"अन्धता": अवतरणों में अंतर
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इस रोग का कारण यह है कि जन्म के अवसर पर माता के संक्रमित जनन मार्ग द्वारा शिशु का सिर निकलते समय उसके नेत्रों में संक्रमण पहुँच जाता है और तब जीवाणु श्लेष्मकला में शोथ उत्पन्न कर देते हैं। इस रोग के कारण हमारे देशवासियों की बहुत बड़ी संख्या जन्म भर के लिए आँखों से हाथ धो बैठती है। यह अनुमान लगाया गया है कि 30 प्रतिशत व्यक्तियों में गोनोकोक्कस, 30 प्रतिशत में स्टैफिलो या स्ट्रेप्टोकोक्कस और शेष में बैसिलस तथा वाइरस के संक्रमण से रोग उत्पन्न होता है। पिछले दस वर्षों में यह रोग पेनिसिलीन और सल्फोनेमाइड के प्रयोग के कारण बहुत कम हो गया है।
=== लक्षण ===
जन्म के तीन दिन के भीतर नेत्र सूज जाते हैं और पलकों के बीच से श्वेत मटमैले रंग का गाढ़ा स्राव निकलने लगता है। यदि यह स्राव चौथे दिन के पश्चात् निकले तो समझना चाहिए कि संक्रमण जन्म के पश्चात् हुआ है। पलकों के भीतर की ओर से होने वाले स्राव की एक बूँद शुद्ध की हुई काँच की शलाका से लेकर काँच की स्लाइड पर फैलाकर रंजित करने के पश्चात् सूक्ष्मदर्शी द्वारा उसकी परीक्षा करवानी चाहिए। किंतु परीक्षा का परिणाम जानने तक चिकित्सा को रोकना उचित नहीं है। चिकित्सा तुरंत प्रारंभ कर देनी चाहिए।
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