"राजबहादुर 'विकल'": अवतरणों में अंतर

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== संक्षिप्त परिचय ==
'विकल' जी का जन्म 2 जुलाई सन 1924 को रायपुर गाँव में हुआ था। पिता सुन्दर लाल व माता सरस्वती देवी की तीसरी सन्तान सही मायनों में सरस्वती पुत्र साबित हुई। 11 वर्ष की अल्प आयु में पिता का साया उनके सिर से उठ गया। कुछ माह बाद ही माँ सरस्वती देवी भी उन्हें रोता बिलखता छोड़ इस संसार से विदा हो गयीं। दो भाई भी उनका साथ छोड़कर चल बसे। पेट की भूख मिटाने के लिए शहर आकर अखबार बांटने का काम शुरु किया। कुछ दिन उन्होंने गान्धी पुस्तकालय में नौकरी भी की। हिन्दी, उर्दू, संस्कृत, बांग्ला व अंग्रेजी भाषाओं के ज्ञाता विकल जी ने हिन्दी में स्नातकोत्तर व साहित्यरत्न की उपाधियाँ प्राप्त कीं। बाद में शिक्षक बनकर शिक्षार्थियों के कल्याण के लिए उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन लगा दिया जिसके सम्मान स्वरूप उन्हें '''शिक्षक संघर्ष सेनानी''' की उपाधि से नवाजा गया। काकोरी शहीद इण्टर कालेज जलालाबाद (जिला शाहजहाँपुर) में काफी समय तक अध्यापन-कार्य करने के बाद सेवानिवृत्त होकर वे [[शाहजहाँपुर]] में अपने बेटे के साथ रहने लगे थे। [[कवि सम्मेलन]] से अलग होने के बाद भी वे काव्य-गोष्ठियों में बराबर आते-जाते थे। 15 अक्टूबर 2009<ref>[http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttarpradesh/4_1_6819549.html]</ref> को दोपहर लगभग डेढ़ बजे [[बरेली]] के एक निजी अस्पताल में उनका निधन हो गया ।गया।
 
== काव्य-चेतना के स्वर ==
पंक्ति 14:
विश्व के संताप संजोये गये हैं;<br />
पाँव के बल मत चलो अपमान होगा,<br />
सर शहीदों के यहाँ बोये गये हैं ।हैं।"
 
रहस्य-भावना को रेखांकित करतीं उनकी ये पंक्तियाँ भी द्रष्टव्य हैं-