"धातुपाठ": अवतरणों में अंतर
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[[क्रिया]]वाचक मूल शब्दों की सूची को '''धातुपाठ''' कहते हैं। इनसे [[उपसर्ग]] एवं [[प्रत्यय]] लगाकर अन्य शब्द बनाये जाते
प्रमुख [[संस्कृत]] वैयाकरणों (व्याकरण के विद्वानों) के अपने-अपने [[गणपाठ]] और धातुपाठ हैं। गणपाठ संबंधी स्वतंत्र ग्रंथों में वर्धमान (12वीं शताब्दी) का गणरत्नमहोदधि और भट्ट यज्ञेश्वर रचित गणरत्नावली (ई. 1874) प्रसिद्ध हैं। उणादि के विवरणकारों में उज्जवलदत्त प्रमुख हैं। काशकृत्स्न का धातुपाठ [[कन्नड]] भाषा में प्रकाशित है। भीमसेन का धातुपाठ [[तिब्बती]] (भोट) में प्रकाशित है। पूर्णचंद्र का धातुपारायण, मैत्रेयरक्षित (दसवीं शताब्दी) का धातुप्रदीप, क्षीरस्वामी (दसवीं शताब्दी) की क्षीरतरंगिणी, [[सायण]] की माधवीय धातुवृत्ति, श्रीहर्षकीर्ति की धातुतरंगिणी, बोपदेव का कविकल्पद्रुम, भट्टमल्ल की आख्यातचंद्रिका विशेष उल्लेखनीय हैं।
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== धातुपाठ का महत्व ==
संस्कृत भाषा इस मामले में विश्व की अन्य भाषाओं से विलक्षण है कि इसके सभी शब्द धातुओं के एक छोटे से समूह (धातुपाठ) से व्युत्पन्न किये जा सकते हैं। निम्नलिखित उक्ति में इस गुण की महत्ता का दर्शन होता है-
:‘मैं निर्भीकतापूर्वक कह सकता हूँ कि अंग्रेज़ी या लैटिन या ग्रीक में ऐसी संकल्पनाएँ नगण्य हैं जिन्हें संस्कृत धातुओं से व्युत्पन्न शब्दों से अभिव्यक्त न किया जा
- प्रसिद्ध जर्मन भारतविद [[मैक्समूलर]] (1823 – 1900), अपनी पुस्तक 'साइंस आफ थाट' में।
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