इस गण के पौधे कॉर्डाइटी वर्ग से ही उत्पन्न हुए होंगे। इसमें नरयुग्मक तैरनेवाले होते हैं, जिससे यह साइकड से भी मिलता जुलता है। कुछ वैज्ञानिकों के विचार हैं कि ये पौधे सीधे टेरीडोफाइटा (Pteridophyta) से ही उत्पन्न हुए होंगे।
 
=== कोनीफरेलीज़===
कोनीफरेलीज़ गण, न केवल कोनिफेरोफाइटाका ही बल्कि पूरे विवृत बीज का, सबसे बड़ा और आज कल विस्तृत रूप से पाया जानेवाला गण है। इसमें लगभग ५० प्रजातियाँ और ५०० से अधिक जातियाँ पाई जाती हैं। इनमें अधिकांश पौधे ठंडे स्थान में उगते हैं। छोटी झाड़ी से लेकर संसार के सबसे बड़े और लंबी आयुवाले पौधे इस गण में रखे गए हैं। कैलिफॉर्निया के लाल लकड़ीवाले वृक्ष (red wood tree), जिन्हें वनस्पति जगत् में सिकोया (sequoia) कहते हैं, लगभग ३५० फुट गगनचुंबी होते हैं और इनके तने ३०-३५ फुट चौड़े होते हैं। यह संसार का सबसे विशालकाय वृक्ष होता है। इसकी आयु ३,०००-४,००० वर्ष तक की होती है।
 
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कई वनस्पति शास्त्रियों ने टेक्सिनी को कुल का नहीं, गण (टैक्सेल्स) का स्तर दे रखा है।
 
==== पाइनेसी ====
(१) एबिटिनी में बीजांड पत्र (oruliferous bract) एक विशेष प्रकार का होता है और परागकण में दोनों तरफ हवा में तैरने के लिए हवा भरे गुब्बारे जैसे आकार होते हैं। इस उपकुल के मुख्य उदाहरण हैं : पाइनस या चीड़, सीड्रस या देवदार, लैरिक्स (Larix), पीसिया (Picea) इत्यादि।
 
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ऐसा अनुमान है कि पाइनेसी कुल का जन्म पृथ्वी के प्रथम बड़े वृक्षवाले गण कारडाईटेलीज़ (Cordaitales) द्वारा ही हुआ है।
 
==== टैक्सेसी ====
दूसरा कोनीफरेलीज़ का कुल है '''टैक्सेसी'''। इसके दो उपकुल हैं - पोडोकारपिनी और टैक्सिनी। पोडोकारपिनी में भी परागकण में हवा भरे पक्ष (wings) पाए जाते हैं। इसके उदाहरण हैं, पोडोकारपस तथा डैक्रीडियम। टैक्सिनी के परागकण में पक्ष (wing) नहीं होता। टैक्सस, टोरेया और सिफैलोटेक्सस इसके मुख्य उदाहरण हैं। इनमें भी पाइनस जैसे वैस्कुलर ऊतक होते हैं, परंतु कुछ विशेष उंतर भी होता है।
 
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कोनीफरलीज़ गण काफी गूढ़ और विस्तृत है, जिसमें बहुत से आर्थिक दृष्टि से अच्छे पौधे पाए जाते हैं, जैसे चीड़, चिलगोज़ा, देवदार, सिकोया तथा अन्य, जो अच्छी लकड़ी या तारपीन का तेल देनेवाले हैं।
 
=== नीटेलीज़===
कोनीफेरोफाइटा का सबसे उन्नत गण है, नीटेलीज़। इस गण में तीन जीवित पौधे हैं : नीटम (Gnetum), एफिड्रा (Ephedra) और वेलविट्शिया (Welwetschia) आज के कई वैज्ञानिकों ने इन तीनों प्रजातियों की रूपरेखा तथा पाए जानेवाले स्थान की भिन्नता के कारण अलग अलग आर्डर का स्तर दे रखा है। फिर भी कुछ गुण ऐसे हैं जैसे वाहिका (Vessel) का होना, संयुक्त शंकु (compound cone), अत्यंत लंबी माइक्रोपाइल, पत्तियों का आमने सामने (opposite) होना इत्यादि, जो तीनों प्रजातियों में मिलते हैं। इस गण के पौधों को कोनीफेरफ्रोाइटा से इसीलिए हटाकर एक नए ग्रुप क्लेमाइढोस्पर्मोफाइटा में रखा जाने लगा है।