"भाष्य": अवतरणों में अंतर
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[[संस्कृत साहित्य]] की परम्परा में उन ग्रन्थों को '''भाष्य''' (शाब्दिक अर्थ - व्याख्या के योग्य), कहते हैं जो दूसरे ग्रन्थों के अर्थ की वृहद व्याख्या या टीका प्रस्तुत करते हैं। मुख्य रूप से [[सूत्र]] ग्रन्थों पर भाष्य लिखे गये हैं।
'''सूत्रार्थो वर्ण्यते यत्र, पदै:
'''स्वपदानि च वर्ण्यन्ते, भाष्यं भाष्यविदो विदु: ॥'''
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[[पराशरपुराण]] में भाष्यकार के पाँच कार्य गिनाये गये हैं-
: पदच्छेदः पदार्थोक्तिर् विग्रहो
: आक्षेपेषु समाधानं व्याख्यानं पंचलक्षणम् ॥
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