"बिहार का मध्यकालीन इतिहास": अवतरणों में अंतर

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इस समय अफगान अमीरों ने शेर खाँ से सम्राट पद स्वीकार करने का प्रस्ताव किया। शेर खाँ ने सर्वप्रथम अपना राज्याअभिषेक कराया। बंगाल के राजाओं के छत्र उसके सिर के ऊपर लाया गया और उसने शेरशाह आलम सुल्तान उल आदित्य की उपाधि धारण की। इसके बाद शेरशाह ने अपने बेटे जलाल खाँ को बंगाल पर अधिकार करने के लिए भेजा जहाँ जहाँगीर कुली की मृत्यु एवं पराजय के बाद खिज्र खाँ बंगाल का हाकिम नियुक्‍त किया गया। बिहार में शुजात खाँ को शासन का भार सौंप दिया और रोहतासगढ़ को सुपुर्द कर दिया, फिर लखनऊ, बनारस, जौनपुर होते हुए और शासन की व्यवस्था करता हुआ कन्नौज पहुँचा।
 
[[कन्नौज]] (बिलग्राम १५४० ई.) का युद्ध- हुमायूँ चौसा के युद्ध में पराजित होने के बाद कालपीहोता आगरा पहुँचा, वहाँ मुगल परिवार के लोगो ने शेर खाँ को पराजित करने का निर्णय लिया। शेरशाह तेजी से दिल्ली की और बढ़ रहा था फलतः मुगल बिना तैयारी के कन्‍नौज में आकर भिड़ गये ।गये। तुरन्त आक्रमण के लिए दोनों में से कोई तैयार नहीं था ।था। शेरशाह ख्वास खाँ के आने की प्रतीक्षा में था ।था। हुमायूँ की सेना हतोत्साहित होने लगी ।लगी। मुहम्मद सुल्तान मिर्जा और उसका शत्रु रणस्थल से भाग खड़े हुए ।हुए। कामरान के ३ हजार से अधिक सैनिक भी भाग खड़े हुए फलतः ख्वास खाँ, शेरशाह से मिल गया ।गया। शेरशाह ने ५ भागों में सेना को विभक्‍त करके मुगलों पर आक्रमण कर दिया ।दिया।
 
जिस रणनीति को अपनाकर पानीपत के प्रथम युद्ध में अफगान की शक्‍ति को समाप्त कर दिया उसी नीति को अपनाकर शेरशाह ने हुमायूँ की शक्‍ति को नष्ट कर दिया ।दिया। मुगलों की सेना चारों ओर से घिर गयी और पूर्ण पराजय हो गयी ।गयी। हुमायूँ और उसके सेनापति आगरा भाग गये ।गये। इस युद्ध में शेरशाह के साथ ख्वास खाँ, हेबत खाँ, नियाजी खाँ, ईसा खाँ, केन्द्र में स्वयं शेरशाह, पार्श्‍व में बेटे जलाल खाँ और जालू दूसरे पार्श्‍व में राजकुमार आद्रित खाँ, कुत्बु खाँ, बुवेत हुसेन खाँ, जालवानी आदि एवं कोतल सेना थी ।थी। दूसरी और हुमायूँ के साथ उसका भाई हिन्दाल व अस्करी तथा हैदर मिर्जा दगलात, यादगार नसरी और कासिम हुसैन सुल्तान थे ।थे।
 
== शेरशाह का राज्याभिषेक ==
शेरशाह कन्‍नौज युद्ध की विजय के बाद वह कन्नौज में ही रहा और शुजात खाँ को ग्वालियर विजय के लिए भेजा ।भेजा। वर्यजीद गुर को हुमायूँ को बन्दी बनाकर लाने के लिए भेजा ।भेजा। नसीर खाँ नुहानी को दिल्ली तथा सम्बलपुर का भार सौंप दिया ।दिया।
 
अन्ततः शेरशाह का १० जून, १५४० को आगरा में विधिवत्‌ राज्याभिषेक हुआ ।हुआ। उसके बाद १५४० ई. में लाहौर पर अधिकार कर लिया ।लिया। बाद में ख्वास खाँ और हैबत खाँ ने पूरे पंजाब पर अधिकार कर लिया ।लिया। फलतः शेरशाह ने भारत में पुनः द्वितीय अफगान साम्राज्य की स्थापना की ।की। इतिहास में इसे सूरवंश के नाम से जाना जाता है ।है। सिंहासन पर बैठते समय शेरशाह ६८ वर्ष का हो चुका था और ५ वर्ष तक शासन सम्भालने के बाद मई १५४५ ई. में उसकी मृत्यु हो गई ।गई।
 
== द्वितीय अफगान साम्राज्य ==
शेरशाह ने उत्तरी भारत (बिहार) में सूर वंश तथा द्वितीय अफगान साम्राज्य की स्थापना की थी ।थी। इस स्थापना में उसने अनेकों प्रतिशोध एवं युद्धों को लड़ा ।लड़ा।
 
पश्‍चिमोत्तर सीमा की सुरक्षा- शेरशाह ने सर्वप्रथम पश्‍चिमोत्तर सीमा की सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया। उसने मुगलों के प्रभाव को पूर्णतः समाप्त कर दिया ।दिया। मुगलों पर विशेष नजर रखने के लिए एक गढ़ बनवया जिसका निर्माण टोडरमल और हैबत खाँ नियाजी की अध्यक्षता में करवाया गया और इस्लामशाह के काल में पूरा हुआ ।हुआ। हुमायूँ का पीछा करते हुए शेरशाह मुल्तान तक गया वहाँ बलूची सरदारों ने भी उसको सम्राट मानकर अधीनता स्वीकार की ।की। मुल्तान के लिए पृथक्‌ हाकिम नियुक्‍त किया गया ।गया। निपुण सेनानायकों मसलन हैबत खाँ नियाजी, ख्वास खाँ, राय हुसैन जलवानी आदि की नियुक्‍ति की ।की। उसे ३० हजार सेना रखने की अनुमति दे दी ।दी।
 
मालवा पर अधिकार- मारवाड़ में मालदेव शासन कर रहा था ।था। शेरशाह के भय से हुमायूँ मालदेव की शरण में गया ।गया। शेरशाह ने हुमायूँ को बन्दी बनाकर सौंप देने का सम्वाद भेजा लेकिन मालदेव ने ऐसा नहीं किया ।किया।
 
फलतः शेरशाह ने अप्रसन्‍न होकर १५४२ ई. में मालवा पर आक्रमण कर दिया ।दिया। राजपूत सामन्तों ने शेरशाह का पूरी बहादुरी के साथ मुकाबला किया लेकिन शेरशाह की सेना के सामने टिक नहीं सके फलतः १५४३ ई. तक विजय प्राप्त की ।की। इस दौरान पूरनमल ने भी अधीनता स्वीकार कर ली ।ली।
 
इस युद्ध में राजपूतों की वीरता देखकर शेरशाह ने अपने उद्‍गार प्रकट किए थे- मैंने मुट्ठी भर बाजरे के लिए (इस प्रदेश की मुख्य फसल थी) लगभग अपना साम्राज्य ही खो दिया था ।था। बाद में सारंगपुर में कादिरशाह ने अधीनता स्वीकार कर ली ।ली। इस प्रकार मांडू और सतवास पर शेरशाह का अधिकार हो गया ।गया।
 
शेरशाह ने शुजात खाँ को रूपवास में, दरिया खाँ को उज्जैन में, आलम खाँ को सारंगपुर में, पूरनमल को रायसीन में तथा मिलसा को चन्देरी में नियुक्‍त किया ।किया। शेरशाह ने बाद में शुजात खाँ को सम्पूर्ण मालवा का हाकिम नियुक्‍त किया और १२ हजार सैनिक रखने की अनुमति दे दी ।दी।
 
=== रणथम्भौर पर अधिकार ===
शेरशाह १५४३ ई. में रणथम्भौर होता हुआ आया, फलतः वहाँ के हाकिम ने अपनागढ़ पर उनकी अधीनता स्वीकार की ।की। शेरशाह ने अपने बड़े पुत्र आदित्य को वहाँ का हाकिम नियुक्‍त किया ।किया।
 
रायसीन पर अधिकार- पूरनमल के विरुद्ध शेरशाह ने कट्टरपंथियों व उलेमाओं की बात में आकर कार्यवाही की ।की। उसने अपने किये वायदे को तोड़ा ।तोड़ा। स्वयं जाँच करने पर सही पाया फलतः पूरनमल अपने सम्मान को बचाते हुए स्वयं लड़ते हुए मारा गया ।गया।
 
शेरशाह ने सम्राट बनने से पूर्व विभिन्‍न स्थानों पर अपनी सुविधा और फायदे को ध्यान में रखकर विश्‍वासघात किया था ।था। पूरनमल को एक सम्राट की हैसियत से आश्‍वासन देकर खुले मैदान में हराने में सक्षम होते हुए भी उलेमा की राय का बहाना बनाकर जो विश्‍वासघात किया वह उसके यश को सदा के लिए कलंकित करता रहेगा ।रहेगा। फलतः बिना किसी हानि के राजपूतों का नाश हुआ और मिलसा, रायसीन तथा चंदेरी पर शेरशाह का अधिकार हो गया ।गया।
 
== कालिंजर युद्ध ==
यह शेरशाह का अन्तिम युद्ध था ।था। यह युद्ध चन्देल राजपूतों के साथ हुआ ।हुआ। भाटा के राजा वीरभानु ने हुमायूँ की सहायता की थी, जिससे शेरशाह ने एक दूत वीरभानु के पास भेज दिया ।दिया। वीरभानु डरकर कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चन्देल की शरण में चला गया ।गया। शेरशाह ने कीर्तिसिंह से वीरभानु की माँग की जिसे उसने अस्वीकार कर दिया ।दिया। फलतः शेरशाह ८०,००० घुड़सवार, २,००० हाथी और अनेक तोपों के साथ कालिंजर पर आक्रमण कर दिया ।दिया। उसने अपने बेटे आदित्य खाँ को आदेश दिया कि वह रणथम्भौर, अजमेर, बयाना और निकटवर्ती प्रदेश पर कड़ी नजर रखे ।रखे। पटना स्थित जलाल खाँ को आज्ञा भेजी कि वह पूरब की ओर से बघेल चन्देल राज्य को घेर ले ।ले। यह व्यवस्था करके उसने कालिंजर का घेरा डाला ।डाला। कीर्तिसिंह और शेरशाह के साथ छः माह तक युद्ध चलता रहा ।रहा। बड़ी तोपों के लिए सबाते और सरकोव (ऊँचे खम्भे) बनाये गये और उसके ऊपर से किले की दीवार पर गोलीबारी प्रारम्भ की गई ।गई। एक दिन शेरशाह अपने सैकों का निरीक्षण कर रहा था, उसने देखा कि जलाल खाँ जलवानी हुक्‍के (हुक्‍के-एक प्रकार के अग्निबाण, जो हाथ से फेंके जाते थे) तैयार कराये हैं और उसका प्रयोग करके दुर्ग के भीतर संकट उपस्थित करने की योजना बनाई है ।है। शेरशाह ने स्वयं हुक्‍कों को फेंकना शुरू कर दिया ।दिया। एक हुक्‍का किले की बाहरी दीवार से टकराकर उस ढेर पर आ गिरा जहाँ शेरशाह खड़ा था, तुरन्त एक भीषण ज्वाला प्रज्वलित हो उठी और शेरशाह बुरी तरह जल गया ।गया। शेरशाह की हालत बिगड़ने लगी और उनके सैनिक और सेनापति पास आकर दुःख प्रकट करने लगे ।लगे।
 
शेरशाह ने कहा कि यदि वे उसके जीवित रहते गढ़ पर अधिकार कर लें तो वह शान्ति से प्राण छोड़ सकेगा ।सकेगा। फलतः भीषणता से आक्रमण कर दुर्ग पर शेरशाह का अधिकार हो गया ।गया। जीत की सूचना पाकर वह मई १५४५ ई. में मर गया ।गया।
 
शेरशाह ने अपने अल्पकालीन शासनकाल में अनेक सार्वजनिक कार्य किये जो निम्न हैं-
 
=== शासन सुधार ===
शेरशाह ने एक जनहितकारी शासन प्रणाली की स्थापना की ।की। शासन को सुविधाजनक प्रबन्ध के लिए सारा साम्राज्य को ४७ भागों में बाँट दिया, जिसे प्रान्त कहा जाता है ।है। प्रत्येक प्रान्त में एक फौजदार था जो सूबेदार होता था ।था। प्रत्येक प्रान्त सरकार, परगनों तथा गाँव परगने में बँटे थे ।थे। सरकार में प्रमुख अधिकारी होते थे-शिकदार-ए-शिकदारा तथा मुन्सिफ-ए-मुन्सिफा ।मुन्सिफा। प्रथम सैन्य अधिकारी होता था, जबकि दूसरा दीवानी मुकदमों का फैसला देता था ।था।
 
शेरशाह के प्रशासनिक सुधार में महत्वपूर्ण स्थानों पर मजबूत किलों का निर्माण शामिल था ।था। बिहार में रोहतास का किला निर्माण कर सुरेमान करारानी को बिहार का सुल्तान नियुक्‍त किया ।किया।
 
ऐसा माना जाता है कि शेरशाह बंगाल पर अधिकार करने के बाद वह बिहार में पटना आया ।आया। एक दिन वह गंगा किनारे पर खड़ा था तो उसे यह जगह सामरिक महत्व की ओर ध्यान गया, उसने एक किले का निर्माण कराया ।कराया। मौर्यों के पतन के बाद पटना पुनः प्रान्तीय राजधानी बनी, अतः आधुनिक पटना को शेरशाह द्वारा बसाया माना जाता है ।है।
 
=== भूमि व्यवस्था ===
शेरशाह द्वारा भूमि व्यवस्था अत्यन्त ही उत्कृष्ट था ।था। उसके शासनकाल के भू-विशेषज्ञ टोडरमल खत्री था ।था।
 
शेरशाह ने भूमि सुधार के लिए अनेक कार्य किए ।किए। भूमि की नाप कराई, भूमि को बीघों में बाँटा, उपज का १/३ भाग भूमिकर के लिए निर्धारित किया, अनाज एवं नकद दोनों रू में लेने की प्रणाली विकसित कराई ।कराई। पट्टे पर मालगुजारी लिखने की व्यवस्था की गई ।गई। किसानों की सुविधा दी गई कि वह भूमिकर स्वयं राजकोष में जमा कर सकता था ।था।
 
=== सैन्य व्यवस्था ===
शेरशाह ने एक सशक्‍त एवं अनुशासित सैन्य व्यवस्था का गठन किया ।किया। सेना में लड़ाकू एवं निपुण अफगानों एवं राजपूतों को भर्ती किया, लेकिन ज्यादा से ज्यादा अफगान ही थे ।थे। सेना का प्रत्येक भाग एक फौजदार के अधीन कर दिया गया ।गया। शेरशाह ने घोड़ा दागने की प्रथा शुरू थी ।थी। उसके पास डेढ़ लाख घुड़सवार, २५ हजार पैदल सेना थी ।थी। वह सैनिकों के प्रति नम्र लेकिन अनुशासन भंग करने वाले को कठोर दण्ड दिया करता था ।था।
 
=== न्याय व्यवस्था ===
शेरशाह की न्यासी व्यवस्था अत्यन्त सुव्यवस्थित थी ।थी। शेरशाह के शासनकाल में माल और दीवानी के स्थानीय मामले की सुनवाई के लिए दौरा करने वाले मुंसिफ नियुक्‍त किये गये ।गये। प्रधान नगरों के काजियों के अलावा सरकार में एक प्रधान मुंसिफ भी रहता था जिसे अपील सुनने तथा मुंसिफों के कार्यों के निरीक्षण करने का अधिकार था ।था।
 
शेरशाह ने पुलिस एवं खुफिया विभाग की स्थापना की ।की। शान्ति व्यवस्था के लिए शिकों में प्रधान शिकदार, परगनों में शिकदार तथा गाँवों में पटवारी थे ।थे। षड्‍यन्त्रों का पता लगाने के लिए खूफिया विभाग था ।था।
 
साहित्य, कला, एवं सांस्कृतिक भवन- शेरशाह के शासन काल में साहित्य, कला एवं सांस्कृतिक भवनों का संरक्षण एवं निर्माण हुआ ।हुआ। इसी के शासनकाल में मलिक मोहम्मद जायसी ने पद्‍मावत की रचना की ।की। इसके शासनकाल में महदवी नेता शेख अलाई का शिक्षा विचार उल्लेखनीय है ।है। इसके दरबार में अनेक प्रसिद्ध विद्वान मीर सैयद, मंझन, खान मोहम्मद, फरयूली और मुसान थे ।थे। इनके शासन में फारसी तथा हिन्दी का पूर्ण विकास हुआ ।हुआ।
 
उसने अनेकों भवनों जिसमें रोहतासगढ़, सहरसा का दुर्ग प्रसिद्ध दुर्ग हैं ।हैं। इस प्रकार शेरशाह ने अल्प अवधि में बंगाल से सिंह तक जाने वाली ५०० कोस लम्बी ग्रांड ट्रंक सड़क का निर्माण किया ।किया। आगरा से बुहारनपुर तक, आगरा से बयाना, मारवाड़, चित्तौड़ तक एवं लाहौर से मुल्तान तक ये उपर्युक्‍त चार सड़कों का निर्माण किया ।किया। शेरशाह ने अनेक सरायों (लगभग १,७००) का निर्माण किया ।किया। सरायों की देखभाल शिकदार करता था ।था।
 
=== शेरशाह के उत्तराधिकारी ===
शेरशाह की मृत्यु के बाद उसका योग्य एवं चरित्रवान पुत्र जलाल खाँ गद्दी पर बैठा, लेकिन अपने बड़े भाई आदिल खाँ के रहते सम्राट बनना स्वीकार नहीं किया था ।था। उसने अमीरों व सरदारों के विशेष आग्रह पर राजपद ग्रहण किया ।किया। गद्दी पर बैठते ही अपना नाम इस्लामशाह धारण किया और उसने आठ वर्षों तक शासन किया ।किया। इस्लामशाह के समय विद्रोह और षड्‍यन्त्र का दौर चला ।चला। उनकी हत्या के लिए अनेक बार प्रयास किया गया, लेकिन इस्लामशाह ने धीरे-धीरे लगभग सभी पुराने विश्‍वासी सेनापतियों, हाकिमों व अधिकारियों आदि जो सन्देह के घेरे में आते गये उनकी हत्या करवा दी ।दी। सुल्तान के षड्‍यन्त्र में एकमात्र रिश्तेदार शाला को छोड़ा गया ।गया।
 
मुगलों के आक्रमण के भय से (१५५२-५३ ई.) वह रोगशय्या से उठकर तीन हजार सैनिकों के साथ लड़ाई के लिए चल पड़ा ।पड़ा। यह खबर पाकर मुगल सेना भाग खड़ी हुई ।हुई। हुमायूँ के लौट जाने पर इस्लामशाह ग्वालियर (उपराजधानी) में लौट आया ।आया। अन्ततः १५५३ ई. में उसकी मृत्यु हो गई ।गई।
 
इस्लामशाह के बाद उसका पुत्र फिरोजशाह गद्दी पर आसीन हुआ ।हुआ। उसके अभिषेक के दो दिन बाद ही उसके मामा मुवारिज खाँ ने उसकी हत्या कर दी और वह स्वयं मुहम्मद शाह आदिल नाम से गद्दी पर बैठ गया लेकिन आदिल के चचेरे भाई इब्राहिम खाँ सूर ने विद्रोह कर दिल्ली की गद्दी पर बैठा ।बैठा। इसके बाद उसका भाई सिकन्दर सूर दिल्ली का शासक बना ।बना। सूरवंशीय शासक के रूप में सिकन्दर सूर दिल्ली के शासक बनने के बाद उसे मुगलों (हुमायूँ) के आक्रमण का भय था ।था।
 
१५४५ ई. हुमायूँ ने ईरान शाह की सहायता से काबुल तथा कन्धार पर अधिकार कर लिया ।लिया। १५५५ ई. में लाहौर को जीता ।जीता। १५ मई, १५५५ में मच्छीवाड़ा युद्ध में सम्पूर्ण पंजाब पर अधिकार कर लिया ।लिया। २२ जून, १५५५ के सरहिन्द युद्ध में अफगानों (सिकन्दर सूर) पर निर्णायक विजय प्राप्त कर हुमायूँ ने भारत के राजसिंहासन को प्राप्त किया तथा २३ जुलाई, १५५५ को भारत का सम्राट बना लेकिन १५५६ ई. में उसकी मृत्यु हो गई ।गई। इससे पहले उसने १५ वर्षीय सूर वंश को समाप्त कर दिया ।दिया।
 
== [[मुगल]] शासन ==
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इसी अवधि में मुनीम खाँ ने बंगाल और उड़ीसा के शासक दाऊद खाँ को पराजित करके मुगल प्रभुत्व की स्थापना की परन्तु अक्टूबर १५७५ ई. में मुनीम खाँ की मृत्यु हो जाने के बाद दाऊद खाँ ने पुनः सम्पूर्ण बंगाल पर अधिकार कर लिया। अकबर ने हुसैन कुली को बंगाल का गवर्नर बनाकर भेजा साथ-साथ बिहार के गवर्नर मुजफ्फर खान के खिलाफ ५,००० सेना भी भेजी। १५८२ ई. में खान-ए-आजम भी शाही दरबार में लौट गया, परन्तु विद्रोह भड़क जाने के कारण पुनः बिहर लौट गया और वह बिहार को पूर्णतः विद्रोह मुक्‍त कर दिया। अब मुगलों ने बंगाल में उठे विद्रोह को दबाने की कोशिश करने लगा। बिहार के प्रमुख अधिकारियोंं एवं खान-ए-आजम, भी बंगाल गये। बारी-बारी से खान-ए-आजम, शाहनबाज, सईद खान चधता तथा युसूफ खाँ को भेजा गया। अन्त में सईद खान को गवर्नर बनाकर ये सभी अधिकारी शाही दरबार में चले गये। सईद खान को बंगाल का सूबेदार बनाया गया।
 
१५८७ ई. में कुँवर मानसिंह को बिहार का सूबेदार नियुक्‍त किया गया ।गया। १५८९ ई. में राजा भगवान दास की मत्यु के पश्‍चात्‌ मानसिंह को राजा की पद्‍वी दी गई ।गई। उन्होंने गिद्दौर के राजा पूरनमल की पुत्री से शादी की ।की। खड्‍गपुर के राजा संग्राम सिंह एवं चेरो राजा अनन्त सिंह को अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य किया ।किया।
 
[[राजा मानसिंह]] के पुत्र जगत सिंह ने बंगाल के विद्रोही सुल्तान कुली कायमक एवं कचेना (जो बिहार के तांजपुर एवं दरभंगा में उत्पात मचा रहे थे) को शान्त किया ।किया। बिहार में मुगलों की सत्ता स्थापित होने के दौर में अफगानों ने अनेक बार विद्रोह किये ।किये।
 
१९४ ई. में सईद खान तीसरी बार बिहार का सूबेदार बना और १५९८ ई. तक बना रहा ।रहा। १५९९ ई. में जब उज्जैन शासक दलपत शाही ने विद्रोह किया तो इलाहाबाद के गवर्नर राजकुमार दानियाम ने उसकी पुत्री से विवाह कर लिया ।लिया।
 
इस प्रकार [[अकबर]] के समय बिहार पठानों एवं मुगलों की लड़ाई का केन्द्र बना रहा और भोजपुर तथा उज्जैन ने मुगलों से ज्यादा पठानों के साथ अपना नजदीकी सम्बन्ध बनाये रखा ।रखा। अकबर के अन्तिम समय में बिहार सलीम के विद्रोह से मुख्य रूप से प्रभावित हुआ ।हुआ। तत्कालीन गवर्नर असद खान को हटाकर असफ खान को गवर्नर नियुक्‍त किया गया ।गया।
 
जब [[जहाँगीर]] ने दिल्ली के राजसिंहासन १६०६ ई. में बैठा, तब उसने बिहार का सूबेदार लाल बेग या बाज बहादुर को नियुक्‍त किया ।किया। बाज बहादुर ने खडगपुर ने राजा संग्रामसिंह के विद्रोह को सफलतापूर्वक दबाया ।दबाया। बाज बहादुर ने नूरसराय का निर्माण कराया (जो स्थानीय परम्पराओं के अनुसार दरभंगा में एक मस्जिद एवं एक सराय है) यह नूरसराय मेहरुनिसा (नूरजहाँ) के बंगाल से दिल्ली जाने के क्रम में यहाँ रुकने के क्रम में बनायी गयी थी ।थी। १६०७ ई. बाज बहादुर ने जहाँगीर कुली खान की उपाधि पा गया था और उसे बंगाल का गवर्नर बनाकर भेजा गया ।गया। इसके बाद इस्लाम खान बिहार का गवर्नर बन गया १६०८ ई. में पुनः उसे भी बंगाल का गवर्नर बना दिया गया ।गया। इस्लाम के बाद अबुल फजल का पुत्र अब्दुर्रहीम या अफजल खान बिहार का सूबेदार बना तथा कुतुबशाह नामक विद्रोही को कुछ कठिनाइयों के बाद सफलतापूर्वक दबा दिया गया था ।था।
 
१६१३ ई. में अफजल खान की मृत्यु के बाद जफर खान बिहार का सूबेदार बना ।बना। १६१५ ई. में नूरजहाँ का भाई इब्राहिम खाँ बिहार का सूबेदार बना लेकिन खडगपुर के राजा संग्राम सिंह के पुत्र द्वारा इस्लाम धर्म स्वीकार करने के बाद उसने अपना राज्य प्राप्त कर लिया ।लिया। इब्राहिम खान को १६१७ ई. में बंगाल के गवर्नर के रूप में स्थानान्तरण किया गया तथा जहाँगीर कुली खाँ द्वितीय को १६१८ ई. तक बिहार का गवर्नर नियुक्‍त कर दिया ।दिया। फिर एक बार अफगानों और मुगलों की सेना के बीच १२ जुलाई, १५७६ को राजमहल का युद्ध हुआ और अफगान पराजित हुए ।हुए। इधर भोजपुर एवं जगदीशपुर में उज्जैन सरदार राजा गज्जनशाही ने विद्रोह कर दिया ।दिया। प्रारम्भ में मुगल सेना को काफी सहायता दी ।दी। उसने विद्रोह कर आरा पर कब्जा जमाया और वहाँ के जागीरदार फरहत खाँ को घेर लिया ।लिया। उसका पुत्र फहरंग खान ने अपने पिता को गज्जनशाही के घेरे से मुक्‍त कराने का प्रयास किया, परन्तु इस प्रयास में वह मारा गया तथा फरहत भी मारा गया ।गया। गज्जनशाही गाजीपुर की ओर खान-ए-जहाँ के परिवार के सदस्यों को गिरफ्तार करने के उद्देश्य से गया लेकिन केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्‍त शाहवाज खान कम्बो ने पीछा करते हुए जगदीशपुर पहुँच गया और तीन माह तक घेराबन्दी कर अन्त में उसे पराजित कर दिया ।दिया।
 
इसके पश्‍चात्‌ रोहतास के क्षेत्रों में अफगानों का उपद्रव शुरू हो गया ।गया। काला पहाड़ नामक अफगान (जो बंगाल से आया था) के साथ मिलकर विद्रोह शुरू कर दिया ।दिया। मालुम खान ने इसे पराजित कर मार डाला ।डाला। फलतः शाहवाज खान ने रोहतास के किले एवं शेरगढ़ पर अधिकार कर लिया ।लिया।
 
१५७७ ई. में मुजफ्फर खान को बिहार से [[आगरा]] बुला लिया गया और शुजात खान को बिहार का गवर्नर बनाया गया ।गया। १५७८ ई. से १५८० ई. तक बिहार का कोई मुगल गवर्नर नहीं रहा ।रहा। इस अवधि में छोटे-छोटे सरदार ही शासन करते थे ।थे। पटना, रोहतास, आरा, सासाराम, हाजीपुर, तिरहुत के क्षेत्रों में सरदारों का शासन चलता था ।था। बिहार में सूबेदार के अभाव में अव्यवस्था तथा अराजकता का माहौल बना हुआ था ।था।
 
१५७९ ई. में शेरशाह ने मुल्ला तैयब को दीवान एवं राय पुरुषोत्तम को मीर बक्शी नियुक्‍त किया था, लेकिन अधिकारियों की अदूरदर्शिता से शासन प्रणाली और अधिक चरमरा गई ।गई। इसी दौरान बिहार में अरब बहादुर के नेतृत्व में विद्रोह भड़क उठा ।उठा। पटना में बंगाल से सम्पत्ति ले जा रही गाड़ियों को लूट लिया गया तथा १५८० ई. में विद्रोहियों ने मुजफ्फर खान की हत्या कर दी ।दी। कुशाग्र एवं बुद्धि वाला सेनापति राजा टोडरमल ने अतिरिक्‍त शाही सैनिक सहायता से बंगाल का विद्रोही नेता बाबा खान कमाल को मार डाला तथा मुंगेर शासक यासुम खान को घेर लिया ।लिया।
 
यासुम खान पराजित हो गया फलतः शाही सेना गया होते हुए शेर घाटी पहुँची ।पहुँची। १५८० ई. के अन्त तक लगभग सम्पूर्ण दक्षिणी बिहार पर पुनः मुगलों का अधिकार हो गया ।गया।
 
अकबर ने अपने साम्राज्य को १२ सूबों में बाँटा था ।था। उसमें बिहार भी एक अलग सूबा था जिसका गवर्नर खान-ए-आजम मिर्जा अजीज कोकलतास को बनाया गया ।गया। इस समय बिहार की कुल आय २२ करोड़ दाय अर्थात्‌ ५५,४७,९८५ रु. थी ।थी।
 
१६१८ ई. मुर्करव खान को बिहार का सूबेदार नियुक्‍त किया गया ।गया। वह अपने पिता के अनुरूप एक अच्छा चिकित्सक एवं अंग्रेजी साझी व्यापारी था ।था। १६२१ ई. में बिहार का गवर्नर बनने वाला पहला राजकुमार था ।था। वह शहजादा परवेज था ।था। उसके प्रशासनिक कार्यों में मुखलिस खान सहायता करता था ।था। इस समय बिहार में एक अफगान सरदार नाहर बहादुर खवेशगी द्वारा १६३६ ई. में पटना में पत्थर की मस्जिद का निर्माण करवाया था ।था।
 
१६२२-२४ ई. की अवधि में शहजादा खुर्रम ने बादशाह के खिलाफ विद्रोह कर दिया ।दिया। खुर्रम ने पटना, रोहतास आदि क्षेत्रों पर परवेज का अधिकार छीन लिया ।लिया। इसी समय खुर्रम ने खाने दुर्रान (बैरम बेग) को बिहार का गवर्नर बनाया ।बनाया।
 
२६ अक्टूबर, १६२४ को बहादुरपुर के निकट टोंस नदी पर शहजादा परवेज की सेना ने खुर्रम को पराजित कर दिया ।दिया। खुर्रम पटना होते हुए अकबर नगर चला गया फिर जहाँगीर द्वारा सुलह कर लिया गया ।गया। १६२६-२७ ई. में शहजादा परवेज के स्थान पर मिर्जा रुस्तम एफावी को को बिहार का सूबेदार बनाया गय जो जहाँगीर का अन्तिम गवर्नर था ।था। १६२८ ई. में खान-ए-आलम बिहार का सूबेदार आठ वर्षों तक बना रहा ।रहा। इसके बाद गुजरात के गवर्नर सैफ खान को बिहार का गवर्नर बना दिया गया ।गया। वह योग्य गवर्नरों में एक था उसने ही १६२८-२९ ई. में पटना में सैफ खान मदरसा का निर्माण कराया था ।था। १६३२ ई. में बिहार का गवर्नर शाहजहाँ ने अपने विश्‍वस्त अब्दुल्ला खान बहादुर फिरोज जंग को बनाया ।बनाया। इस समय भोजपुर के उज्जैन शासक ने विद्रोह कर दिया ।दिया। वह पहले मुगल अधीन मनसबदार था ।था। अन्त में पराजित होकर राजा प्रताप को मार डाला ।डाला।
 
एक शाही अधिकारी शहनवाज खान बिहार आया ।आया। उसने खान-ए-आजम के साथ मिलकर [[उज्जैन]] के सरदार दलपत शाही एवं अन्य विद्रोही अरब बहादुर को शान्त किया ।किया। राजा टोडरमल के शाही दरबार में लौटने के बाद शाहनवाज को वजीर नियुक्‍त किया गया ।गया। अब्दुल्ला खान के बाद मुमताज महल का भाई शाहस्ता खाँ को बिहार का गवर्नर (१६३९-४३ ई.) बनाया गया ।गया।
 
शाइस्ता खाँ ने १६४२ ई. में चेरो शासकों को पराजित कर दिया ।दिया। उसके बाद उसने मिर्जा सपुर या इतिहाद खाँ को बिहार का सूबेदार नियुक्‍त कर दिया ।दिया। १६४३ ई. से १६४६ ई. तक चेरी शासक के खिलाफ पुनः अभियान चलाया गया ।गया। १६४६ ई. में बिहार का सूबेदार आजम खान को नियुक्‍ किया गया ।गया। उसके बाद सईद खाँ बहादुर जंग को सूबेदार बनाया ।बनाया। इसके प्रकार १६५६ ई. में जुल्फिकार खाँ तथा १६५७ ई. में अल्लाहवर्दी ने बिहार का सूबेदारी का भा सम्भाला ।सम्भाला। अल्लाहवर्दी खान शाहजादा शुजा का साथ देने लगा, लेकिन शाही सेना ने शहजादा सुलेमान शिकोह एवं मिर्जा राजा जयसिंह के नेतृत्व में शहजादा शुजा को पराजित कर दिया ।दिया। १६ जनवरी, १६५९ को खानवा के युद्ध में औरंगजेब ने शुजा को पराजित किया और शुजा बहादुर पटना एवं मुंगेर होते हुए राजमहल पहुँच गया ।गया।
 
मुईउद्दीन मुहम्मद औरंगजेब शाहजहाँ तथा मुमताज महल का छठवाँ पुत्र था जब औरंगजेब दिल्ली (५ जून, १६५९) को सम्राट बना तो बिहार का गवर्नर दाऊद खाँ कुरेशी को नियुक्‍त किया गया ।गया। वह १६५९ ई. से १६६४ ई. तक बिहार का सूबेदार रहा ।रहा। दाऊद खाँ के बाद १६६५ ई. में बिहार में लश्कर खाँ को गवर्नर बनाया गया इसी के शासन काल में अंग्रेज यात्री बर्नीयर बिहार आया था ।था। उसने अपने यात्रा वृतान्त में सामान्य प्रशासन एवं वित्तीय व्यवस्था का उल्लेख किया है ।है। उस समय पटना शोरा व्यापार का केन्द्र था ।था। वह पटना में आठ वर्षों तक रहा ।रहा। १६६८ ई. में लश्कर खाँ का स्थानान्तरण कर इब्राहिम खाँ बिहार का सूबेदार बना ।बना। इसके शासनकाल में बिहार में जॉन मार्शल आया था ।था। उसने भयंकर अकाल का वर्णन किया है ।है।
 
एक अन्य डच यात्री डी ग्रैफी भी इब्राहिम के शासनकाल में आया था ।था। जॉन मार्शल ने बिहार के विभिन्‍न शहर भागलपुर, मुंगेर, फतुहा एवं हाजीपुर की चर्चा की है ।है।
 
इब्राहिम खाँ के बाद अमीर खाँ एक साल के लिए बिहार का सूबेदार नियुक्‍त हुआ, उसके बाद १६७५ ई. में तरवियात खाँ को बिहार का सूबेदार नियुक्‍त किया गया ।गया। १६७७ ई. में औरंगजेब का तीसरा पुत्र शहजादा आजम को बिहार का गवर्नर नियुक्‍त किया गया ।गया। इसी अवधि में पटना में गंगाराम नामक व्यक्‍ति ने विद्रोह कर दिया ।दिया। भोजपुर एवं बक्सर के राजा रूद्रसिंह ने भी असफल बगावत की ।की। शफी खाँ के पश्‍चात्‌ बजरंग उम्मीद खाँ बिहार का गवर्नर बना परन्तु अपने अधिकारियों से मतभेद के कारण ज्यादा दिनों तक गद्दी पर नहीं रहा ।रहा।
 
फिदा खाँ १६९५ ई. से १७०२ ई. तक बिहार का सूबेदार बना रहा ।रहा। इस अवधि में तिरहुत और संथाल परगना (झारखण्ड) में अशान्ति रही ।रही। कुंवर धीर ने विद्रोह कर दिया ।दिया। इसे पकड़कर दिल्ली लाया गया ।गया। फिदा खाँ के बाद शहजादा अजीम बिहार के साथ-साथ बंगाल का भी शासक बना ।बना। शहजादा अजीम आलसी और आरामफरोश होने के कारण शीघ्र ही सत्ता का भार करतलब खाँ को दे दिया गया जो बाद में मुर्शिद कुली खाँ के नाम से जाना गया ।गया। परस्पर सम्बन्ध में कतुता आ गयी ।गयी। १७०४ ई. में शहजादा अजीम स्वयं पटना पहुँचा ।पहुँचा। प्रशासनिक सुदृढ़ता के कारण शहर (पटना) का नाम अजीमाबाद रखा गया ।गया। बाद में अलीमर्दन के विद्रोह को दबाने को चला गया ।गया। १७०७ ई. में जब औरंगजेब की मृत्यु हो गई तथा बहादुरशाह १७०७ ई. में शसक बना और १७१२ ई. तक दिल्ली का शासक रहा तब राजकुमार अजीम बिहार का गवर्नर पद पर अधिक शक्‍ति के साथ बना हुआ था ।था। उसका नाम अजीम उश शान हो गया ।गया।
 
१७१२ ई. में बहादुरशाह की मृत्यु हो गयी तो अजीम उश शान ने भी दिल्ली की गद्दी प्राप्त करने की कोशिश की, लेकिन वह असफल होकर मारा गया ।गया। जब दिल्ली की गद्दी पर जहाँदरशाह बादशाह बना तब अजीम उश शान का पुत्र फर्रुखशियर पटना में था ।था। उसने अपना राज्याभिषेक किया और आगरा पर अधिकार के लिए चल पड़ा ।पड़ा। आगरा के समीप फर्रुखशियर ने जहाँदरशाह को पराजित कर दिल्ली का बादशाह बन गया ।गया।
 
१७०२ ई. में मुगल सम्राट [[औरंगजेब]] के पौत्र राजकुमार को बिहार का सूबेदार नियुक्‍त किया गया ।गया। प्रशासनिक सुधार उन्होंने विशेष रूप से पटना में किया फलतः पटना का नाम बदलकर ‘अजीमाबाद’ रख दिया ।दिया।
 
* अजीम का पुत्र फर्रूखशियर पहला मुगल सम्राट था जिसका राज्याभिषेक बिहार के (पटना में) हुआ था ।था।
* मुगलकालीन बिहार में शोरा, हीरे तथा संगमरमर नामक खनिजों का व्यापार होता था ।था।
 
* फर्रूखशियर के शासनकाल से बिहार का एक प्रान्तीय प्रशासन प्रभाव धीरे-धीरे कम होते-होते अलग सूबा की पहचान समाप्त हो गई ।गई।
 
१७१२ ई. से १७१९ ई. तक फर्रूखशियर दिल्ली का बादशाह बना इसी अवधि में बिहार में चार गवर्नर-
खैरात खाँ- १७१२ ई. से १७१४ ई. तक, मीलू जुमला- १७१४ ई. से १७१५ ई. तक, सर बुलन्द खाँ-१७१६ ई. से १७१८ ई. तक बना ।बना। इस दौरान जमींदारों के खिलाफ अनेक सैनिक अभियान चलाए गये ।गये। भोजपुर के उज्जैन जमींदार सुदिष्ट नारायण का विद्रोह, धर्मपुर के जमींदार हरिसिंह का विद्रोह आदि प्रमुख विद्रोही थे ।थे। इन विद्रोहियों का तत्कालीन गवर्नर सूर बुलन्द खाँ ने दमन किया ।किया। सूर बुलन्द खाँ के पश्‍चात्‌ खान जमान खाँ १७१८-२१ ई. में बिहार का सूबेदार बना ।बना। अगले पाँच वर्षों के लिए नुसरत खाँ को बिहार का नया गवर्नर बना दिया गया ।गया। बाद में फखरुद्दौला बिहार का सूबेदार बनकर उसने छोटा नागपुर, पलामू (झारखण्ड) जगदीशपुर के उदवन्त सिंह के खिलाफ सैन्य अभियान छेड़ा ।छेड़ा।
 
इसी के शासनकाल में ही पटना में दाऊल उदल (कोर्ट ऑफ जस्टिस) का निर्माण किया गया ।गया। परन्तु कुछ कारणवश इन्हें १७३४ ई. में पद से विमुक्‍त कर दिया गया ।गया। फखरुद्दौला की नियुक्‍ति के बाद शहजादा मिर्जा अहमद को बिहार का नाममात्र का अधिकारी गवर्नर नियुक्‍त किया गया बाद में इसे सहायक रूप में बंगाल में (नाजिम शुजाउद्दीन) को नियुक्‍त किया गया ।गया। शुजाउद्दीन ने अपने विश्‍वत अधिकारी अलीवर्दी खाँ को अजीमाबाद में शासन की देखभाल के लिए भेजा ।भेजा। वह अजीमाबाद (पटना में) १७३४ ई. से १७४० ई. तक नवाब बना रहा ।रहा। उसने अपनी शासन अवधि में बिहार के विद्रोहों को दबाया और एक सश्रम प्रणाली का विकास कर राज्य की आय में बढ़ोत्तरी की ।की। यही बढ़ी आय को उसने बंगाल अभियान में लगाया ।लगाया। वह १७३९ ई. में शुजाउद्दीन की मृत्यु के बाद गिरियाँ युद्ध में शुजाउद्दीन के वंशज को हराकर बिहार और बंगाल का स्वतन्त्र नवाब बन गया ।गया। इसी समय बंगाल पर मराठों और अफगानों का खतरा बढ़ गया ।गया। अफगानों ने १७४८ ई. में हैबतजंग की हत्या कर दी ।दी।
 
अलीवर्दी खाँ ने स्वयं रानी सराय एवं पटना के युद्ध में अफगान विद्रोहियों को शान्त किया ।किया। उसने १७५१ ई. में फतुहा के पास मराठों को पराजित किया था किन्तु मराठों ने उड़ीसा के अधिकांश क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया ।लिया। इसमें मराठा विद्रोही का नेतृत्व रघु जी के पुत्र भानु जी ने किया था ।था।
 
१७५६ ई. में अलीवर्दी खाँ की मृत्यु के बाद सिराजुद्दौला बंगाल का नवाब बना लेकिन एक प्रशासनिक अधिकारी रामनारायण को बिहार का उपनवाब बनाया गया ।गया।
 
अप्रैल, १७६६ में सिराजुद्दौला बंगाल की गद्दी पर बैठा, गद्दी पर बैठते ही उसे शौकत जंग, घसीटी बेगम तथा उसके दीवान राज वल्लभ के सम्मिलित षड्‍यन्त्र का सामना करना पड़ा ।पड़ा।
 
सिराजुद्दौला का प्रबल शत्रु मीर जाफर था ।था। वह अलीवर्दी खाँ का सेनापति था ।था। मीर जाफर बलपूर्वक बंगाल की गद्दी पर बैठना चहता था दूसरी तरफ अंग्रेज बंगाल पर अधिकार के लिए षड्‍यन्त्रकारियों की सहायता करते थे ।थे।
 
फलतः व्यापारिक सुविधाओं के प्रश्‍न पर तथा फरवरी, १७५७ ई. में हुई अलीनगर की सन्धि की शर्तों का ईमानदारी के पालन नहीं करने के कारण २३ जून, १७५७ में प्लासी के मैदान में क्लाइव और नवाब सेना के बीच युद्ध हुआ ।हुआ। युद्ध में सिराजुद्दौला मारा गया ।गया। इसके बाद मीर जाफर बंगाल का नवाब बना ।बना।
 
इस प्रकार बिहार, बंगाल एवं उड़ीसा का नवाबी साम्राज्य धीरे-धीरे समाप्त हो गया और अंग्रेजी साम्राज्य की नींव पड़ गई।
 
== मध्यकालीन बिहार के ऐतिहासिक स्रोत ==
बिहार का मध्यकालीन युग १२ वीं शताब्दी से प्रारंभ होता है ।है। ऐसा माना जाता है कि कर्नाटक राजवंश के साथ ही प्राचीन इतिहास का क्रम टूट गया था ।था। इसी काल में तुर्कों का आक्रमण भी प्रारंभ हो गया था तथा बिहार एक संगठित राजनीतिक इकाई के रूप में न था बल्कि उत्तर क्षेत्र और दक्षिण क्षेत्रीय प्रभाव में बँटा था ।था।
 
अतः मध्यकालीन बिहार का ऐतिहासिक स्रोत प्राप्त करने के लिए विभिन्‍न ऐतिहासिक ग्रन्थों का दृष्टिपात करना पड़ता है जो इस काल में रचित हुए थे ।थे।
 
मध्यकालीन बिहार के स्रोतों में अभिलेख, नुहानी राज्य के स्रोत, विभिन्‍न राजाओं एवं जमींदारों के राजनीतिक जीवन एवं अन्य सत्ताओं से उनके संघर्ष, यात्रियों द्वारा दिये गये विवरण इत्यादि महत्वपूर्ण हैं ।हैं।
 
ऐतिहासिक ग्रन्थों में मिनहाज उस शिराज की “तबाकत-ए-नासिरी" रचना है जिसमें बिहार में प्रारंभिक तुर्क आक्रमण की गतिविधियों के सन्दर्भ में महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराती है ।है। बरनी का तारीख-ए-फिरोजशाही भी महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्रोत है ।है।
 
मुल्ला ताकिया द्वारा रचित यात्रा वृतान्त से भी बिहार में तुर्की आक्रमण बिहार और दिल्ली के सुल्तानों (अकबर कालीन, तुर्की शासन, दिल्ली सम्पर्क) के बीच सम्बन्धों इत्यादि की जानकारियाँ मिलती हैं ।हैं।
प्रमुख ऐतिहासिक ग्रन्थ ‘बसातीनुल उन्स’ जो इखत्सान देहलवी द्वारा रचित है ।है। इसमें सुल्तान फिरोजशाह तुगलक के तिरहुत आक्रमण का वृतान्त दिया गया है ।है।
 
रिजकुल्लाह की वकियाते मुश्ताकी, शेख कबीर की अफसानाएँ से भी सोलहवीं शताब्दी बिहार की जानकारी प्राप्त होती है ।है।
 
मध्यकालीन मुगलकालीन बिहार के सन्दर्भ में जानकारी अबुल फजल द्वारा रचित अकबरनामा से प्राप्त होती है ।है। आलमगीरनामा से मुहम्मद कासिम के सन्दर्भ में बिहार की जानकारी होती है ।है।
 
उत्तर मुगलकालीन ऐतिहासिक स्रोत गुलाम हुसैन तबाताई की सीयर उल मुताखेरीन, करीम आयी मुजफ्फरनामा, राजा कल्याण सिंह का खुलासातुत तवासिरत महत्वपूर्ण है जिसमें बंगाल और बिहार के जमींदारों की गतिविधियों की चर्चा है ।है। बाबर द्वारा रचित तुजुके-ए-बाबरी एवं जहाँगीर द्वारा रचित तुजुके में भी बिहार के मुगल शासनकालीन गतिविधियों की जानकारी मिलती है ।है। इन दोनों ग्रन्थों से अपने समय में मुगलों की बिहार के सैनिक अभियान की जानकारी प्राप्त होती है ।है।
 
* मिर्जा नाथन का रचित ऐतिहासिक ग्रन्थ बहारिस्ताने गैबी, ख्वाजा कामागार दूसैनी का मासिर-ए-जहाँगीरी भी १७ वीं शताब्दी के बिहार की जानकारी देती है ।है।
 
* बिहार के मध्यकालीन ऐतिहासिक स्रोतों में भू-राजस्व से सम्बन्धित दस्तावेज भी महत्वपूर्ण स्रोत हैं ।हैं। भू-राजस्व विभाग के संगठन, अधिकारियों के कार्य एवं अधिकार, आय एवं व्यय के आँकड़े एवं विभिन्‍न स्तरों पर अधिकारियों के द्वारा जमा किये गये दस्तावेज बहुत महत्वपूर्ण हैं ।हैं।
 
* ऐसे दस्तावेज रूपी पुस्तक में आइने अकबरी, दस्तुरूल आयाम-ए-सलातीन-ए-हिन्द एवं कैफियत-ए-रजवा जमींदारी, राजा-ए-सूबा बिहार भू-कर व्यवस्था के सन्दर्भ में एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं ।हैं।
 
* सूफी सन्तों के पत्रों से भी तत्कालीन बिहार की धार्मिक, सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन की झाँकी मिलती है ।है।
 
* अहमद सर्फूद्दीन माहिया मनेरी, अब्दुल कूटूस गंगोई इत्यादि के पत्रों से धार्मिक स्थिति के सन्दर्भ में जानकारी मिलती है ।है।
 
* मध्यकालीन बिहार के ऐतिहासिक स्रोतों में यूरोपीय यात्रियों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है ।है।
 
* यूरोपीय यात्रियों द्वारा वर्णित यात्रा वृतान्त में बिहार के सन्दर्भ में जानकारी मिलती है ।है।
 
* राल्फ फिच, एडवर्ड टेरी, मैनरीक, जॉन मार्शल, पीटर मुंडी, मनुची, ट्रैवरनियर, मनुक्‍की इत्यादि के यात्रा वृतान्त प्रमुख रूप से उल्लेखनीय हैं ।हैं।
 
* यूरोपीय यात्रा वृतान्त के अलावा विभिन्‍न विदेशी व्यापारिक कम्पनियों (डेनिस, फ्रेंच, इंगलिश) आदि फैक्ट्री रिकार्ड्‍स आदि बहुत महत्वपूर्ण हैं जो बिहार की तत्कालीन आर्थिक गतिविधियों की जानकारी देता है ।है।
 
* बिहार के मध्यकालीन ऐतिहासिक स्रोत पटना परिषद, कलकत्ता परिषद एवं फोर्ट विलियम के बीच पत्राचार से प्राप्त होते हैं ।हैं।
 
* बिहार के जमींदारों एवं दिल्ली सम्बन्ध से तत्कालीन गतिविधियों की जानकारी प्राप्त होती है ।है।
 
* डुमरॉव, दरभंगा, हथूआ एवं बेतिया के जमींदार घरानों के रिकार्डों से बाहर की गतिविधियों की जानकारी मिलती है ।है।
 
* मध्यकालीन बिहार के ऐतिहासिक स्रोत में पुरालेखों का भी महत्व है ।है। ये पुरालेख अरबी या फारसी में विशेषकर मस्जिद, कब्र या इमामबाड़ा आदि की दीवारों पर उत्कीर्ण हैं ।हैं।
 
* बिहार शरीफ एवं पटना में भी पुरालेख की जानकारी मिलती है ।है। विभिन्‍न शासकों द्वारा जारी अभिलेख, खड़गपुर के राजा के अभिलेख, शेरशाह का ममूआ अभिलेख, मुहम्मद-बिन-तुगलक का बेदीवन अभिलेख महत्वपूर्ण हैं ।हैं।
 
* मध्यकालीन बिहार के अध्ययन के लिये गैर-फारसी साहित्य एवं अन्य स्रोतों में मिथिला के क्षेत्र में लिखे साहित्य अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं ।हैं।
 
* संस्कृत के लेखकों में वर्तमान में शंकर मिश्र, चन्द्रशेखर, विद्यापति के प्रमुख ऐतिहासिक स्रोत हैं ।हैं।
 
* गैर-फारसी अभिलेख बिहार में सर्वाधिक उपलब्ध हैं ।हैं। बल्लाल सेन का सनोखर अभिलेख पूर्वी बिहार में लेखों के प्रसार का साक्षी है ।है। खरवार के अभिलेख से पता चलता है उसका पलामू क्षेत्र तक प्रभाव था ।था।
 
* वुइ सेन का बोधगया अभिलेख, बिहार शरीफ का पत्थर अभिलेख, फिरोज तुगलक का राजगृह अभिलेख, जैन अभिलेख इत्यादि में प्रचुर पुरातात्विक सामग्री उपलब्ध होती हैं ।हैं।
 
इस प्रकार मध्यकालीन बिहार के ऐतिहासिक स्रोत बिहार की जानकारी के अत्यन्त महत्वपूर्ण स्रोत हैं ।हैं।
 
==सन्दर्भ==