"जय सिंह द्वितीय": अवतरणों में अंतर

पंक्ति 164:
 
===जयपुर दरबार में विदेशी विद्वान्===
जब इनको मालूम हुआ कि पश्चिम के ज्योतिषीगण द्वारा खासतौर पर पुर्तगाल में पिछले कुछ वर्षों में खगोलविद्या पर काफी काम हुआ है, इन्होंने गोवा के पुर्तगाली-गवर्नर के मार्फत पुर्तगाल के बादशाह को अनेक तोहफे भेजे तथा गवर्नर के मार्फत पुर्तगाल से खगोल विद्वान Padre Manoel Figueiredo को जयपुर बुलवाया।<ref>Sharma, Virendra Nath (1995), Sawai Jai Singh and His Astronomy, Motilal Banarsidass Publications </ref> जयसिंह ने १७२७ में उसे (Manoel Figueiredo को) योरोप में इस विषय की सारी उपलब्ध नवीनतम पुस्तकें / रचनाएँ तथा दूर्वीक्षण यंत्र (टेलीस्कोप) लाने भेजा। वह जब नवम्बर १७३० में वापिस आया तो अपने साथ खगोलज्ञ जेवियर डीसिल्वा को और कुछ दूरबीनें साथ लाया। जेवियर डीसिल्वा Pere de la Hire (1640-1718) की सारणी 'Tabulae Astronomicae' लिस्बन से अपने साथ लाया था | इन्होंने अपने विद्वानों की सहायता से उन सारणियों का अध्ययन किया और व्यावहारिक उपयोग के बाद उनमें त्रुटियाँ पाईं| अंततः इन्होंने ''अपने यंत्रों की गणना से पुनः नई सारिणी'' बनाई, जिसका बादशाह के नाम पर नाम '''जिज़-ए-मुहम्मदशाही''' रखा गया।<ref>A B Umasankar Mitra (1995) "Astronomical Observatories of Maharaja Jai Singh". School Science (NCERT) 23 (4): 45–48 </ref>
 
इनके दरबार में चन्द्रनगर से आया फ्रांसीसी खगोलज्ञ क्लाड बोडियर था । इनके दरबार में जर्मनी से फादर ऐन्टोइन गेवेल्स परगुइर व आद्रें स्टोब्ल भी आये थे । एक और हिन्दुस्तानी विद्वान, इनके यहाँ केवलराम था, जो गुजरात से आया था। उसने खगोल सम्बन्धी आठ ग्रन्थ लिखे थे । उसको सवाई जयसिंह ने 'ज्योतिषराय' की उपाधि भी दी।<ref>A B Umasankar Mitra (1995). "Astronomical Observatories of Maharaja Jai Singh".School Science (NCERT) 23 (4): 45–48 </ref>