"श्रेणी:छत्तीसगढ": अवतरणों में अंतर
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== छत्तीसगढ के साहित्यकार ==
छत्तीसगढ़ अपनी साहित्यिक परम्परा के परिप्रेक्ष्य में अति समृद्ध प्रदेश है। इस जनपद का लेखन हिन्दी साहित्य के सुनहरे पृष्ठों को पुरातन समय से सजाता-संवारता रहा है। हिन्दीभाषी प्रदेशों में छत्तीसगढ़ का बौद्धिक हस्तक्षेप सदा ही दूसरों के लिए आश्चर्य का विषय बना है कि विभिन्न प्रसंगों में पिछड़ा प्रतीत होने वाले इस अंचल की सांस्कृतिक ऊर्जा का स्रोत आखिर क्या है ? दरअसल यह विरोधाभास भी इस प्रदेश की साहित्यिक दक्षता, योग्यता और ऊर्जा की प्रेरणा है। ऐसा कहने में कोई अहंकार नहीं, कोई दर्प नहीं कि छत्तीसगढ़ की असली पहचान उसकी सांस्कृतिक अस्मिता है।
छत्तीसगढ़ का मतलब लोक-संस्कृति से आलोकित जन-संकुल। भौतिक संसाधन, कृषि संपदा आदि के कारण किसी प्रदेश की पहचान और वैचारिक, बौद्धिक, सांस्कृतिक शक्ति के नाम से किसी प्रदेश की पहचान का आशय एक नहीं हो सकता, किन्तु हमारा छत्तीसगढ दोनों चरित्रों के बल पर समूचे देश में अपनी विशिष्ट पहचान बनाता है। यदि हम सीधे-सीधे साहित्यिक हस्तक्षेप का स्मरण करें तो पांडुवंशीय काल में भास्कर भट्ट, ईशान कवि और सुमंगलकवि की छवि उभर आती है। कलचुरियों का समय छत्तीसगढ़ का समृद्ध समय माना जाता है। इस काल में नारायण, कीर्तिघर, वत्सराज, धर्मराज कुमार पाल, त्रिभुवनपाल, रत्नसिंह और भाभे आदि कवियों ने छत्तीसगढ़ को साहित्यिक गरिमा प्रदान की। गोंड राज में मंडला के दीक्षित वंश, महेश ठाकुर का वंश और जयगोविन्द कवि को साहित्यकार के रूप में हम जान सकते हैं। यह छत्तीसगढ़ की ऊंचाई का प्रमाण है कि पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक वल्लभाचार्य ने पूर्व मीमांसा, भाषा उत्तर मीमांसा या ब्रज सूत्र भाषा, सुबोधिनी, सूक्ष्मटीका, तत्वदीप निबंध तथा सोलह प्रकरण की रचना की, जो रायपुर जिले के चम्पारण(राजिम के समीप) में अवतरित हुए थे। अष्टछाप के संस्थापक विट्ठलाचार्य उनके पुत्र थे। वल्लभाचार्य के पौत्र गोकुलनाथ ने चौरासी वैष्णव की वार्त्ता और दो सौ बावन वैष्णव वार्त्ता लिखकर साहित्य को संपुष्ट किया। रामानंदी आंदोलन की अनुगूंज भी छत्तीसगढ़ को प्रभावित करती है, शायद यही कारण है कि यहां बैरागी और दस नामो सन्यासी के छंद गूंजते रहे।
मुक्तक काव्य परम्परा में खैरागढ़ राज्य के चौथे राजा कमलनारायण ने राजकाज के साथ अपनी काव्य प्रतिभा का भी परिचय दिया था – विनोद कमल, कमल नारायण, नारायण प्रहर्ष, कमल नारायण रागमाला, शीतला यश मालिका आदि ग्रंथ रचकर। गोपाल कवि रचित जैमिनी अश्वमेघ को संपादिक कर मुंबई से प्रकाशित कराने का श्रेय उन्हें ही दिया जाता है। श्रीमद् भागवत का पद्यानुवाद (अपूर्ण) भी कमलनारायण ने किया था। राजा चक्रधर सिंह तो छत्तीसगढ़ के गौरव पुरुष हैं। उनके जैसा संस्कृति संरक्षक राजा विरले ही हुए हैं । वे हिन्दी साहित्य के युग प्रणेता [[पं महावीर प्रसाद द्विवेदी]] का जीवनपर्यन्त नियमित आर्थिक सहयोग करते रहे। रम्यरास, जोश-ए-फरहत, बैरागढ़िया राजकुमार, अलकापुरी, रत्नहार, काव्यकानन, माया चक्र, निकारे-फरहत, प्रेम के तीर आदि उनकी ऐतिहासिक महत्व की कृतियां हैं। उनकी कई कृतियाँ 50 किलो से अधिक वजन की हैं । पंडित बालशास्त्री झा ने धर्मवंश एवं लाल प्रद्युम्न सिंह नागवंश ग्रंथ का प्रणयन किया। भक्तिकालीन रचनाकारों में हमारे सम्मुख गोपाल मिश्र, माखन मिश्र, बाबू रेवाराम, उमराव बख्शी का नाम आता है।
[[पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी]] की झलमला को हिन्दी की पहली लघुकथा मानी जाती है। इन्होंने ग्राम गौरव, हिन्दी साहित्य विमर्श, प्रदीप आदि कृति रचकर हिन्दी साहित्य में अतुलनीय योगदान दिया। छत्तीसगढ़ के शलाका पुरुष बख्शी जी विषय में इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि उन्होंने सरस्वती जैसी महत्वपूर्ण पत्रिका का सम्पादन किया। रामकाव्य के अमर रचनाकार डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र ने कौशल किशोर, साकेत संत, रामराज्य जैसे ग्रंथ लिखकर चमत्कृत किया। मावली प्रसाद श्रीवास्तव का कवित्व छत्तीसगढ़ की संचेतना को प्रमाणित करती है। इंग्लैंड का इतिहास और भारत का इतिहास उनकी चर्चित कृतियाँ हैं। श्यामाचरण सिंह, उदय प्रसाद उदय, झुमुकलाल दीन, रामचरण गुप्त, शिशुपाल, बलदेव यादव, पतिराम साव, राम प्रसाद कसार को हम इस अनुक्रम में याद कर सकते हैं। प्यारेलाल गुप्त छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ रचनाकारों में एक हैं जिन्होंने सुधी कुटुम्ब (उपन्यास) आदि उल्लेखनीय कृतियाँ हमें सौंपी। द्वरिका प्रसाद तिवारी विप्र की किताब गांधी गीत, क्रांति प्रवेश, शिव स्मृति, सुराज गीत (छत्तीसगढ़ी) हमारा मार्ग आज भी प्रशस्त करती हैं। काशीनाथ पांडेय, धनसहाय विदेह, शेषनाथ शर्मा शील, यदुनंदन प्रसाद श्रीवास्तव, पंडित देवनारायण, महादेव प्रसाद अजीत, शुक्लाम्बर प्रसाद पांडेय, पंडित गंगाधर सामंत, गंभीरनाथ पाणिग्रही, रामकृष्ण अग्रवाल भी हमारे साहित्यिक पितृ-पुरुष हैं।
हिन्दी के आधुनिक काल में श्रीकांत वर्मा राष्ट्रीय क्षितिज पर प्रतिष्ठित कवि की छवि रखते हैं, जिनकी प्रमुख कृतियाँ माया दर्पण, दिनारम्भ, छायालोक, संवाद, झाठी, जिरह, प्रसंग, अपोलो का रथ आदि हैं। इधर विनोद कुमार शुक्ल का शिल्प काव्य के नए शिल्प के रूप में माना जा रहा है। आपकी प्रमुख कृतियां है- नौकर की कमीज, खिलेगा तो देखेंगे। हरि ठाकुर सच्चे मायनों में छत्तीसगढ़ के जन-जन के मन में बसने वाले कवियों में अपनी पृथक पहचान के साथ उभरते हैं। जिनका सम्मान वस्तुतः छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के संघर्ष का सम्मान है। इनके समग्र मूल्यांकन के सम्मान को मैं पद्मश्री जैसे राष्ट्रीय अलंकरण से कतई कम नहीं मानता हूँ। उन्होंने कविता, जीवनी, शोध निबंध, गीत तथा इतिहास विषयक लगभग दो दर्जन कृतियों के माध्यम से इस प्रदेश की तंद्रालस गरिमा को जगाया है। उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं – गीतों के शिलालेख, लोहे का नगर, अंधेरे के खिलाफ, हंसी एक नाव सी। गुरुदेव काश्यप, बच्चू जांजगीरी, नारायणलाल परमार, हरि ठाकुर के समकालीन कवि हैं।
समकालीन हिन्दी कविता में अपनी सतत् उपस्थिति से छत्तीसगढ़ प्रदेश को पहचान देने वाले कवियों में डॉ. बलदेव, प्रभात त्रिपाठी, एकांत श्रीवास्तव, नासिर अहमद सिकंदर, माझी अनंत, बसंत त्रिपाठी, परितोष चक्रवर्ती, रामकुमार तिवारी, वंदना केंगरानी, डॉ. प्रेम दुबे, भगत सिंह सोनी, रजत कृष्ण, विजय सिंह, ललित सुरजन, डॉ. राजेन्द्र सोनी, अशोक सिंघई, संजीव बख्शी, विद्या गुप्ता, मंगला देवरस आदि प्रमुख हैं। इधर शीलकांत पाठक, जयप्रकाश मानस, त्रिजुगी कौशिक, राजेश गनोदवाले, सुधीर सोनी, पुष्पा तिवारी आदि संभावना से पूर्ण कवि के रूप में सामने आ रहे हैं। छत्तीसगढ़ के अन्य महत्वपूर्ण कवियों में विश्वेन्द्र ठाकुर, डॉ. सालिकराम शलभ, डॉ. अरूण कुमार शर्मा, सुभाष त्रिपाठी, हरकिशोर, कंदर्प कर्ष, ईश्वर शरण पांडेय, ठाकुर जीवन सिंह हैं।
==गीतकार==
हिन्दी गीत रचकर अपनी विशिष्ट पहचान बनाने वालों में आनंदी सहाय शुक्ल, नारायणलाल परमार, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल, नरेन्द्र श्रीवास्तव, विद्याभूषण मिश्र, रामप्रताप विमल, बच्चू जांजगीरी, मुस्तफा हुसैन, चम्पा मावले, अनिरुद्ध नीरव, रामेश्वर वैष्णव, डॉ. श्यामसुन्दर त्रिपाठी, रामअधीर, स्वर्गीय रवीन्द्र कंचन, श्याम कश्यप बेचैन, जीवन यदु राही, संतोष झांझी, त्रिभुवन पांडेय, दानेश्वर शर्मा, विमल पाठक, डॉ. चितरंजन कर, श्रीधर आचार्य शील, मुकुंद कौशल, डॉ. राजन यादव, संतोष रंजन शुक्ल, रामगोपाल शुक्ला प्रमुख हस्तियां हैं।
छत्तीसगढ़ प्रदेश के ग़ज़लकारों के सार्थक हस्तक्षेपों का यहां जिक्र करना लाज़िमी है। मौलाना अब्दुल रउफ महवी रायपुरी, लाला जगदलपुरी, स्व. बंदे अली फातमी, स्व. मुकीम भारती, स्व. मुस्तफा हुसैन मुश्फिक, शौक जालंधरी, रजा हैदरी, काविश हैदरी, अमीर अली अमीर, शाद भंडारवी, तवंगर हुसैन, अलियार साबरी, अनवार आलम, रामेश्वर वैष्णव, मोहसिन अली सुहैल, मुकुन्द कौशल, मंजूर अली राही, अब्दुल कलाम कौसर, असगर अमजद, हनुमंत नायडू, राज मलकापुरी, गिरीश पंकज, सुखनवर हुसैन, अली सज्जाद रुसवा ईरानी, रशीद रायपुरी, रऊफ परवेज, विजय राठौर, स्व. रवीन्द्र कंचन, नवाब तालिब, हसन जफर, मुमताज, नीलू मेघ, डॉ. महेन्द्र ठाकुर, अजीत रफीक, डॉ. देवधर महंत, हफीज कुरैशी, डॉ. चितरंजन कर, जयप्रकाश मानस, प्रफुल्ल पटनायक, जयशंकर डनसेना, सतीश सिंह ठाकुर आदि इस परिप्रेक्ष्य में समादृत किए जा सकते हैं।
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