"सातवाहन": अवतरणों में अंतर

[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
छो बॉट से अल्पविराम (,) की स्थिति ठीक की।
पंक्ति 13:
 
==सातवाहनों का उदय तथा उनका मूल निवास स्थान==
सातवाहनों के अभ्युदय तथा उनके मूल निवास स्थान को ले कर विभिन्न विद्वानों में गहरा मतभेद है। शिलालेख तथा सिक्कों में वर्णित सातवाहन और शातकर्णी शासकों को पुराणों में आन्ध्र, आन्ध्र-मृत्य तथा आन्ध्र जातीय नामों से पुकारा गया है। इस आधार पर विद्वान इस निर्णय पर पहुँचे है कि सातवाहन अथवा शातकरणी राजा आन्ध्रों के समतुल्य थे। रैपसन, स्मिथ तथा भण्डारकर के अनुसार सयातवाहन शासक आन्ध्र देश से सम्बन्धित थे। आन्ध्र लोगों के विषय में पुराण कहते है कि वे लोग प्राचीन तेलगु प्रदेश जो कि गोदावरी तथा कृष्णा नदी के मध्य में स्थित था, के निवासी थे। एतरेय ब्राह्मण में उनका उल्लेख ऐसी जाति के रूप में हुआ है जो आर्यों के प्रभाव से मुक्त थी। इंडिका में मैगस्थनीज उनकी शक्ति एवं समृद्धि का उल्लेख किया ह। अशोक के शिलालेखों में उनका वर्णन ऐसे लोगों के रूप में हुआ है जो कि उसके साम्राज्य के प्रभाव में थे। परन्तु मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद उनका क्या हुआ इसका पता नही चलता। सम्भवतः उन्होनं अपने आपको स्वतन्त्र घषित कर दिया। ऊपर वर्णित इतिहासकार यद्यपि आन्ध्रप्रदेश को सातवाहनों का मूल निवास स्थान मानते है तथापि उनकी शक्ति के केन्द्र को लेकर इन विद्वानों में मतभेद हैं। जहाँ स्मिथ श्री काकुलम् को सातवाहनों अथवा आन्ध्रों की राजधानी मानते हैं। परन्तु सातवाहन के आन्ध्रों के साथ सम्बन्ध को लेकर विद्वानों में मतभेद है। सामवाहन वंश के शिलालेखों में इा काल के शासकों को निरन्तर रूप से सातवाहन अथवा शातकर्णी कहा गया है। साहित्यिक ग्रन्थों में इनके लिए यदाकदा शाली वाहन शब्द का भी प्रयोग हुआ है। परन्तु इस संदर्भ में आन्ध्र शब्द का प्रयोग इस वंश के किसी भी शिलालेख में नही है। दूसरी ओर शिलालेखों , सिक्कों तथा साहित्यिक स्रोतों के आधार पर पश्चिमी भारत को इनका मूल निवास स्थान माना गया है। इस तथ्य का प्रमाण नानाघाट (पुना जिला) तथा साचीं (मध्यप्रदेश) के आरम्भिक शिलालेखों से भी मिलता है। इस आधार पर डा0 गोपालचारी ने प्रतिष्ठान (आधुनिक पैठान जो कि प्राचीन हैदराबाद राज्य के औरंगाबाद में स्थित है) तथा उसके आसपास के क्षेत्र के सातवाहनों का मूल निवास स्थान माना है। इसके अतिरिक्त वी0एस0 सुकूथानकर ने बेल्लारी जिले को; एच0सी0राय0 चौधरी ने अन्य देश के दक्षिणी हिस्से को तथा वी0वी0 मिराशी ने वेन गंगा नदी के दोनों किनारों से लगे बरार प्रदेश को सातवाहनों का मूल निवास स्थान माना है। इस आधार पर सातवाहनों तथा आन्ध्रों का समतुल्य एवं सजातिय होना सन्देहास्पद ही है। इस विषय में विद्वानों ने यह सुझाया है कि सातवाहनों ने अपने आरम्भिक जीवन की दक्कन से शुरुआत की तथा कुछ ही समय में आन्ध्र प्रदेश को भी जीत लिया। कालान्तर में जब शक तथा अमीर आक्रमणों के कारण सातवाहन साम्राज्य के पश्चिमी तथा उत्तरी क्षेत्र उनके हाथों से जाते रहे तब कदाचित उनकी शक्ति गोदावरी तथा कृष्णा नदी के मध्य क्षेत्र अर्थात आन्ध्र प्रदेश तक सीमित हो गई तथा अब सातवाहनों को आन्ध्रों के नाम से जाना जाने लगा।
 
सातवाहनों की उत्पति के विषय में भी हमें जानकारी नही है। कुछ विद्वानों ने उनकी तुलना अशोक के शिलालेखों में वर्णित सतीयपुत्रोंसे तथा कुछ ने प्लिनी द्वारा वर्णित सेतई से की है। कुछ अन्य विद्वानों ने शब्द भाशा विज्ञान के आधार पर शातकर्णी तथा सातवाहन शब्दों को परिभाषित किया है चाहे इन शब्दों की महत्ता कुछ भी रही हो परन्तु सातवाहन वंश के शिलालेखों के आधार पर यह लगभग निश्चित है कि सातवाहन भी शुंग तथा कण्व शासकों की तरह ब्राह्मण थे। इस बात का प्रमाण नासिक शिलालेख से भी मिल जाता है जिसमें गौतमी पुत्र श्री शातकर्णी को एक ब्राह्मण (अद्वितिय ब्राह्मण) तथा खतिय-दप-मान-मदन अर्थात क्षत्रियों का मान मर्दन करने वाला आदि उपाधियों से सुशेभित किया है। इसी शिलालेख के लेखक ने गौतमीपुत्र की तुलना [[परशुराम]] से की है। साथ ही दात्रीशतपुतलिका में भी शालीवाहनों को मिश्रित ब्राह्मण जाति तथा नागजाति से उत्पन्न माना गया है।
पंक्ति 38:
 
===हाल (20 ई0पू0 - 24 ई0पू0)===
हाल सातवाहनों का अगला महत्पूर्ण शासक था। यद्यपि उसने केवल चार वर्ष ही शासन किया तथापि कुछ विषयों उसका शासन काल बहुत महत्वपूर्ण रहा। ऐसा माना जाता है कि यदि आरम्भिक सातवाहन शासकों में शातकर्णी प्रथम योद्धा के रूप में सबसे महान था तो हाल शांतिदूत के रूप में अग्रणी था। हाल साहित्यिक अभिरूचि भी रखता था तथा एक कवि सम्राट के रूप में प्रख्यात हुआ। उसके नाम का उल्लेख पुराण, लीलावती, सप्तशती, अभिधान चिन्तामणि आदि ग्रन्थों में हुआ है। यह माना जाता है कि प्राकृत भाषा में लिखी गाथा सप्तशती अथवा सतसई (सात सौ श्लोकों से पूर्ण) का रचियता हाल ही था। बृहदकथा के लेखक गुणाढ्य भी हाल का समकालीन था तथा कदाचित पैशाची भाषा में लिखी इस पुस्तक की रचना उसने हाल ही के संरक्षण में की थी। कालानतर में बुद्धस्वामी की बृहदकथा‘यलोक-संग्रह , [[क्षेमेन्द्र]] की बृहदकथा-मंजरी तथा [[सोमदेव]] की [[कथासरितसागर]] नामक तीन ग्रन्थों की उत्पति [[गुणाढ्य]] की [[बृहदकथा]] से ही हुई।
 
हाल के प्रधान सेनापति विजयानन्द ने अपने स्वामी के आदेशानुसार [[श्रीलंका]] पर आक्रमण कर उसे जीत लिया। इस विजय अभियान से वापिस लौटते समय वह कुछ समय के लिये सप्त गोदावरी भीमम् नामक स्थान पर रूका। वहाँ विजयानन्द ने श्रीलंका के राजा की अति रूपवान पुत्री लीलावती की चर्चा सुनी जिसका वर्णन उसने अपने राजा हाल से किया। हाल ने प्रयास कर लीलावती से विवाह कर लिया। किवदंती है कि हाल ने पूर्वी दक्कन में कुछ सैनिक अभियान किये परन्तु साक्ष्यों के अभाव में अधिकतर विद्वान इसे गलत मानते हैं। यद्यपि हाल तक के सातवाहन शासकों के शासनकाल में राजनैतिक क्षेत्र के अतिरिक्त साहित्यिक तथा आर्थिक क्षेत्रों में भी अत्याधिक विकास हुआ तथा व्यपार-वाणिज्य शहरों के विकास एवं जलपरिवहन की उन्नति हुई जो कि प्रथम शताब्दी ई0 के दूसरे मुण्डलक अथवा पुरिद्रंसेन के शासन काल में अपने उत्कर्ष की पराकाष्ठा पर पहुँच गई, तथापि आने वाले लगभग पचास वर्ष सातवाहन साम्राज्य के लिए बड़े ही कठिन साबित हुए। ऐसा प्रतीत हुआ मानो के [[पश्चिमी क्षत्रप|पश्चिम क्षत्रपों]] के रूप में हुए विदेशी आक्रमण के साथ ही सातवाहन साम्राज्य का पतन होने को है। कुषाण उत्तर-पश्चिम में अपना प्रसार कर रहे थे तथा उनके दबाव में शक तथा पहलाव शासक मध्य तथा पश्चिमी भारत की ओर आकर्षित होकर सातवाहनों से संघर्ष करने को आतुर थे। क्षहरात वंश के पश्चिमी क्षत्रपों ने अपने को पश्चिमा राजपुताना, गुजरात तथा काठियावाड़ में स्थापित कर लिया था। इन शक शासकों ने 35 ई0 से लेकर लगभग 90ई0 तक सातवाहन राज्य पर आक्रमण किये। उन्होंने सातवाहनों से पूर्वी तथा पयिचमा मालवा प्रदेशों को जीता; उत्तरी कोंकण (अपरान्त) उत्तरी महाराष्ट्र, जो कि सातवाहन शक्ति का केन्द्र था तथा बनवासी (वैजयन्ती) तक फैले दक्षिणी महाराष्ट्र पर भी अपना प्रभुत्व जमा लिया। क्षहरात वंश का पहला शासक घूमक था जिसकी जानकारी के स्त्रोत कुछ सिक्कें है जो कि अधिकांशतः गुजरात काठियावाड़ के तटीय प्रदेश तथा यदाकदा मालवा से पाए हैं। घूमक का उत्तराधिकारी नहपान था जिसकी जानकारी हमें उसके बहुसंख्य सिक्कों पर राजा (अथवा राजन्) की उपाधि धारण की है। वहीं शिलालेखों उसकी उपाधि क्षत्रप तथा महाक्षत्रप मिली। नासिक, कारले तथा जुनार (उत्तरी महाराष्ट्र) के उसके शिलालेख; एसके बहुसंख्य सिक्कें तथा उसके जामाता शक अशवदात के द्वारा उत्तरी तथा दक्षिणी भारत में दिए गए दान सब के सब ये प्रमाणित करते हैं कि नहपान के समय में क्षहरात वंश का साम्राज्य काफी विस्तुत था तथा उसने सातवाहन शासकों से काफी बड़ा प्रदेश छीन कर ही अपने साम्राज्य को इतना विशाल बनाया था। नहपान तथा उसके जामाता शक अशवदत ने मालवा, नर्मदा घाटी, उत्तरी कोंकण, बरार का पश्चिमा भाग एवं और दक्षिणी महाराष्ट्र को जीतकर पश्चिमी दक्कन में सातवाहन शक्ति को ल्रभ्र उखाड़ फैंका। वे सातवाहन राजा जो नहपान के हाथों पराजित हुए कदाचित सुन्दर शातकर्णी, चकोर शातकर्णी तथा शिवसाती थे जिनका कि कार्यकाल बहुत ही छोटा था (इनमें से पहले दो का शासन काल मात्रा डेढ़ वर्ष था) परन्तु यह परिस्थितियां अधिक समय तक नही चली तथा गौतमी पुत्र श्री शातकर्णी के सातवाहन शासक बनते ही इस क्षहरात-सातवाहन संघर्ष में नया मोड़ आया।