"सहज वृत्ति (इंस्टिंक्ट)": अवतरणों में अंतर
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'''सहज वृत्ति'''
इसी अवधारणा के लिए एक और शब्द है 'सहज व्यवहार'.
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अन्य समाजशास्त्रियों का तर्क है कि मनुष्य में कोई सहज वृत्ति नहीं होती है; वे उसे इस रूप में परिभाषित करते हैं, "एक प्रजाति विशेष के प्रत्येक सदस्य में मौजूद रहने वाले जटिल व्यवहार, जो सहज होते हैं और जिनपर काबू नहीं पाया जा सकता है." ऐसे समाजशास्त्रियों का तर्क है कि सेक्स और भूख जैसी प्रवृत्तियों को सहज वृत्ति नहीं माना जा सकता क्योंकि उनपर काबू पाया जा सकता है. यह पारिभाषिक तर्क जीव विज्ञान और समाजशास्त्र की कई परिचयात्मक पाठ्यपुस्तकों में मौजूद है,<ref>''समाजशास्त्र: एक परिचय'' - रॉबर्टसन, इयान; वॉर्थ प्रकाशक, 1989</ref> लेकिन अभी भी इसपर गरमा-गरम बहस जारी है.<br />मनोविज्ञानी इब्राहीम मास्लो का तर्क है कि मनुष्यों में अब कोई भी ''सहज वृत्ति'' मौजूद नहीं रह गयी है क्योंकि हमारे पास कुछ परिस्थितियों में उनपर काबू पाने की क्षमता मौजूद है. उनका मानना है कि जिसे हम सहज वृत्ति कहते हैं उसे अक्सर सटीक तरीके से परिभाषित नहीं किया जाता, और वास्तव में वह अति सशक्त ''इच्छा'' के सिवा और कुछ नहीं है. मास्लो के लिए, सहज वृत्ति वह है जिसपर काबू न पाया जा सके, और इसलिए अतीत में संभवतः यह मनुष्यों पर लागू होती रही होगी लेकिन आज ऐसा नहीं है.<ref>एब्राहम एच. मासलो, ''प्रेरणा और व्यक्तित्व'' अध्याय 4, इंस्टिग्ट थ्योरी रिएक्ज़माइंड</ref>
अपनी पुस्तक 'एन इंस्टिंक्ट फॉर ड्रेगंस<ref>डेविड ई. जोन्स, ''[http://books.google.com/books?id=P1uBUZupE9gC&printsec=frontcover&hl=sv&source=gbs_v2_summary_r&cad=0#v=onepage&q=&f=false एन इंस्टिंक्ट फॉर ड्रैगन]''
== इन्हें भी देखें ==
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