"घटनाविज्ञान": अवतरणों में अंतर

छोNo edit summary
छो बॉट: अंगराग परिवर्तन
पंक्ति 2:
व्यक्‍तिनिष्‍ठ अनुभवों और चेतना के संरचनाओं का दार्शनिक अध्ययन '''घटनाविज्ञान''' या '''प्रतिभासवाद''' (Phenomenology) कहलाता है। इसकी स्थापना २०वीं शताब्दी के आरम्भिक दिनों में [[एडमुंड हसेर्ल]] (Edmund Husserl) ने की थी।
 
== परिचय ==
बीसवीं सदी के युरोपीय दर्शन पर गहरा प्रभाव डालने वाले घटनाक्रियाशास्त्र के अनुसार वस्तुएँ अपना तात्पर्य उन्हें देखने वाले व्यक्ति की चेतना में स्थित बोध के ज़रिये प्राप्त करती हैं। यह बोध इतिहास, संस्कृति और इसी तरह के पूरी तरह से प्रमाणित न किये जा सकने वाले कारकों की देन होता है। घटनाक्रियाशास्त्र के अनुसार अगर इन कारकों को अनुभव से अलग कर दिया जाए तो ज्ञान के धरातल पर एक विशुद्ध आत्मनिष्ठता प्राप्त की जा सकती है। इस दर्शन के संस्थापक जर्मन दार्शनिक एडमण्ड हसर (1859-1938) थे। उनका कहना था कि सभी तरह की चेतना हमेशा साभिप्राय या इरादतन होती है। यानी हम केवल सचेत नहीं होते, बल्कि किसी न किसी वस्तु के प्रति सचेत होते हैं। ज़रूरी नहीं कि उस वस्तु का भौतिक वजूद हो ही। मसलन, अगर किसी को लग रहा है कि उसके सामने एक नख़लिस्तान मौजूद है तो वह एक मरीचिका भी हो सकती है। असल में वह नख़लिस्तान वास्तव में नज़र के सामने न होने के बावजूद देखने वाले के लिए उसके साथ बनाये गये सार्थक संबंध के कारण आभासित होता है। इसीलिए नख़लिस्तान हो या उसकी मरीचिका, वस्तु अपने प्रेक्षक द्वारा उसके प्रति की गयी अपेक्षाएँ पूरी कर पाती है। इससे हसर ने यह निष्कर्ष निकाला कि व्यक्ति का अनुभव वस्तु के साथ कार्य-कारण संबंध का मोहताज नहीं होता। घटनाक्रियाशास्त्र के विकास ने दर्शन के साथ-साथ समाजशास्त्रीय और कला संबंधी चिंतन को भी काफ़ी प्रभावित किया। हसर के सहायक और महान दार्शनिक मार्टिन हाइडेगर इस अवधारणा को अस्तित्व के तात्पर्य और मानवीय वजूद की संरचना को समझने की दिशा में ले गये। हाइडेगर के अलावा मॉरिस मरली-पोंती, ज्याँ-पॉल सार्त्र का चिंतन भी घटनाक्रियाशास्त्र से प्रभावित हुआ। इसी आधार पर अल्फ़्रेड शुज़ द्वारा फ़िनोमिनोलॅजीकल सोसियोलॅजी का विकास किया गया।
 
पंक्ति 13:
सौंदर्यशास्त्र के क्षेत्र में हसर और घटनाक्रियाशास्त्र का प्रभाव रोमन इनगार्डन के सूत्रीकरणों में देखा जा सकता है। साहित्यिक रचना को एक साभिप्राय वस्तु मान कर इनगार्डन उसकी शिनाख्त उसके किसी भौतिक तत्त्व के आधार पर करने से इनकार करते हैं। इस विचार के अनुसार साहित्यिक कृति अपनी विविध व्याख्याओं से स्वतंत्र एक टिकाऊ किस्म की अस्मिता से सम्पन्न होती है। कृति की समालोचना करते हुए पाठक उसके सार पर ध्यान देता है और उस प्रक्रिया में कल्पना-आधारित तत्त्वों की सामग्री से वह ठोस निष्कर्ष निकालता है जो लेखक द्वारा अनिर्धारित छोड़ दिया गया है। घटनाक्रियाशास्त्र के बुनियादी थीसिस से प्रभावित हसर के अनुयायियों ने उनके भाववादी रवैये को स्वीकार नहीं किया। हसर का दर्शन जिस प्रेक्षक के अनुभव पर केंद्रित था उसके कमोबेश अमूर्त अस्तित्व के मुकाबले हाइडेगर और उनके बाद सार्त्र ने अपना चिंतन एक ऐसे प्रेक्षक पर केंद्रित किया जिसका ताल्लुक एक वास्तविक, भौतिक और स्पर्श्य जगत से था। हसर अनुभव के तात्पर्य को एक अनिवार्य और सार्वभौम सार के रूप में देखते थे, जबकि हाइडेगर ने उस तात्पर्य को ज़िंदगी की व्यावहारिक समस्याओं से गुज़रने के दौरान होने वाले अनुभव का नतीजा बताया। हाइडेगर ने कहा कि मनुष्य हथौड़े का जो इस्तेमाल करता है, उसी के मुताबिक उसकी समझ बनाता है। इसलिए घटनाक्रियाशास्त्र के मुताबिक रचे गये विवरण से बनी सार्वभौम समझ के बजाय विभिन्न लक्ष्यों का पीछा करते हुए साधारण इनसान अपने ज्ञान की रचना करता है।
 
== इन्हें भी देखें==
*[[अस्तित्ववाद]]
*[[आत्मनिष्ठता]]
पंक्ति 26:
*[[मूल्यमीमांसा]]
 
== सन्दर्भ ==
(1) डी. वेल्टन (सक्वपा.) (1999), द इसेंशियल हसर : बेसिक
राइटिंग्ज़ इन ट्रांसडेंटल फ़िनॉमिनॉलॅजी, इण्डियाना युनिवर्सिटी प्रेस,