"समर्थ रामदास": अवतरणों में अंतर
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12 वर्ष की अवस्था में अपने विवाह के समय "शुभमंगल सावधान" में "सावधान" शब्द सुनकर वे विवाहमंडप से निकल गए और टाकली नामक स्थान पर श्रीरामचंद्र की उपासना में संलग्न हो गए। उपासना में 12 वर्ष तक वे लीन रहे। यहीं उनका नाम "रामदास" पड़ा।
गृहत्याग करने के बाद १२ वर्ष के नारायण नासिक के पास टाकली नाम के गाव को आए |वहा नंदिनी और गोदावरी नदियोंका संगम है |इसी भूमि को अपनी तपोभूमि बनाने का निश्चय करके उन्होंने कठोर तप शुरू किया|वे प्रातः ब्राह्ममुहूर्त को उठकर प्रतिदिन १२०० सूर्यनमस्कार लगाते थे |उसके बाद गोदावरी नदी में खड़े होकर राम नाम और गायत्री मंत्र का जाप करते थे|दोपहर में केवल ५ घर की भिक्षा मांग कर वह प्रभु रामचंद्र जी को भोगलगाते थे|उसके बाद प्रसाद का भाग प्राणियों और पंछियों को खिलने के बाद स्वयं ग्रहण करते थे|दोपहर में वे वेद,वेदांत, उपनिषद्
[[चित्र:Ramdas swami.jpg|thumb|स्वामी रामदास]]
[[चित्र:Samarth ramdas & guru hargovindaji.jpg|thumb|समर्थ रामदास तथा गुरु हरगोविन्दजी]]
== तीर्थयात्रा और भारतभ्रमण ==
आत्मसाक्षात्कार होने के बाद समर्थ रामदास तीर्थयात्रा पर निकल पड़े| 12 वर्ष तक वे भारतवर्ष का भ्रमण करते रहे।घुमते घुमते वे हिमालय आये |हिमालय का पवित्र वातावरण देखने के बाद मूलतः विरक्त स्वभाव के रामदास जी के मन का वैराग्यभाव जागृत हो गया |अब आत्मसाक्षात्कार हो गया
== शिष्यमंडळ ==
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[[चित्र:Sajjangad_ramdas.jpg|thumb|प्रभु श्री रामचंद्र जी]]
[[चित्र:Sajjangad samadhi.jpg|thumb| समर्थ रामदास स्वामीजी कि समाधी]]
अपने जीवन का अंतिम समय उन्होंने सातारा के पास परळी के किले पर व्यतीत किया। इस किले का नाम सज्जनगढ़ पड़ा।तमिलनाडु प्रान्त के तंजावर ग्राम में रहने वाले 'अरणिकर ' नाम के अंध कारीगर ने प्रभु श्री रामचंद्र जी,माता सीता जी
प्रतिवर्ष समर्थ रामदास स्वामी के भक्त भारत के विभिन्न प्रांतों में 2 माह का दौरा निकालते हैं और दौरे में मिली भिक्षा से सज्जनगढ़ की व्यवस्था चलती है।
== व्यक्तित्व ==
समर्थ जी का व्यक्तित्व भक्ति ज्ञान वैराग्य से ओतप्रोत था । मुखमण्डलपर दाढ़ी तथा मस्तकपर जटाएं
==ग्रन्थरचना==
समर्थ रामदास जी ने दासबोध,आत्माराम, मनोबोध आदि ग्रंथोंकिं रचना है ।समर्थ जी का प्रमुख ग्रन्थ 'दासबोध ' गुरुशिष्य संवाद रूप में है । यह ग्रंथराज उन्होनें अपने परमशिष्य योगिराज कल्याण स्वामी के हाथोंसे महाराष्ट्र के 'शिवथर घल (गुफा)' नामक रम्य एवं दुर्गम गुफा में लिखवाया । इसके साथ उनके द्वारा रची गयी ९० से अधिक आरतियाँ महारष्ट्र के घर घर में गायी जातीं हैं । आपने सैंकड़ो 'अभंग' भी लिखें हैं ।समर्थजी स्वयं अद्वैत वेदांति एवं भक्तिमार्गी संत थे किन्तु उन्होंने तत्कालीन समाज कि अवस्था देखकर ग्रंथोंमें राजनीती, प्रपंच,व्यवस्थापन शास्त्र, इत्यादि अनेको विषयोंका मार्गदर्शन किया है| समर्थ जी ने सरल प्रवाही शब्दोमें देवी देवताओंके १०० से अधिक के स्तोत्र लिखें हैं । इन स्तोत्र एवं आरतियोंमें भक्ति,प्रेम एवं वीररस का आविष्करण है । ।आत्माराम
==कार्य==
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== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://mr.wikibooks.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A4%AC%E0%A5%8B%E0%A4%A7 दासबोध]
* [http://www.dasbodh.com दासबोध,आत्माराम
* [http://www.prabhasakshi.com/ShowArticle.aspx?ArticleId=120223-105103-320010 छत्रपति शिवजी के गुरु थे समर्थ स्वामी रामदास]
* [http://www.dasbodh.com/ दासबोध.कॉम ( फ्री डाउनलोड )]
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