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वह कैथोलिक लोगों को कुछ अंश तक धार्मिक स्वतन्त्रता देने के हक में था। वह कुछ समय के लिए युद्ध मन्त्री और फिर बस्तियों का मन्त्री रहा। 1807 ई0 में उसने सेना का पुनर्संगठन किया परन्तु उसके द्वारा सेना का पुनर्निर्माण पुरानी सेना के आधार पर ही किया गया था। 1809 ई0 में उसने अपने पद से त्याग-पत्र दे दिया और कैनिंग से मुकाबला किया। 1812 ई0 में वह विदेश मन्त्री (Foreign Secretary) बन गया और 1822 ई0 में [[आत्महत्या]] करने तक वह इसी पद पर रहा।
 
== परिचय ==
कैसलरे एक बहुत ही बुद्धिमान् मन्त्री था जिसे काल्पनिक विचार धोखा नहीं दे सकते थे और जो सीधे बात की तह तक पहुँच जाता था। केवल राजनीतिक दृष्टि से नहीं वरन् व्यक्तिगत रूप में भी वह बड़ा वीर और साहसी था। उसने ही [[नेपोलियन]] के विरुद्ध मित्रराष्ट्रों को संगठित किया। मुख्यतः उसी के प्रयत्नों से ‘राष्ट्रों का युद्ध’ (Battle of Nations) आरम्भ हुआ। [[वाटरलू]] के मैदान में नेपोलियन को अन्तिम रूप में पराजित करने में ब्रिटिश सेना का निर्णायक हाथ रहा। पुनश्च, नेपोलियन द्वारा आत्म-समर्पण भी ब्रिटिश नौ-सेना के समक्ष ही किया गया। इन घटनाओं से ब्रिटेन की प्रतिष्ठा बहुत अधिक बढ़ गई और 1814 ई0 में यूरोप में होने वाले अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में उसे वही स्थान मिला जो 1819 में [[संयुक्त राज्य अमेरिका]] को प्राप्त हुआ था। डॉ0 महाजन ने लिखा है- ”उस समय केवल इंग्लैण्ड ही एक ऐसा देश था जिसके पास युद्ध करने की शक्ति और साधन थे और जिसे युद्ध करने की इच्छा भी थी। वह अपने समय के यूरोप में भाग्यविधाता था। इंग्लैण्ड को ऊँचे स्थान पर पहुंचाने का श्रेय लॉर्ड कैसलरे को है जिसके उच्च आदर्शों, ठोस व्यवहार, बुद्धि और राजनीतिक कार्यों को करने की ईश्वरदत्त प्रतिभा ने उसे ऐसा करने में समर्थ किया। वह केवल अंग्रेजी पार्लियामेंट और मन्त्रिमण्डल के कार्य करने वाले अपने सह-कर्मचारियों का ही विश्वासपात्र नहीं, अपितु यूरोप भर के राजनीतिज्ञों की इच्छा सम्मतियां और विश्वास प्राप्त करने में सफल हुआ। कैसलरे का यूरोप जाने और मित्र-राष्ट्रों की राजधानियों की यात्रा करने का एकमात्र उद्देश्य इन चार बड़े-बड़े राष्ट्रों को संगठित करके नेपोलियन के मुकाबले में खड़ा करना था। साथ-ही-साथ वह एक ऐसे अन्तर्राष्ट्रीय संघ की स्थापना करना चाहता था जो यूरोप के राजनीतिज्ञों के सम्मुख उपस्थित समस्याओं को सुलझा सके। कैसलरे के विचार में राष्ट्रों की नीति में मतभेदों को दूर करने, युद्ध में विजय प्राप्त करने और इस प्रकार शान्ति स्थापित करने के लिए शत्रु के सामने सामूहिक रूप से उपस्थित होने का सर्वोत्तम ढंग बड़े-बड़े राष्ट्रों के प्रधानमन्त्रियों में विचारों का विश्वस्त और खुला आदान-प्रदान था। बीसवीं सदी में तो अन्य राष्ट्रों से अपनी रक्षा करने के लिए कान्यसेंसे बुलाकर योजनाएं बनाने का विचार कोई नया नहीं प्रतीत होता परन्तु कैसलरे के समय में ऐसा विचार क्रान्ति मचा देने वाले किसी विचार से कम नहीं समझा जाता था। अपने इसी एक कार्य में कैसलरे इतिहास के एक महान् शान्ति स्थापित करने वाले व्यक्ति के रूप में प्रसिद्ध हो गया। कैसलरे चार बड़े-बड़े राष्ट्रों को एक दूसरे के निकट लाने के उद्देश्य से ही यूरोप गया था और दो मास के अन्दर-अन्दर की गई मार्च, 1814 ई0 की शामोण्ट (Chaumont) की सन्धि उसकी अत्यन्त महत्वपूर्ण और एक बड़ी भारी सफलता थी। इस सन्धि के द्वारा चारों राष्ट्रों ने युद्ध को तब तक जारी रखने की प्रतिज्ञा की जब तक फ्रांस शान्ति का समझौता करने के लिए तैयार नहीं हो जाता। इन राष्ट्रों में से प्रत्येक राष्ट्रने युद्ध के लिए शस्त्र आदि देने स्वीकार किए। इंग्लैण्ड ने शस्त्रों के साथ-साथ प्रति वर्ष 50 लाख पौंड की राशि देनी भी स्वीकार की। यह समझौता बीस वर्षों के लिए किया गया और मित्र राष्ट्रों ने बीस वर्षों तक फ्रांस के द्वारा शान्ति के समझौतों की शतोड को तोड़ने का प्रयत्न करने पर सामूहिक रूप से यूरोप की ओर से फ्रांस के विरुद्ध लड़ने का वचन दिया। इस सन्धि-पत्र पर हस्ताक्षर किये जाने के कुछ समय पश्चात् नेपोलियन को फ्रांस के सिंहासन से उतार दिया गया और अब पैरिस में समझौते की बातचीत आरम्भ हो गई।“ वियना-कांग्रेस में इंग्लैण्ड ने आस्ट्रिया, रूस और प्रशा के साथ मैत्रीपूर्ण भूमिका अदा की। इंग्लैण्ड को इतने ऊँचे स्थान पर पहुंचाने का श्रेय बहुत कुछ लार्ड कैसलरे को ही था जिसको न केवल ब्रिटिश संसद और मन्त्रिमण्डल का विश्वास प्राप्त था बल्कि जिसे यूरोप के राजनीतिज्ञों को विश्वास प्रापत करने में भी सफलता मिली। नवम्बर, 1815 में शान्ति-सन्धि को तैयार करने में कैसलरे बहुत महत्त्वपूर्ण कार्य किया। ड्यूक ऑफ वैलिंग्टन, मेटरनिख तथा जार से उसे इस कार्य में विशेष सहायता मिली। इस सन्धि की एक छोटी धारा पर वाद-विवाद के समय कैसलरे को अपनी योजना को क्रियात्मक रूप देने का अवसर मिल गया। इस प्रस्तावित राजनीतिज्ञों को समय-समय पर मिलना चाहिये, किन्तु कैसलरे ने इस धारा का स्वरूप ही बदल दिया और शब्दों तथा भावों की दृष्टि से उसे बहुत अधिक निखार दिया। अब धारा का नया रूप यह बन गया-”इस सन्धि को कार्यान्वित करने के कार्य को सरल बनाने और इसकी रक्षा करने के लिए तथा संसार के लिए हितकर चारों राष्ट्रों के मेल-मिलाप को बढ़ाने वाले सम्बन्धों को और भी अधिक दृढ़ करने के लिए इस सन्धि में भाग लेने वाले मुख्य देश यह स्वीकार करते हैं कि वे नियत समय के बाद सम्मेलन बुलाते रहेंगे। अपने सामान्य हितों के बारे में विचार-विमर्श करने के लिए और समयानुकूल आवश्यक तथा लाभदायक कदम उठाने के लिए तथा देशें को पुनः समृद्ध बनाने एवं यूरोप में शान्ति कायम रखने के लिए सम्मेलनों में या तो इन राष्ट्रों के राजा अथवा उनके प्रतिनिधि भाग लेंगे।“ कैसलरे के प्रयत्नों से सन्धि में जो धारा रखी गई वह यूरोप में शान्ति स्थापित करने की दिशा में बड़ी देन थी। इसमें हमें राष्ट्रसंघ और संयुक्त राष्ट्रसंघ के धोषणा-पत्रों की झलक मिलती है। यूरोप की संयुक्त व्यवस्था की स्थापना भी इसी धारा के आधार पर हो सकी थी। दुर्भाग्यवश कैसलरे की यह आशा बुरी तरह फलीभूत नहीं हो सकी कि यूरोप के विवादों को इस सनि्�ध की धारा के अनुसार नियन्त्रित किये जाने वाले सम्मेलन सुलझा लिया करेंगे और इस प्रकार यूरोप में शान्ति बनी रह सकेगी। सम्मेलनों द्वारा समस्याओं और विवादों का फैसला करने के महत्व को जितना अधिक कैसलरे समझ पाया था, उतना अन्य कोई नहीं। संयुक्त व्यवस्था के सम्मेलनों में दूसरे राष्ट्रों से, विशेषकर आस्ट्रिया से, ब्रिटेन का मतभेद बढ़ता ही गया। जहाँ [[मेटरनिख]] की कूटनीति हर जगह इच्छानुसार हस्तक्षेप करनें की होती थी वहां इंग्लैण्ड की नीति यथासम्भव निर्हस्तक्षेप की थी। कैसलरे यद्यपि चतुर्मुखी मैत्री से अलग नहीं होना चाहता था, किन्तु साथ ही वह इस बात पर भी तुला हुआ था कि वह दूसरे राष्ट्रों के आनतरिक मामलों में हस्तक्षेप की नीति को सफल नहीं होने देगा। अपनी मृत्यु के कुछ ही समय पहले वह बेरीना-सम्मेलन में भाग लेने के लिए तैयार हो रहा था और निश्चय कर चुका था कि वह यूरोपीय राष्ट�्रों को स्पेन में हस्तक्षेप करने से तथा फर्डिनेण्ड सप्तम को पुनः गद्दी पर बैठाने से रोकेगा। दुर्भाग्यवश सम्मेलन में भाग लेने से पूर्व ही उसने [[आत्महत्या]] कर ली किन्तु उसके उत्तराधिकारी लार्ड केनिंग ने उसके ही सिद्धान्तों पर आचरण किया।