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सत्रहवीं शती से पूर्व इस भाषा का कोई लिखित [[साहित्य]] उपलब्ध नहीं है। इस भाषा के साहित्यिक प्रयोग का श्रेय ईसाई मिशनरियों को है। पादरी स्टिफेस की पुस्तक '''दौत्रीन क्रिश्तां''' इस भाषा की प्रथम पुस्तक है जो 1622 ई. में लिखी गई थी। उसके बाद 1640 ई. में उन्होंने [[पुर्तगाली भाषा]] में इसका [[व्याकरण]] 'आर्ति द लिंग्व कानारी’ नाम से लिखा। इससे पूर्व 1563 ई. के आसपास किसी स्थानीय धर्मांतरित निवासी द्वारा इस भाषा का कोश तैयार हुआ और ईसाई धर्म के अनेक ग्रंथ लिखे गए। पुर्तगाली शासन के परिणामस्वरूप साहित्य निर्माण की गति अत्यंत मंद रही किंतु अब इस भाषा ने एक समृद्ध साहित्य की भाषा का रूप धारण कर लिया है। [[लोककथा]], [[लोकगीत]], [[लोकनाट्य]] तो संगृहित हुए ही हैं, आधुनिक [[नाटक]] (सामाजिक, ऐतिहासिक, पौराणिक) और [[एकांकी]] की रचना भी हुई है। अन्य विधाओं में भी रचनाएँ की जाने लगी है।
 
== सन्दर्भ ==
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