"पवन ऊर्जा": अवतरणों में अंतर

छो पूर्णविराम (।) से पूर्व के खाली स्थान को हटाया।
छो अल्प चिह्न सुधार
पंक्ति 2:
बहती [[वायु]] से उत्पन्न की गई उर्जा को '''पवन ऊर्जा''' कहते हैं। वायु एक [[नवीकरणीय ऊर्जा]] स्रोत है। पवन ऊर्जा बनाने के लिये हवादार जगहों पर पवन चक्कियों को लगाया जाता है, जिनके द्वारा वायु की [[गतिज उर्जा]], [[यान्त्रिक उर्जा]] में परिवर्तित हो जाती है। इस यन्त्रिक ऊर्जा को [[जनरेटर|जनित्र]] की मदद से [[विद्युत]] ऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है।
 
पवन ऊर्जा ( wind energy ) का आशय वायु से गतिज ऊर्जा को लेकर उसे उपयोगी यांत्रिकी अथवा विद्युत ऊर्जा के रूप में परिवर्तित करना है।
 
== पवन ऊर्जा का मूल सिद्धांत ==
पंक्ति 38:
'''इनका शीघ्र निर्माण किया जा सकता हैः-'''
 
पवन चक्की श्रृंखलाओं में अनेक अपेक्षाकृत छोटी-छोटी इकाइयां होती हैं ।हैं। इन्हें सरलता व शीघ्रता से समूहों में बनाया जा सकता है, जिसके परिणामस्वरूप इनकी योजना बनाने में लचीलापन आ जाता है। किसी भी पवन चक्की फ़ार्म के पूरा होने के पहले ही निवेशित पूंजी शीघ्रता से वापस मिलने लगती है। मांग के बढ़ने के साथ-साथ, जब भी आवश्यकता अनुभव हो, नयी इकाइयां जोड़ी जा सकती है। इन्हें एक ही स्थान पर, समूह के रूप में या सम्पूर्ण देश के क्षेत्रों में बिखरा कर लगाया जा सकता है।
 
 
पंक्ति 52:
== पवन ऊर्जा के उपयोग की सीमाएं ==
 
पवन चालित संयंत्र महंगे है और केवल वहीं लगाए जा सकते है जहां आवश्यकतानुरूप वायु उपलब्ध हो। उच्च पवन गति वाले क्षेत्र पहुँच से बाहर हो सकते हैं अथवा उच्च वोल्ट क्षमता वाली पारेषण लाइनों से दूर स्थित हो सकते हैं , जिससे पवन ऊर्जा के संचार में समस्या हो सकती है। साथ ही विद्युत् की आवश्यकता समय के अनुसार घटती-बढ़ती रहती है तथा विद्युत उत्पादन को मांग चक्र के अनुसार समायोजित करना होता है। चूँकि पवन-शक्ति की मात्रा या गति में अचानक परिवर्तन हो सकते हैं , अतः यह भी संभव है कि मांग या आवश्यकता के समय यह उपलब्ध ही न हो। अतः सतत रूप से एक ही मात्रा में उपलब्ध न होने तथा अविश्वसनीय आपूर्ति के कारण पवन ऊर्जा की व्यवहारिक असुविधा ने इसके उपयोग को, उन्हीं क्षेत्रों तक सीमित कर दिया है जहाँ या तो विद्युत की सतत आपूर्ति की आवश्यकता नहीं है, या आवश्यकतानुरूप आपूर्ति हेतु एक अन्य स्थायी ऊर्जा विकल्प उपलब्ध है। विद्युत ऊर्जा का भंडारण कठिन एवं महँगा भी है, इसलिए पवन ऊर्जा का उपयोग किसी अन्य प्रकार की ऊर्जा के साथ साथ अथवा गैर-वैद्युत भंडारण के साथ किया जा सकता है। पवन ऊर्जा का उपयोग जलविद्युत ऊर्जा जनित्रों के साथ करना अधिक लाभप्रद है, क्योंकि जल का उपयोग ऊर्जा भंडारण के स्त्रोत के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है और भूमिगत संपीड़ित वायु के भंडारण का उपयोग एक अन्य विकल्प है।
 
== पवन ऊर्जा के उपयोग से संबंधित पर्यावरणीय समस्याएँ ==
पंक्ति 58:
'''विद्युत चुम्बकीय व्यवधान --'''
 
पवन उत्पादक संयंत्र विद्युत चुंबकीय संकेत वातावरण में प्रसारित करेंगे। क्षैतिज अक्ष वाले पवन चालित टर्बाइनों के घूमते हुए फलक ( ब्लेड ) दूरदर्शन संकेतों के दृश्य अंश विरूपित करके निकटवर्तीय क्षेत्रों में व्यवधान उत्पन्न कर सकते हैं। संयंत्रों से दूरी बढ़ने के साथ साथ यह व्यतिकरण कम हो सकता है, फिर भी यह परा-उच्च आवृत्ति ( यू एच एफ ) चैनलों को कई किलोमीटर की दूरी पर भी प्रभावित कर सकता है। अगर ब्लेड स्थिर भी हो तो भी वायु में प्रसारित संकेत ' छद्म बिम्ब ' ( घोस्ट इमेज ) उत्पन्न कर सकते है। इस समस्या को समुचित स्थल-चयन तथा सूक्ष्म तरंग ( माइक्रोवेव ) संपर्क के बीच ' दृष्टि रेखा ' को बदल कर तथा संयंत्रों को प्रसारण केन्द्रों से दूर लगा कर किया जा सकता है।
 
 
पंक्ति 73:
'''सौंदर्य बोध --'''
 
निस्संदेह वायु चालित टर्बाइनों का प्राकृतिक दृश्यावली पर निश्चित रूप से कुछ दुष्प्रभाव पड़ता है और यह दृश्य-प्रदूषण को जन्म देता है। जब बड़ी-बड़ी ऊँची मीनारें खड़ी की जाती है तो वे निश्चित रूप से प्राकृतिक दृश्यावली की सुरम्यता को प्रभावित करती हैं ( विकसित देश इस दिशा में अधिक जागरुक हैं, जबकि विकासशील देशों में अधिकतर इसे प्रगति का चिन्ह माना जा रहा है )। इन सबके अतिरिक्त, कम उंचाई पर वायुयान संचालन, रडार-प्रसारणों तथा संचार के अन्य माध्यमों पर भी इसके दुष्प्रभाव पड़ सकते हैं।
 
== इन्हें भी देखें ==