"परमात्मा": अवतरणों में अंतर
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'''अब प्रथम वेद सिद्धान्त से परमात्मा का विचार
'''पुरुष ऐवेदं सर्वं यत् भूतं यत् च
'''ऊँ ब्रह्मैवेदममृतम् पुरुस्तात ब्रह्म, पश्चात ब्रह्म
'''अधःश्चोर्ध्व च प्रस्रतं, ब्रह्मैवेर्दं विश्वं इदं
'''यह अविनाशी ब्रह्म आगे पीछे, दाहिने बांये और ऊपर नीचे सर्वत्र व्याप्त
'''दृष्टिं ज्ञानमयी कृत्वा पश्येद ब्रह्ममयं
'''सा दृष्टिः परमोदारा न
'''दृष्टि को ज्ञानमय करके संसार को ब्रह्ममय देखे यही दृष्टि अति उत्तम है, नासिका के अग्र भाग को देखने वाली
'''यदिदं सकलं विश्वं नानारूपं
'''तत् सर्वं ब्रह्मैव प्रत्यस्ता शेष भावना
'''यह सम्पूर्ण विश्व जो अज्ञान से नाना प्रकार का प्रतीत हो रहा है, समस्त भावनाओं के दोष से रहित (अर्थात्) निर्विकल्प ब्रह्म ही
'''आत्मैवेदं जगत्तसर्वं आत्मनोsन्यत् न
'''मृदो यत्वत् घटाटीनि स्वत्मानं सर्व
'''यह सम्पूर्ण जगत ही ब्रह्म
'''एतत सर्व मिदं विश्वं
'''परब्रह्म स्वरूपस्य विष्णोशक्ति
'''द्वे रूपे ब्रह्मणस्तस्य मूर्तमचामूर्त एव
'''क्षराक्षर स्वरूपेते सर्व भूतेष्व
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'''प्रकृतिर्या मया ख्याता व्यक्ताव्यक्त स्वरूपिणी'''
'''पुरुषश्चाश्युभावे तौ लीयते परमात्मनि'''
'''परमात्मा च सर्वेषामाधारः परमेश्वरः'''
'''विष्णु नामा सा वेदेषु वेदान्तेषु च
'''अव्यक्त, प्रकृति और पुरुष, क्षर अक्षर ब्रह्म ये दोनो भाव परमात्मा में लीन हो जाते
'''यदेजति पतति यत् च तिष्ठति, प्राणात् प्राणन् यद् भुवति
'''तत् पृथ्वी आधार, विश्वरूप, तत् सम्भुय भवत्य
'''हिलता, चलता, सर्व व्यापक जड़ चैतन्य सहित पृथ्वी से लेकर सब मिलकर एकमेव अद्वितीय विश्वरूप ही
'''आत्मैव तदिदं विश्वं तत् सृज्यते सृजति
'''त्रायते त्राति विश्वात्मा ह्रियते
'''यह सम्पूर्ण विश्व ही परमात्मा
'''विश्वरूप दर्शनयोग गीता अध्याय 11 में निम्नलिखित प्रमाण
'''इहैकस्थं जगत कृत्स्नम् पश्याद्य
'''मम् देहे गुडाकेश यच्चान्य
'''अनेक बाहुदर पक्य नेत्रं पश्यामि त्वां सर्वतोsनन्त
'''नान्तं न मध्यं न पुनस्त वादिं पश्यामि विश्वेश्वर
'''चराचर सहित सम्पूर्ण जगत इस विश्वरूपी विराट में ही
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