"सारावली": अवतरणों में अंतर

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* ३. १२ राशियों के नाम, राशियों के स्वरूप, कालपुरुष के अवयव, अवयवों का प्रयोजन, १२ राशियों के नामांतर, राशि के पर्याय, मण्डल व चक्रार्ध स्वामी, चक्रार्ध स्वामी के अनुसार फल, १२ राशियों के स्वामी और नवांशधिपति, स्पष्टार्थ स्वामी चक्र, स्पष्टार्थ नवांश चक्र, भवनाधिप के बिना फलादेश नही होता, वर्गोत्तम नवांश तथा द्वादशांश का वर्णन, द्रेष्कांण एवं होरा स्वामी, स्पष्टार्थ द्रेष्काण चक्र, स्पष्टार्थ होरा चक्र, त्रिशांश के स्वामी, स्पष्टार्थ त्रिशांश चक्र, सप्तमांश के स्वामी, स्पष्टार्थ सप्तमांश चक्र, राशियों मे वर्ग भेद संख्या का ज्ञान, वर्ग भेद का आनयन, राशियों की क्रूराक्रूरादि पुरुष, स्त्री, चर, स्थिर, द्विस्वभाव, तथा गण्डान्त संज्ञायें, गण्डान्त में जायमान का फल, राशियों की दिशा व फल, कौन कौन राशि किस दिशा व समय मे बली, राशियों की दिन रात्रि पॄष्ठोदयादि संज्ञा, राशियों का बल, १२ भावों के नाम, १२ भावों के नामान्तर, चतुरस्त्र, केंद्रादि संज्ञा, चतुर्थ व दसम के नामान्तर, नवम, सप्तम, पंचम के नामान्तर, ६, ३, १२, २, भावों के नामान्तर, फणफर, आपोक्लिम सज्ञा, उपचय और अनुपचय संज्ञा, ग्रहों की मूल त्रिकोण राशि, उच्च नीचादि ज्ञान, राशियों की ह्रस्व, दीर्घ, मध्योदय संज्ञा, ह्रस्वोदयादि का फल, राशियों का प्लव व प्रयोजन, राशियोम के वर्ण तथा प्रयोजन.
 
* ४. कालपुरुष के आत्मादि विभाग, आत्मादि का प्रयोजन, द्रेष्काणवश कालावयवों की उतपत्ति, लगन के आधार पर वाम, दक्षिण अंग तथा निर्बल सबल संज्ञा, लग्न द्रेष्काणवश कालावयव का ज्ञान, अंग का प्रयोजन, ग्रहों के राजत्वादि अधिकार व प्रयोजन, कौन ग्रह किस दिशा का स्वामी, ग्रहों की शुभ पाप संज्ञा, सूर्य, चन्द्र, बुध, मंगल के नामान्तर, गुरु, शुक्र, शनि के नामान्तर, सूर्यादि ग्रहों के वर्ण और अधिदेवता, अधिदेवताओं का प्रयोजन, ग्रहों की पुरुष, स्त्री, नपुंसक, तथा विप्रादि संज्ञा एवं तत्वों के अधिपति, ग्रहों के रस तथा स्थान, ग्रहों के वस्त्र तथा धातु, काल एवं ॠतुओं के स्वामी ग्रह, कालाधिपति प्रयोजन, वेदों के अधिपति, लोक स्वामी ग्रह, सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि का स्वरूप और गुण, नैसर्गिक मित्र, शत्रु, और सम का ज्ञान, ग्रहों के तत्कालिक मित्र और शत्रु , पंचधा मैत्री विचार, ग्रहों की साधारण, और पूर्ण द्रष्टि, ग्रहों के चार प्रकार के बल, दिग्बल, स्थान बल, काल बल, चेष्टा बल, आयन बल, द्रेष्काण बल, दिन रात्रि विभाग बल, नैसर्गिक बल, सात प्रकार के बल का कथन, ग्रहों की असफलता.
 
* ५. ग्रहों की दीप्तादि ९ प्रकार की अवस्था कथन, दीप्तादि का ज्ञान, दीप्त अवस्थागत ग्रह फल, स्वस्थ, मुदित, शान्त, शक्त, पीडित, भीत, विकल, खल, उच्च राशि में वक्री होने पर ग्रह फल, उच्चादि बल में प्रेष्ठादि कथन, पूर्ण चन्द्र में राजा, आयु मध्य मे सुख योग, राशि भेद फल कथन, फल भेद का निर्णय, मूल त्रिकोण व स्वगॄह के अंश, उच्च नीचादि राशि स्थित शुभ ग्रहों में फल का न्यूनाधिक्य, नीचादि राशि स्थित पाप ग्रहों के अशुभ फलों मे न्यूनाधिक्य, शुभ फल का अभाव और अशुभ फल की प्राप्ति, उच्च मूल और त्रिकोण मे स्थित ग्रह फल, स्वराशि फल, मित्र राशि व होरा में स्थित ग्रह का फल, स्वद्रेष्काण व स्वनवांश बल से युक्त ग्रह का फल, त्रिशांश बल से युक्त व शुभ ग्रह से द्र्ष्ट ग्रह का फल, पुरुष राशि, स्त्री राशि, बल से युक्त ग्रह का फल, स्थान बल, चेष्टा बल, दिग बल, अयन बल, युत ग्रह का फल, शुभ, पाप, वक्री ग्रह का फल, निष्कण्टक राज्य प्रद ग्रह का फल, दिन रात्रि बल से युक्त ग्रह का फल, वर्शेषादि ग्रह फल, पक्षबल से युक्त ग्रह का फल, बलवान शुभ ग्रहों का फल, बलवान पाप ग्रहों का फल, स्वमित्रादि राशिगत ग्रहों की दशा मे नाम, बलादि दशा के फल, विषम राशिगत ग्रह का फल, समराशिगत ग्रह का फल