"जय सिंह द्वितीय": अवतरणों में अंतर

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[[File:आमेर महल का दीवाने-आम.JPG|thumb|आमेर महल का दीवाने-आम : छायाकार: हे.शे. ]]
===नगर का वास्तु-कौशल===
नए नगर को ९ सामान क्षेत्रफल वाले खंडों (चौकड़ियों) में बांटा गया था, जिसके दो खण्ड मुख्य राजमहल 'चन्द्रमहल', विभिन्न राजकीय कारखानों, कुछ खास मंदिरों तथा वेधशाला के लिए आरक्षित रखे गये थे। सूरजपोल दरवाज़े से चांदपोल दरवाज़े तक सड़क की लम्बाई दो मील और चौड़ाई १२० फीट रखी गयी । इसी महामार्ग पर मध्य में तीन सुन्दर चौपड़ों का निर्माण भी प्रस्तावित किया गया जो यहाँ लगे हुए फव्वारों के लिए भूमिगत जलस्रोतों से जुड़े थे । शहर के चौतरफ बनाये गए परकोटे की दीवार २० से २५ फुट ऊंची तथा ९ फीट चौड़ी रखी गयी| इस परकोटे में (शहर में आने - जाने के लिए) सात सुन्दर प्रवेशद्वारों का निर्माण भी किया गया। रात को नगर-सुरक्षा हेतु इन्हें बंद कर दिया जाता था| सुन्दर राजसी राजमहल, भव्य-पाठशालाएं, बड़ी बड़ी, चौड़ी और एक दूसरे को समकोण पर विभाजित करती एकदम सीधी सड़कें, एक सी रूप-रचना के आकर्षक बाज़ार, जगह-जगह कलात्मक मंदिर, (राजा [[राम]] की [[अयोध्या]] के वास्तु से प्रभावित) आम-भवन-संरचनाएं, सड़कों के किनारे लगे घने छायादार पेड़, पीने के पानी का समुचित प्रबंध, व्यर्थ-जल-निकासी की उपयुक्त व्यवस्था, उद्यान, नागरिक-सुरक्षा, आदि इन सब बातों का पूर्व-नियोजन सवाई जयसिंह ने अपने नगर-कौशल में सफलतापूर्वक किया|
===जयपुर पर केन्द्रित संस्कृत महाकाव्य===

कविशिरोमणि [[भट्ट मथुरानाथ शास्त्री]] ने सन 1947 में 476 पृष्ठों में प्रकाशित अपना एक यशस्वी काव्य-ग्रन्थ [[जयपुर-वैभवम]] तो जयपुर के नगर-सौंदर्य, दर्शनीय स्थानों, देवालयों, मार्गों, यहाँ के सम्मानित नागरिकों, उत्सवों और त्योहारों आदि पर ही केन्द्रित किया था|<ref>{http://www.sanskrit.nic.in/DigitalBook/J/Jaipurvaibhavam.pdf</ref>
 
===खगोलशास्त्र और सवाई जयसिंह ===