"गैस टर्बाइन": अवतरणों में अंतर

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'गैस टरबाइन' की विभिन्न परिभाषाएँ दी जाती हैं। विस्तृत परिभाषा के अनुसार गैस टरबाइन वह मूल चालक (prime mover) है जिसके संपूर्ण उष्मीय चक्र में कार्यकारी तरल गैसीय अवस्था में ही बना रहता है एवं जिसके सभी यंत्रांगों की गति परिभ्रमी होती है। संकीर्ण परिभाषा के अनुसार इस शब्द का प्रयोग सिर्फ उस मुख्य टरबाइन अंग के लिये किया जाता है जिसका माध्यम गरम वायु होती है। कुछ विद्वानों के मतानुसार गैस टरबाइन वह यंत्र है जिसमें प्रवाह प्रक्रम अविरत रहता है एवं शक्ति टरबाइन द्वारा प्राप्त होती है।
 
== संक्षिप्त इतिहास ==
[[चित्र:John Barber's gas turbine.jpg|right|thumb|250px|जॉन बार्बर की टर्बाइन का रेखाचित्र (उनके पेटेंट से लिया गया)]]
प्रथम गैस टरबाइन की निर्माणतिथि अभी तक अज्ञात है किंतु 130 ई. पू. के [[मिस्र]] में हीरो ने टरबाइन के सदृश एक ऐसे यंत्र का निर्माण किया था जो गरम वायु की सहायता से चलता था। संभवत: प्रथम ज्ञात गैस टरबाइन का निर्माण सन्‌ 1550 ई. में हुआ एवं इसका निर्माता [[लियोनार्डो दा विंशी]] था। यह यंत्र चिमनी के पास रखा जाता था और इससे होकर चिमनी की गैस ऊपर जाती थी। इस यंत्र के द्वारा बहुत कम शक्ति प्राप्त होती थी, जिसका उपयोग [[मांस]] को भूनने के लिए बने हुए पात्र को चलाने के लिए किया जाता था। गैस टरबाइन का सर्वप्रथम पेटेंट [[इंग्लैंड]] में जॉन बारबर ने 1791 ई. में कराया था। आश्चर्य की बात तो यह है कि उसका बनाया गैस टरबाइन आधुनिक विकसित सिद्धान्त पर आधारित पाया गया है। उसके बाद जॉन डाबेल ने 1808 ई. में दूसरा पेटेंट इंग्लैंड में ही कराया। 1837 ई. में [[पेरिस]] में ब्रेसन ने एक ऐसे टरबाइन का पेटेंट कराया, जिसमें सभी आवश्यक कल पुर्जे थे। उच्च शक्ति वाले गैसे टरबाइन का निर्माण 1872 ई0 में स्टोल्ज ने किया था, जो बहुपद (multi-stage) अभिक्रिया टरबाइन एवं बहुपद अक्षीय-प्रवाह संपीडक (Arial Flow Compressor) द्वारा युक्त था। उस समय वैज्ञानिकों को [[वायुगतिकी]] (Aerodynamics) का ज्ञान कम था, जिससे दक्ष संपीडक का निर्माण संभव नहीं था। संपीडक की डिजाइन सुचारू रूप से न किए जाने के कारण अनेक हानियाँ होती हैं, जिनके कारण टरबाइन द्वारा प्राप्त कार्य का अधिकांश भाग संपीडक को चलाने में ही खर्च हो जाता है और बहुत ही कम शक्ति उपलब्ध होती है। दहनकक्ष की डिजाइन एवं निर्माण भी अधिक विकसित नहीं हो पाया था। अनुसंधानकर्ताओं को इन समस्याओं के सिवाय उपयुक्त निर्माण सामग्री की विकट समस्या का भी सामना करना पड़ता था। इन्हीं सब कारणों से प्रारंभिक गैस टरबाइन सफल नहीं हो पाए।
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उपर्युक्त डिजाइनों के अलावा और भी विभिन्न डिजाइनों के टरबाइनों का विकास होता रहा है। वैज्ञानिकों के अथक प्रयास के फलस्वरूप आज गैस टरबाइन की नींव पक्की हो गर्ह है।
 
== गैस टरबाइन की उष्मागतिकी (Thermodynamics)==
[[चित्र:Brayton cycle.svg|right|thumb|300px| '''ब्रेसन चक्र''' (Brayton cycle)]]
वास्तव में गैस टरबाइन एक [[अन्तर्दहन इंजन]] ही है। इसमें एक सबसे पहले एक घूर्णी संपीडक (rotating compressor) होता है, उसके बाद ज्वलन कक्ष होता है और अन्त में एक टरबाइन।
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टरबाइन की दक्षता को बढ़ाने के लिए विभिन्न प्रकार के उपकरण व्यवहार में लाए जाते हैं, जिनमें निम्नलिखित मुख्य हैं :
 
=== उष्मा विनिमयित्र (Heat Exchanger)===
[[चित्र:Схема конд ПТУ.JPG|right|thumb|300px|संघनित्र सहित भाप टरबाइन तथा अन्य अवयव <br>1. बायलर 2. भाप पाइप 3. भाप टरबाइन 4. शाफ्ट 5. विद्युत जनित्र 6. संघनित्र 7. ठण्डे जल के नल 8. पाइप 9. पम्प]]
संपीडक से निकलकर संपीडित वायु इसमें एक ओर से प्रवेश करती है एवं दूसरी ओर से टरबाइन द्वारा निष्कासित गैस प्रवेश करती है। गैस संपीड़ित वायु से अधिक गरम होती है। इसीलिये ताप गैस से संपीड़ित वायु में प्रवेश करता है तथा संपीडित वायु और भी गरम हो जाती है। संपीडित वायु के अधिक गरम होने से दहनकक्ष में ईधंन की कम आवश्यकता होती है। इससे संपूर्ण संयंत्र की दक्षता बढ़ जाती है।
 
===अंत अ ंत:शीतलक (Intercooler)===
संपीड़न के कार्य में कुछ भी कमी होने से उपलब्ध शक्ति की वद्धि हो जाती है, जिससे संयंत्र की दक्षता बढ़ जाती है। संपीड़न के कार्य को कम करने के लिये वायु निम्न दाब संपीड़क में संपीड़ित होकर अंत:शीतलक (देखें चित्र 3) में प्रवेश करती है, जहाँ उसका ताप कम करके उसको उच्च दाब संपीड़क में पुन: संपीड़ित होने के लिये भेजा जाता है।
 
=== पुनस्तापक (Reheater) ===
प्रथम टरबाइन में कार्य करने के बाद गैस पुनस्तापक (देखें चित्र 4) में प्रवेश करती है, जहाँ इसे पुनस्तापित किया जाता है। पुनस्तापक से निकलकर गैस द्वितीय टरबाइन में कार्य करने के लिये प्रवेश करती है।
 
== गैस टरबाइन के मुख्य अंग ==
ये निम्नलिखित हैं :
 
=== संपीड़क ===
गैस टरबाइन में दो प्रकार के संपीड़क लगाए जाते हैं, अक्षप्रवाह एवं अपकेद्रिक। अक्षप्रवाह संपीड़क का व्यवहार पहले बहुत ही कम होता था, किंतु पिछले कुछ वर्षों में वायुगतिकी विज्ञान का विकास होने से इस तरह के संपीड़क का डिजाइन सरल हो गया है एवं इसकी दक्षता भी बढ़ गई है। औद्योगिक गैस टरबाइन में इस प्रकार के संपीड़क का अधिक व्यवहार होता है, क्योंकि इसके द्वारा उच्च दाब अनुपात एवं उच्च दक्षता की प्राप्ति होती है। अपकेंद्रिक संपीड़क हल्का होने के कारण वायुयान में अधिक व्यवहृत होता है।
 
=== दहनकक्ष ===
जैसा ऊपर बताया जा चुका है, इस कक्ष में ईधंन की सहायता से संपीड़ित वायु को गरम किया जाता है। इस अंग की डिज़ाइन अत्यंत नाजुक एवं जटिल होती है।