"बलुआ पत्थर": अवतरणों में अंतर

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==परिचय==
बलुआ पत्थर में वे ही धात्विक तत्व हाते हैं, जो बालू में। स्फटिक की बहुतायत होती है, जिसके साथ प्राय: [[फ़ेल्सपार]] तथा कभी-कभी श्वेत [[अभ्रक]] भी होता है। कभी कभी पत्थर की विभिन्न परतों के बीच में अभ्रक की तह सी जमी हुई मालूम पड़ती है। [[खान]] से पत्थर निकालने में इस तह का महत्वपूर्ण योगदान है। इसी के कारण पत्थर की पतली परतें निकाली जा सकती हैं, जो फर्श बनाने के काम आती हैं। योजक पदार्थ प्राय: बारीक कैल्सिडानी सिलिका होता है, किंतु कभी कभी मूल स्फटिक भी योजक का काम करता है। ऐसी दशा में शिला स्फटिक जैसी तैयार होती है। [[कैल्साइट]], ग्लॉकोनाइट, लौह ऑक्साइड, कार्बनीय पदार्थ और अन्य अनेक प्रकार के पदार्थ भी जोड़ने का काम करते हैं, तथा अपना अपना विशिष्ट रंग प्रदान करते हैं, जैसे ग्लॉकोनाइट (glauconite) वाली शिलाएँ हरी, और लोहेवाली लाल, भूरी या धूसर होती हैं। जब योजक पदार्थ चिकनी मिट्टी होता है, तब शिला प्राय: श्वेत या धूसर वर्ण की होती है और अत्यंत दृढ़ता से जमी हुई होती है।
[[चित्र:Zandsteen 20x.jpg|right|thumb|300px|२० गुना आवर्धित बलुआ पत्थर]]
शुद्ध बलुआ पत्थर में ९९% तक [[सिलिका]] हो सकता है। मुलायम पत्थर पीसकर बालू बनाने के काम आता है, किंतु जो बहुत दृढ़ता से पत्थर जमा होता है, उसकी [[ईंट|ईंटें]] बना ली जाती हैं। यह भट्ठियों तथा अँगीठियों में अस्तर लगाने के काम आती हैं, क्योंकि सिलिका अत्यंत तापसह होता है। [[गैनिस्टर]] (ganister) शिला इसी प्रकार की होती है। अत्यंत दृढ़तापूर्वक जमे, कुछ कम शुद्ध पत्थर [[सिल]], बट्टे और [[आटा चक्की|चक्कियाँ]] बनाने के काम आते हैं।