"जानकीहरण (महाकाव्य)": अवतरणों में अंतर

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'''जानकीहरण''' [[श्रीलंका]] के महाकवि [[कुमारदास]] द्वारा रचित उच्च कोटि का [[महाकाव्य]] है।
 
== परिचय ==
सर्वप्रथम [[सिंहली भाषा]] में प्राप्त 'सन्नै' (यथानुक्रम रूपांतर) के आधार पर इसके प्रथम १४ सर्गो तथा १५वें के कुछ अंश का मूल [[संस्कृत]] रूप बनाकर प्रकाशित किया गया है, जिसमें अंगद द्वारा रावण की सभा में दैत्य तक की कथा आ जाती है। गवर्नमेंट ओरिएंटल मैनस्क्रिप्ट लाइब्रेरी, मद्रास में इस महाकाव्य की १० सर्गो की [[पांडुलिपि]] संस्कृत में है। किंतु यह लिपि अत्याधिक सदोष है। इसकी प्रामाणिकता के प्रति भी संदेह है तथा यह भी ज्ञात नहीं कि सिंहली 'सन्ने' से इसने कहाँ तक अपना रूप ग्रहण किया है। संभवत: इस महाकाव्य की रचना २५ सर्गो में हुई थी, और [[राम]] के राज्याभिषेक से कथा की समाप्ति हुई थी - यह अनुमान 'सन्ने' में उधृत सर्वात्य श्लोकों से लगाया जाता है। अत: इसका कथानक बहुत कुछ '[[भट्टिकाव्य]]' ('रावणवध') के जैसा कहा जा सकता है।
 
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[[यमक]] के प्रति अतिशय आग्रह होते हुए भी वैदर्भी रीति एवं प्रसाद गुण इस काव्य की अपनी विशिष्टताएँ हैं। [[वामन जयादित्य]] के व्याकरण ग्रंथ 'काशिका' (६३०-६५० ई.) में उल्लिखित कुछ विशिष्ट शब्दों का उन्हीं अर्थो में 'जानकीहरण' में प्रयोग देखकर कुमारदास का समय वामन और राजशेखर के बीच ईसा की आठवीं शताब्दी के अंत तथा नवीं के प्रारंभ में रखा जा सकता है।
 
== बाहऱी कड़ियाँ==
*[http://www.dli.ernet.in/cgi-bin/metainfo.cgi?&title1=Kumardas%20krit%20janaki%20haran%20mahakabya&author1=GEERISH&subject1=LITERATURE&year=2002&language1=hindi&pages=268&barcode=5990010099695&publisher1=ALLAHABAD%20UNIVERSITY&vendor1=NONE&scanningcentre1=iiit,%20allahabad&slocation1=NONE&sourcelib1=allahabad%20university&digitalrepublisher1=Digital%20Library%20of%20India&rights1=OUT_OF_COPYRIGHT&format1=TIFF&url=/rawdataupload/upload/0099/695%20target= '''जानकीहरण'''] (भारत का आंकिक पुस्तकालय)