"भारतीय लिपियाँ": अवतरणों में अंतर

छो बॉट से अल्पविराम (,) की स्थिति ठीक की।
छो विराम चिह्न की स्थिति सुधारी।
पंक्ति 1:
[[भारत]] में बहुत सी [[भाषा]]एं तो हैं ही, उनके लिखने के लिये भी अलग-अलग [[लिपि]]याँ प्रयोग की जातीं हैं। किन्तु इन सभी लिपियों में बहुत ही साम्य है। ये सभी वर्णमालाएँ एक अत्यन्त तर्कपूर्ण ध्वन्यात्मक क्रम (phonetic order) में व्यवस्थित हैं ।हैं। यह क्रम इतना तर्कपूर्ण है कि [[अन्तरराष्ट्रीय ध्वन्यात्मक संघ]] (IPA) ने [[अन्तरराष्ट्रीय ध्वन्यात्मक लिपि]] के निर्माण के लिये मामूली परिवर्तनों के साथ इसी क्रम को अंगीकार कर लिया ।लिया।
 
== भारत में लिपि का उद्भव और विकास ==
पंक्ति 42:
वर्ण का अकेले उच्चारण करें तो उसमें व्यंजन ध्वनि `क्' के साथ स्वर ध्वनि
`अ' अवश्य होगी। जबकि स्वर ध्वनि `अ' का उच्चारण स्वतन्त्र रूप से किया जा
सकता है ।है। बोलते समय हम वाक्य या शब्द में आनेवाली ध्वनियों को श्रृंखला
रूप में उच्चारित करते हैं। इन उच्चरित ध्वनियों को यदि हम व्यंजन
व स्वर वर्णों की सहायता से क्रमबद्ध तरीके से लिखें तो हिन्दी शब्द `कमला'
पंक्ति 117:
कई: क् + अ + ई = क + ई
 
उपरोक्त में `की' व `कई' के अन्तर पर गौर कीजिए ।कीजिए।
`की' में `क' पर `ई' स्वर की मात्रा है जबकि `कई' में `क' और `ई' अक्षर
क्रमबद्ध रूप में हैं ।हैं। अतः, मात्राओं को अक्षर पर अंकित किया जाता है चाहे
अक्षर सरल हो या संयुक्त। हर मात्रा को लगाने के लिये विशिष्ट स्थान हैं,
जो कि अक्षर के चारों ओर हैं। जैसे:-
पंक्ति 131:
 
अक्षर के बायीँ ओर 'इ' की मात्रा आती है, इसी प्रकार से 'ए' व 'ऐ'
मात्राएँ ऊपर आती हैं, 'उ' व 'ऊ' नीचे तथा अन्य दायीं ओर ।ओर। यह तरीका,
हस्त-लेखन के लिये अति लाभप्रद है। परंतु टंकण की दृष्टि से कुछ कठिनाइयाँ
आती हैं, जिनका उल्लेख हम बाद में करेंगे। इतना करने से लिखना बहुत सरल व
पंक्ति 170:
ऊपर दिए गए नियमानुसार ही लगेगी। यानि `इ' की मात्रा नियमानुसार बायीं
ओर लगती है तो वह दोनो प्रकार के अक्षरों में बायीं ओर ही लगेगी, जैसे:-
क+इ=क+इ=कि ।कि। और यही नियम संयुक्ताक्षर पर भी लागू होता है, जिस कारणवश `इ'
की मात्रा संयुक्ताक्षर के बायीं ओर लिखी जाएगी। नीचे दिये संस्कृत शब्द
`तस्मिन' में संयुक्ताक्षर `स्मि' पर ध्यान दीजिये:-