"तराइन का युद्ध": अवतरणों में अंतर

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[[पृथ्वीराज चौहान]] द्वारा राजकुमारी संयोगिता का हरण करके इस प्रकार [[कन्नौज]] से ले जाना राजा जयचंद को बुरी तरह कचोट रहा था। उसके ह्रदय में अपमान के तीखे तीर से चुभ रहे थे। वह किसी भी कीमत पर पृथ्वीराज का विध्वंस चाहता था। भले ही उसे कुछ भी करना पड़े। विश्वसनीय सूत्रों से उसे पता चला कि [[मोहम्मद ग़ौरी]] पृथ्वीराज से अपनी पराजय का बदला लेना चाहता है। बस फिर क्या था जयचंद को मनो अपने मन की मुराद मिल गयी। उसने गौरी की सहायता करके पृथ्वीराज को समाप्त करने का मन बनाया। जयचंद अकेले पृथ्वीराज से युद्ध करने का सहस नहीं कर सकता था। उसने सोचा इस तरह पृथ्वीराज भी समाप्त हो जायेगा और [[दिल्ली]] का राज्य उसको पुरस्कार स्वरूप दे दिया जायेगा। राजा जयचंद की आँखों पर प्रतिशोध और स्वार्थ का ऐसा पर्दा पड़ा की वह अपने देश और जाति का स्वाभिमान भी त्याग बैठा था। राजा जयचंद के देशद्रोह का परिणाम यह हुआ की जो मुहम्मद गौरी तराइन के युद्ध में अपनी हार को भुला नहीं पाया था, वह फिर पृथ्वीराज का मुक़ाबला करने के षड़यंत्र करने लगा। राजा जयचंद ने दूत भेजकर गौरी को सैन्य सहायता देने का आश्वासन दिया। देशद्रोही जयचंद की सहायता पा कर गौरी तुरंत पृथ्वीराज से बदला लेने के लिए तैयार हो गया। जब पृथ्वीराज को ये सुचना मिली की गौरी एक बार फिर युद्ध की तैयारियों में जुटा हुआ तो उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। [[मुहम्मद गौरी]] की सेना से मुकाबल करने के लिए पृथ्वीराज के मित्र और राज कवि [[चंदबरदाई]] ने अनेक [[राजपूत]] राजाओ से सैन्य सहायता का अनुरोध किया परन्तु संयोगिता के हरण के कारण बहुत से राजपूत राजा पृथ्वीराज के विरोधी बन चुके थे वे [[कन्नौज]] नरेश के संकेत पर गौरी के पक्ष में युद्ध करने के लिए तैयार हो गए। 1192 ई० में एक बार फिर पृथ्वीराज और गौरी की सेना तराइन के क्षेत्र में युद्ध के लिए आमने सामने कड़ी थी। दोनों और से भीषण युद्ध शुरू हो गया। इस युद्ध में पृथ्वीराज की और से 3 लाख सैनिकों ने भाग लिया था जबकि गौरी के पास एक लाख बीस हजार सैनिक थे। गौरी की सेना की विशेष बात ये थी की उसके पास शक्तिशाली घुड़सवार दस्ता था। पृथ्वीराज ने बड़ी ही आक्रामकता से गौरी की सेना पर आकर्मण किया। उस समय भारतीय सेना में हाथी के द्वारा सैन्य प्रयोग किया जाता था। गौरी के घुड़सवारो ने आगे बढकर राजपूत सेना के हाथियों को घेर लिया और उनपर बाण वर्षा शुरू कर दी। घायल हाथी न तो आगे बाद पाए और न पीछे बल्कि उन्होंने घबरा कर अपनी ही सेना को रोंदना शुरु कर दिया। तराइन के द्वित्य युद्ध की सबसे बड़ी त्रासदी यह थी की देशद्रोही जयचंद के संकेत पर राजपूत सैनिक अपने राजपूत भाइयों को मार रहे थे। दूसरा पृथ्वीराज की सेना रात के समय आक्रमण नहीं करती थी (यही नियम महाभारत के युद्ध में भी था) लेकिन तुर्क सैनिक रात को भी आक्रमण करके मारकाट मचा रहे थे। परिणाम स्वरूप इस युद्ध में पृथ्वीराज की हार हुई और उसको तथा राज कवि चंदबरदाई को बंदी बना लिया गया। देशद्रोही जयचंद का इससे भी बुरा हाल हुआ, उसको मार कर कन्नौज पर अधिकार कर लिया गया। पृथ्वीराज की हार से गौरी का दिल्ली, कन्नौज, अजमेर, पंजाब और सम्पूर्ण भारतवर्ष पर अधिकार हो गया। भारत में इस्लामी राज्य स्थापित हो गया। अपने योग्य सेनापति [[कुतुबुद्दीन ऐबक]] को [[भारत]] का गवर्नर बना कर गौरी, पृथ्वीराज और चंदबरदाई को युद्ध बंदी के रूप में अपने गृह राज्य गौरी की ओर रवाना हो गया।<ref>भारत ज्ञानकोश, भाग-2, प्रकाशक : पापयुलर प्रकाशन मुंबई, पृष्ठ संख्या: 353, आई एस बी एन 81-7154-993-4 </ref>
 
== इन्हें भी देखें==
*[[मुहम्मद गौरी]]
*[[पृथ्वीराज चौहान]]
 
== सन्दर्भ ==
{{टिप्पणीसूची}}
== बाहरी कड़ियाँ==
*[http://www.rajasthaninfoline.com/rinfo/rajputh.htm#prc पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गोरी की कहानी]
[[श्रेणी:इतिहास]]