"जगन्नाथ मिश्र": अवतरणों में अंतर

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जगन्नाथ मिश्र एक [[भारत|भारतीय]] राजनेता है और [[बिहार]] के [[मुख्यमंत्री]] रह चुके है।
== व्यक्तिगत जीवन ==
अवश्य पढ़ें :
मित्रों आज आपको इतिहास की एक अद्भुत कहानी सुनाता हूँ, पढ़कर आप रोमांचित, गर्वित एवं दुखी इन तीनो भावनाओं से मिश्रित भाव में ना बह जाये तो कहना /
मुग़ल शाशक शाहजहाँ के काल में एक समय ऐसा आया कि संस्कृति और विज्ञान को लेकर हिन्दुओ और मुसलमानों में बहुत अधिक बहस हुआ करती थी / सो एक दिन शाहजहाँ ने अपने दरबार में हिन्दू और मुसलमानों के बीच शास्त्रार्थ शुरू करवाया और ये घोषणा कर दी कि इस शास्त्रार्थ में चाहे कितने भी दिन लग जाए लेकिन अंततः निर्णय पर जरुर पहुचना है कि हिन्दू सही है या मुसलमान / सो इस शास्त्रार्थ के अंत में जो जीतेगा उन्हें पुरष्कार दिया जायेगा और जो हारेगा उन्हें जेल कि सजा काटनी होगी /
तो मित्रो अब हिन्दुओ और मुसलमानों के बीच ये शास्त्रार्थ शुरू हुआ, और निरंतर कई दिनों तक चलता रहा लेकिन धीरे धीरे भारत के हर हिस्से से आये हुए पंडित, और विद्वान् इन मुसलमानों से परस्त होते रहे और उन्हें जेल की सजा के लिए कैद कर लिया गया /
फिर एक दिन शाहजहाँ ने घोषणा की कि, क्या कोई हिन्दू विद्वान् बचा है इस भारत जो इस शास्त्रार्थ को आगे बढ़ा सके ? या फिर मैं मुसलमानों को विजेता घोषित कर दूं ? एक दिन का समय दिया गया /
उस समय के कशी के महान विद्वान् "पंडित जगन्नाथ मिश्र" को ये खबर लगी तो वो शीघ्रातिशीघ्र शाहजहाँ के दरबार में पहुंचे और बादशाह को कहा " रुको अभी आप अपना अंतिम निर्णय नहीं दे, अभी मैं बाकी हूँ सो मैं इस शास्त्रार्थ को आगे बढ़ाऊंगा /
अब मित्रों शाहजहाँ के दरबार में पंडित जगन्नाथ मिश्र ने अकेले उन हजारो मुसलमानों से शास्त्रार्थ शुरू किया / फिर ये शास्त्रार्थ ३ दिन और ३ रात तक लगातार चलता रहा और मुसलमान एक एक कर के परास्त होते रहे और अंततः सरे मुसलमान परास्त हुए /
इस पूरे शास्त्रार्थ प्रकरण को झरोखे से शाहजहाँ की एक बेटी जिसका नाम "लवंगी" था वो भी देख रही थी और उसने पूरा शास्त्रार्थ देखा और सुना था /
तो शाहजहाँ ने जगन्नाथ मिश्र को विजयी घोषित कर दिया / और कहा कि पंडितराज आप महान है, मांगिये आप क्या पुरष्कार चाहते है, जो भी आपकी इच्छा हो बताइए /
तो जगन्नाथ मिश्र ने कहा कि "राजन सबसे पहले तो मेरे जितने भी हिन्दू भाइयो को आपने कैद किया है उन्हें मुक्त कर दे"
शाहजहाँ ने कहा "पंडितराज ये तो मांगने की बात ही नहीं है, आपके विजयी होते ही वो स्वतः ही आजाद हो गए है और कैद मुसलमानों को दी गई है /
आप कुछ और मांगे, अपने लिए /
तो जगन्नाथ मिश्र बोले "राजन, धन कि मुझे कामना नहीं है, और ना ही कोई राजसुख चाहिए" इतना कह कर जगन्नाथ मिश्र जी ने इधर उधर नजर दौड़ाई तो उनकी नजर शाहजहाँ की बेटी "लवंगी" पर पड़ी, सो वो फिर शाहजहाँ से मुखातिब हुए और कहा राजन देना ही है तो मुझे वो झो झरोखे में बैठी है वो लड़की दे दो /
सुनकर शाहजहाँ सन्न रह गया लेकिन वचनों में बंधा होने के कारन उसे अपनी बेटी लवंगी को देना पड़ा और फिर दरबार से जगन्नाथ मिश्र लवंगी के साथ काशी आ गए / जगन्नाथ जी ने उसे शास्त्रीय विधि से लवंगी को शुद्ध किया और उसके साथ रहने लगे /
अब मित्रो आप सभी को ये बताना है कि क्या इस घटना में जगन्नाथ जी मिश्र ने कोई भी गलत काम किया हिन्दुओ के लिए ?
लेकिन उस लवंगी के साथ रहने के कारण जगन्नाथ जी कि बहुत बदनामी होने लगी और उस समय के नालायक हिन्दुओ ने इस महान "पंडितराज" जगन्नाथ मिश्र को जात से बहार कर दिया, और इनका पूरी तरह सामजिक बहिष्कार किया गया /
समाज से परिष्कृत जगन्नाथ जी गंगा के घाट पर एक कुटिया बना कर लवंगी के साथ रहने लगे लेकिन वो मन ही मन बहुत दुखी रहते थे /
फिर एक दिन लोगों की बातों से दुःखी होकर वे लवंगी को लेकर काशी में दश्वाश्वमेध घाट की सीढ़ियों पर जा बैठे। उस घाट पर 52 सीढ़ियां हैं। उन्होंने लवंगी को गोद में बैठा लिया और गंगा की स्तुति में पद रचने लगे। ऐसा कहते हैं कि वे एक पद रचते थे और गंगा एक सीढ़ी ऊपर चढ़ आती थी। जब उन्होंने 52 वां पद रचा, तो गंगा ने ऊपर चढ़कर उन्हें अपनी गोद में समेट लिया। जब वे बीच जलधार में पहुंच गये, तो उन्होंने निवेदन किया - मां, जब गोद में ले ही लिया है, तो फिर इससे अलग मत करना। अब इस संसार रूपी कीचड़ में लोटने के लिए मेरा त्याग मत करो। यह प्रार्थना करते हुए एक दिव्य प्रकाश के बीच उनकी देह लवंगी सहित गंगा में विसर्जित हो गयी।
गंगा की स्तुति में रचे गये उनके ये पद ‘गंगा लहरी’ में संकलित हैं। ऐसा कहते हैं कि कांसे के पात्र में गंगाजल भरकर यदि गंगालहरी का मनपूर्वक पाठ किया जाए, तो आज भी उस जल में लहरें उठने लगती हैं। इसके अतिरिक्त ग्रंथ भामिनी विलास, सुधा लहरी, अमृत लहरी, पीयूष लहरी, करुणा लहरी आदि उनकी अन्य प्रसिद्ध कृतियां हैं।
मित्रों ये कहानी मैंने अपने गुरुदेव के मुह से सुनी है, अब आप सबके विचार आमंत्रित है इन महान पंडितराज "जगन्नाथ जी मिश्र" के लिए /
ऐसे महान तपस्वी इन्सान को छद्म हिंदुत्व का दिखावा करने वाले हिन्दुओ ने क्यों बहिष्कार किया ? क्या ये सही था ?
- आज का चाणक्य
 
== राजनीतिक जीवन ==
== सन्दर्भ ==