"प्रसव": अवतरणों में अंतर

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'''प्रसव''' का अर्थ होता है जनन या बच्चे को जन्म देना।गर्भावस्था के निर्धारित काल पूरा होने पर बच्चे का जन्म बिना किसी अवरोध(रूकावट) के ही होना साधारण और सरल जन्म कहलाता है। बच्चे के जन्म को ध्यान से देखने पर यह महसूस होता है। कि बच्चे के जन्म लेने की विधि को हम तीन भागों में बांट सकते है। प्रथम भाग में बच्चेदानी का मुंह खुलना और फैलना, दूसरे भाग में बच्चे मे सिर का दिखाई पड़ना और तीसरा भाग जिसमें औवल बाहर आता है।प्रथम भाग बच्चे के जन्म का प्रथम चरण लगभग 10 से 12 घंटे या अधिक समय का होता है। प्रथम चरण का समय इस बात पर निर्भर करता है। कि महिला का कौन सा बच्चा है। पहले बच्चे में यह चरण अधिक समय लेता है। दूसरे बच्चे में कम तथा तीसरे बच्चे में और कम समय लगता है। प्रथम चरण में योनि की दीवारों का पतला होना, फैलना, खिंचना और धीरे-धीरे करके बच्चे के सिर का खिसकना होता है। योनि का फैला और खिंचा हुआ भाग धीरे-धीरे बच्चेदानी के मुंह को आगे आने में मदद करता है। इस चरण के साथ ही एक चिकना पदार्थ भी निकलता है जो कि एक झिल्ली के समान होता है जिसको शो कहते है। कभी-कभी सुकुचन जे साथ-साथ एमनीओटिक सैक फट जाता है तथा एमनीओटिक द्रव निकलने लगता है। दूसरा भाग बच्चे के जन्म के दूसरे चरण में बच्चेदानी का दबाव प्रत्येक दो-दो मिनट बाद होता है तथा आधे या एक मिनट तक रहता है। इस दबाव के कारण बच्चा धीरे-धीरे नीचे ढकेला जाता है। इस चरण में बच्चे का सिर देखा जा सकता है। इसके बाद योनि धीरे-धीरे सिमटते हुए परतों के रूप में एक परत दूसरे के ऊपर चढ़ती रहती है। साधारणतया बच्चे का सिर ऊपर की ओर तथा उसका धड़ नीचे की ओर होता है।
कभी-कभी दर्द के साथ बच्चे को निकालने के लिए पेट से भी बच्चे को हल्के हाथों से दबाया जाता है ।है। इस चरण में महिला को लम्बी सांस का व्यायाम लाभकारी होता है। क्योंकि सांस को रोककर ही महिला का जोर लगाना पड़ता है। कई बार बच्चों को निकालने के लिए औजारों का भी प्रयोग किया जाता है। बच्चे का जन्म होते समय जब बच्चा बाहर आता है मां को ऐसा महसूस होता है कि जैसे कि उनके शरीर से मल बाहर आ रहा हो। प्रसव के समय सबसे पहले बच्चे का सिर बहर आता है। फिर एक कंधा, दूसरा कंधा तथा बाद में पूरा धड़ बाहर निकल आता है इस प्रकार के बच्चे के जन्म लेते ही दूसरा चरण पूरा हो जाता है।
== प्रसवोपरांत ==
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थोड़ी सी मात्रा में चिकनाईयुक्त द्रव फेफड़ों मे जा सकता है। परन्तु अधिक मात्रा में द्रव फेफड़ो में जाने से बच्चे का रोना ठीक नहीं होता है। ऐसी स्थिति म्रें फेफड़े में नली डालकर इसे निकालना पड़ता है तथा बच्चे को दवाइयां भी शुरू करनी पड़ती है। पहले बच्चे के फेफड़े गुब्बारे की भांति बिना हवा के होते है। परन्तु पहली बार सांस लेते ही फेफड़े हवा से भर जाते है। उसमें से रक्त आने लगता है तथा आक्सीजनयुक्त रक्त फेफड़े से बच्चे के हृदय की ओर पहुंच जाता है। इस अवस्था में बच्चे का हृदय शीघ्र ही कार्य करने लगता है। इसी बीच बच्चे का संबन्ध औवल से अलग हो जाता है।
बच्चेदानी में कुछ दर्द के साथ औवल भी धीरे-धीरे बच्चेदानी की दीवारों की पकड़ को छोड़ने लगती है तथा धीरे-धीरे करके पूरा औवल अलग होकर इसी द्वार से बाहर आ जाती है। कभी-कभी औवल को आने में 10 मिनट से लेकर आधे घंटे का समय लग सकता है ऐसी स्थिति में मां के पेट की हल्की मालिश भी करनी पड़ सकती है ।यदिहै।यदि इसके बाद भी औवल बाहर नहीं आता है तो उसे रिटैनड् औवल कहते है। औवल के बाहर आते ही औवल को अच्छी प्रकार से देखना चहिए ।यदिचहिए।यदि औवल का एक भी टुकड़ा नहीं आ पाया तो फिर बच्चेदानी पूरी तरफ से सिकुड़ नहीं पाती तथा रक्तस्राव होता रहता है।
बच्चे के जन्म लेते ही बच्चा कुछ नीले रंग का हो जाता है। परन्तु बच्चे के रोने से अक्सीजन और रक्त बच्चे के शरीर में संचरित होने लगता है। इसके कारण बच्चे का रंग गुलाबी हो जाता है। बच्चे के शरीर पर सफेद चिकनईयुक्त पदार्थ लगा रहता है। इस चिकनाईयुक्त पदार्थ को वरनिक्स कहते है। बच्चे को साफ कपड़े से पोंछने या बच्चे को स्नान कराने से यह चिकनाईयुक्त द्रव शरीर से बाहर आ जाता है।
 
बच्चे के चेहरे पर कुछ सूजन, आंखों का धंसा रहना और बच्चे का सिर का कुछ भाग उठा-सा दिखाई पड़ता है जिसको कैपुट कहा जाता है। यह सब समय के साथ ठीक हो जाता है। बच्चे के पैदा होते समय सिर पर जो मांसपेशियों का जोर लगता है ।है। उससे कैपुट बन जाता है। परन्तु यह कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।बच्चे के जन्म के समय बच्चे की छाती कुछ बढ़ी हुई होती है। प्रसव में यदि लड़की होती है। तो उसके मूत्रद्वार के दोनों ओर की त्वचा लेबिया कुछ अधिक भूरी और सूजी हुई होती है और कुछ भाग बाहर निकलता दिखाई देता है। कभी-कभी थोड़ा सा रक्त भी आ जाता है इसी प्रकार लड़के में अंडकोषों का बड़ा होना या कुछ हल्के नीले ब भूरे रंग का दिखाई पड़ना आदि सामान्य बातें होती है जो समय के अनुसार बदल जाती है।गर्भावस्था के समय महिला को यह निर्णय ले लेना चाहिए कि उन्हें प्रसव घर में या हास्पिटल में करवाना है। गर्भावस्था के दौरान महिला की किसी स्त्री रोग से विशेषज्ञ से करवानी चाहिए।
 
== इन्हें भी देखें ==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/प्रसव" से प्राप्त