"विराम (चिन्ह)": अवतरणों में अंतर

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यूरोप में यूनानियों तथा रोमनों में इसका प्रचार था। प्रसिद्ध लेखक [[दोनेतुस]] ने अपने "आर्स ग्रामेतिका" (Ars Grammatica) में उच्च बिंदु "कामा" के लिए, मध्यबिंदु कोलन के लिए तथा निम्नबिंदु पूर्ण विराम के लिए दिया है। धीरे-धीरे इससे वर्तमान चिन्हों का विकास हुआ। मध्ययुग में इसके एकाधिक रूप मिलते हैं। यूरोप में 16वीं सदी से विराम का नियमित प्रयोग मिलने लगता है। आरंभ में इसका विरोध भी बहुत हुआ। [[द अनुंज़ियो]] अपने को "कामा" का शत्रु कहा करता था। [[बारतोली]] ने यह कहते हुए विरोध किया था कि मुद्रित पुस्तकों में विराम चिह्न पतिंगों की तरह हैं जो पाठक को बहुत खटकते हैं। किंतु इस प्रकार के विरोधों के बावजूद अपनी उपयोगिता के कारण विरामचिन्हों का प्रयोग बढ़ता ही गया और अब वे लेखन एवं मुद्रण के आवश्यक अंग बन गए हैं।
 
[[हिंदी]] में '''खड़ी पाई''' या पूर्ण विराम भारतीय परंपरा का है, जिसका प्राचीन नाम "दंड" था। शेष चिन्ह [[अंग्रेजी]] के माध्यम से यूरोप से आए हैं। अधिकांश विरामचिह्न ( . : , ; ) मूलत: बिंदु पर आधारित हैं। लिखते समय रुकने पर कलम कागज पर रखने से बिंदु सहज ही बन जाता था। इस प्रकार पूर्ण विराम के रूप में अंग्रेजी आदि का बिंदु सहज ही पूर्ण विराम का द्योतक बन बैठा। कामा, पूर्ण विराम या बिंदु में ही नीचे की ओर एक शोशा बढ़ा देने से बना है। प्रश्नवाचक या आश्चर्यसूचक चिह्नों का विकास स्वतंत्र रूप से हुआ है। इसकी उत्पत्ति के बारे में मतभेद है। लगता है प्रश्नवाचक चिह्न [[लैटिन भाषा]] के प्रश्नार्थी शब्द Quaestio का संक्षिप्त रूप (Qo) है, जिसमें (Q) ऊपर तथा o नीचे (?) है। इसी प्रकार आश्चर्यसूचक चिह्न (!) लैटिन भाषा का प्रसन्नार्थी शब्द Io है जिसमें आइ और ओ ऊपर नीचे हैं।
 
== बाहरी कड़ियाँ ==