"पक्षीविज्ञान": अवतरणों में अंतर

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[[भारतीय संस्कृति]] में पक्षियों का बहुत महत्व है। विभिन्न देवताओं के वाहन के रूप में उन्हें सम्मान मिलता रहा है यथा विष्णु का गरुड, ब्रह्मा और [[सरस्वती]] का हंस, [[कामदेव]] के तोता, कार्त्तिकेय का मंयूर, इंद्र तथा अग्नि का अरुण क्रुंच (फलैमिंगो), वरुण का चक्रवाक (शैलडक) आदि। लक्ष्मी के वाहन उल्लू आदि सम्मान नहीं मिलता है तब वह वास्तव में लक्ष्मी को कम सम्मान देने की इच्छा से। [[कृष्ण]] का ‘मोर पंख’ तो सभी भारतीयों के हृदय में स्थान पा चुका है। हंसों का ‘नीर-क्षीर’ न्याय तो प्रसिद्ध ही है। पहले तो मैं इसे कवियों की कल्पना ही मानता था किंतु जब अरुण क्रुंचों को बहते पानी में से (जिसमें मानों ‘नीर-क्षीर’ मिला हो) अपनी विशेष छन्नीदार चोंचो की सहायता से अपने लिए पौष्टिक भोजन (क्षीर) निकालकर खाते हुए देखा तब संस्कृति साहित्यकारों की अवलोकन शक्ति और रचना शक्ति की भूरि-भूरि प्रशंसा ही कर सका।
 
[[ऋग्वेद]] के (1, 164, 20) मंत्र में वृक्ष पर बैठे दो सुपर्णों के रूपक से जीव और आत्मा का अंतर बतलाया गया है। [[अर्थवेद]] (14/2/64/) के मंत्र में नवदंपति को चकवा दंपति के समान निष्ठावान रहने का आशीर्वाद दिया गया है। [[यजुर्वेद]] एक संहिता - 'तैत्तिरीय' का नाम तित्तिर पक्षी के नाम पर ही है। पहाड़ी मैना तथा शुकों को उनकी वाक क्षमता के आधार पर उन्हें वाग्देवी सरस्वती को समर्पित किया गया है। यहां ऋग्वेद में 20 पक्षियों का उल्लेख है, यजुर्वेद में 60 पक्षियों का है। यह ध्यान देने योग्य है क्योंकि ऋग्वेद का रचनाकाल लगभग 4,000 वर्ष ई. पू. है (New Light on the date of the Rgveda-Dr. _Waradpande, Sanskrit B.P Sabha, Nagpur )।
 
[[रामायण]] तथा [[महाभरत]] में, फिर [[पुराण|पुराणों]] मे अनेक पक्षियों पर सूक्ष्म अवलोकन हैं। सारा [[संस्कृति साहित्य]], [[प्राकृत]] तथा [[पालि]] साहित्य भी, पक्षियों के ज्ञान से समृद्ध है। यह और भी प्रशंसनीय है कि पक्षियों के संरक्षण हेतु [[मनुस्मृति]], [[पराशरस्मृति]] आदि में कुछ विशेष पक्षियों के शिकार का निषेध किया गया है। [[कौटिल्य]] के [[अर्थशास्त्र]] में भी ऐसे ही पक्षी-संरक्षण के समचित निर्देश हैं। ये सब उस काल की घटनाएं हैं जब विश्व में अन्यत्र पालतू के अतिरिक्त पशु-पक्षियों को मुख्यता शिकार तथा भोजन के रूप में ही देखा जा रहा था।