"जय सिंह द्वितीय": अवतरणों में अंतर

पंक्ति 58:
औरंगजेब के पोते शाह बिदरबख्त के नेतृत्व में बादशाही सेना ने ११ मई, ई० १७०२ को खिलना के किले पर भारी हमला किया। इसमें आमेर और मुग़ल संयुक्त-सेना की बहुत जनहानि हुई, पर उसकी दीवारों को तोड़ कर सबसे पहले जयसिंह की कछवाहा सेना ही खिलना-दुर्ग में प्रविष्ट हुई| उसकी बुर्ज पर आमेर का 'पंचरंगा झंडा' फहराया गया। (''इस समय जयसिंह की उम्र केवल १४ वर्ष थी)।'' खिलना-युद्ध में इनका वीर और भरोसेमंद दीवान बुद्धसिंह मारा गया। इस खिलना-विजय पर बादशाह औरंगजेब द्वारा इनका मनसब बढ़ा कर पहले एक हज़ार, फिर [[शाह बिदरबख्त]] के अनुरोध के बाद २००० (दो हजार जात) का कर दिया गया। बादशाह की छः साल की 'कठिन सेवा' का महज़ यह प्रतिदान जयसिंह को मिला! इसके बाद जब शाहजादा बिदरबख्त मालवे का सूबेदार हुआ, तब उसने जयसिंह की सेवाओं का सम्मान करते उन को वहाँ का [[नायब सूबेदार]] बना दिया, जिसे औरंगजेब ने तत्काल ही 'नामंजूर' कर दिया तथा एक फरमान लिखा कि ''आइन्दा किसी हिन्दू भी को मामूली फौजदार तक भी नहीं बनाया जाए'' ।'<ref> 'अहकाम-ए- आलमगिरी' : इयानतुल्ला) सन्दर्भदाता : यदुनाथ सरकार : वही: पृष्ठ १५२ </ref>
 
विडम्बना हैरतंगेज़ है कीकि जिस औरंगजेब ने कभी इन्हें 'सवाई' कह कर सम्मान दिया वही बाद में वस्तुतः इनसे इस कदर नाराज़ और पूर्वाग्रहग्रस्त था कि उसने ये अपमानजनक आज्ञा जारी की- "''जयसिंह को मसनद पर आसन न दे कर, नीचे ज़मीन पर बिछी 'सुजनी' पर बैठने को कहा जाय!''"<ref> यदुनाथ सरकार : ''वही'' पृष्ठ १५२ </ref>
 
इसी बीच ई० १७०४ में दो बादशाही फौजदारों ने स्थानीय मदद ले कर ठाकुर कुशल सिंह राजावत से सवाई माधोपुर में आज स्थित [[झिलाय]] ठिकाने की जागीर छीन कर १३ नवम्बर १७०४ को जयसिंह (आमेर राज्य) को सौंप दी। दूसरे साल ई० १७०५ में शाह बिदरबख्त ने अपनी तरफ से इनके पक्ष में फिर से कोशिश करके जयसिंह को मालवा का भी नायब सूबेदार बनवा दिया।<ref> यदुनाथ सरकार : पृष्ठ १५३ </ref> पर जब तक औरंगजेब जीवित रहा, मुग़ल खेमे में इनका प्रभाव मद्धम सा ही रहा |