"रॉबर्ट क्लाइव": अवतरणों में अंतर

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दिसंबर में क्लाइव हुगली पहुंचा। उसकी सेना की संख्या लगभग एक हजार थी। वह नदी की ओर से कलकत्ते की तरफ बढ़ा और २ जनवरी, १७५७ को उसपर अपना अधिकार कर लिया। सिराजुद्दौला को जब इसकी खबर मिली तो उसने कलकत्ते की ओर बढ़ने का प्रयत्न किया मगर असफल रहा और संधि करने पर विवश हुआ। इस संधि से अंग्रेजों को अधिक लाभ हुआ। सिराजुद्दौला ने कलकत्ते की लूटी हुई दौलत वापस करने का वादा किया; कलकत्ता को सुरक्षित करने की इजाजत दी और वाट को मुर्शिदाबाद में अंग्रेजी प्रतिनिधि के रूप में रखना स्वीकार किया।
 
इसी बीच यूरोप में सप्तवर्षीय युद्ध आरंभ हो गया। इसका प्रभाव भारत की राजनीति पर भी पड़ा ।पड़ा। यहां भी अंग्रेजों और फ्रांसीसियों में लड़ाई छिड़ गई। बंगाल में चंद्रनगर पर फ्रांसीसियों का प्रभाव रहा।
[[चित्र:Clive Defence of Arcot. Illustration for The New Popular Educator (Cassell, 1891)..jpg|thumb|Clive Defence of Arcot. Illustration for The New Popular Educator (Cassell, 1891).]]
अंग्रेजों ने वहां अपना समुद्री बेड़ा भेजने की तैयारी आरंभ कर दी। १४ मार्च, १७५७ को चंद्रनगर पर आक्रमण हुआ और एक ही दिन के बाद फ्रांसीसियों ने हथियार डाल दिए। वाटसन ने नदी की ओर से और क्लाइव ने दूसरी ओर से फ्रांसीसियों पर आक्रमण किया। सिराजुद्दौला इस लड़ाई में खुलकर भाग न ले सका। अब्दाली के आक्रमण के कारण वह फ्रांसीसियों की सहायता और अंग्रेजों से लड़ाई करने में संभवत: समर्थ न था।
 
चंद्रनगर की लड़ाई के बाद क्लाइव को ज्ञात हुआ कि सिराजुद्दौला से उसके अपने ही आदमी असंतुष्ट हैं; और उनमें उसका सेनापति मीरजाफर प्रमुख हैं। क्लाइव ने इससे लाभ उठाने का निश्चय किया। फलस्वरूप मीरजाफर और अंग्रेजों के बीच एक गुप्त समझौता हुआ। जिसके अनुसार कलाइव ने पीरजाफर को बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी दिला देने का वादा किया। इसके लिये मीर जाफर को कलकत्ता में हुए कंपनी की हानि और सैनिक व्यय के लिये १० लाख पाउंड, कलकत्ते के अंग्रेज निवासियों को २ लाख पाउंड और अरमीनियन व्यापारियों को ७० हजार पाउंड देने की बात ठहरी। अमीचंद ने, जिसने अंग्रेजों और मीरजाफर के बीच समझौता कराया था, नवाब से उसके खजाने का पँाच प्रतिशत कमीशन माँगा। और इस बात का उललेख संधिपत्र में किए जाने का आग्रह किया। फलत: क्लाइव ने दो संधिपत्र तैयार कराए। एक असली दूसरा नकली। नकली संधिपत्र में अमीचंद की शर्ते लिख दी गई थीं। नकलीवाले संधिपत्र पर अंग्रेज गवर्नर का हस्ताक्षर बनाकर उसे दिखाया गया। मीरजाफर ने लड़ाई में तटस्थ रहने का वादा किया ।किया। यह निश्चय हुआ कि लड़ाई के मैदान में मौजूद रहते हुए भी वह अलग रहेगा।
 
अंग्रेजी सेना ने क्लनाइव के नेतृत्व में सिराजुद्दौला के खिलाफ कार्रवाई की और परिणामस्वरूप प्लासी की लड़ाई हुई। प्लासी में सिराजुद्दौला की हार हुई और अंग्रेजों ने मीरजाफर को बंगाल को नवाब बना दिया। इस प्रकार क्लाइव के कारण अंग्रेज बंगाल के मालिक बन गए। ईस्ट इंडिया कंपनी को १५ करोड़ पौंड मिले। क्लाइव को उसमें से २ लाख ३४ हजार पौंड दिया गया और मीरजाफर ने भी उसे तीस हजार पौंड सालाना की जागीर दूसरे रूप से दी।
 
१७५९ में राजकुमार अली गौहर ने, जो आगे चलकर शाहआलम के नाम से शासक हुआ, दिल्ली से भागकर अवध में शरण ली ।ली। वह अपनी शक्ति बढ़ाने के लिये बिहार और बंगाल पर भी कब्जा करना चाहता था। उसने पटना को घेर लिया। नवाब के प्रतिनिधि रामनारायण ने उसका मुकाबला तब तक किया जब तक कलकत्ता से अंग्रेजों की सहायता नहीं पहुँची। नवाब ने चौबीस परगना की भूमि, जो इस सहायता के लिये रख छोड़ी गई थी, क्लाइव को दे दी। यह रकम ३० हजार पौंड की थी जो कंपनी किराए के रूप में अदा किया करती थी।
 
१७५९ में डच लोगों ने मीरजाफर के लड़के से साजिश कर अंग्रेजों को बंगाल से निकालने की योजना बनाई और फलस्वरूप उन्होंने सात जहाज नागापट्टम से रवाना किए ; मगर जब वे हुगली के पास पहुँचे तो नवाब की ओर से उन्हें अपनी सेना उतारने की मनाही मिली। फलत: डच और अंग्रेजों में झड़प हुई, जिसमें डचों को जान और माल का नुकसान हुआ।
 
१७६० ई. में क्लाइव इंग्लैंड वापस लौटा ।लौटा। उस समय क्लाइव के पास ३० लाख पौंड सालाना की रकम मिलने की व्यवस्था थी। इंग्लैंड पहुँचने पर उसे बैरन ऑव प्लासी की उपाधि मिली। उसने बड़ी जायदाद खरीदी और अपने मित्रों को पार्लमेंट का सदस्य बनवाया।
 
१७६४ में फिर क्लाइव को बंगाल का गवर्नर बनाकर भेजा गया और मई, १७६५ में क्लाइव दुबारा कलकत्ता आया। इस समय उसके सामने दो समस्याएँ थीं। एक राजनीतिक और दूसरी प्रशासकीय। राजनीतिक समस्या मुगल बादशाहों, अवध राज्य तथा बंगाल के नवाव से संबंध रखती थी ।थी। प्रशासकीय समस्या कं पनी के नौकरों की मुनाफाखोरी की थी।
 
क्लाइव को भारत आने पर ज्ञात हुआ कि पुराने गवर्नर वाँसीटार्ट ने अवध का राज्य मुगल बादशाह को वापस दे देने का वादा किया है। क्लाइव ने अवध के नवाब शुजाउद्दौला के पास इस आशय क ा प्रस्ताव भेजा कि यदि वह पचास लाख रूपए कंपनी को देना स्वीकार करे तो इलाहाबाद प्रांत को छोड़कर उसकी रियासत उसे वापस कर दी जाएगी। तदनुसार, इलाहाबाद मुगल बादशाह को देकर उसके बदले क्लाइव ने बंगाल की दीवानी माँगी ।माँगी। मुगल बादशाह ने फरमान जारीकर बंगाल के नवाब के अधिकार को कम कर दिया और कंपनी को वह अधिकार दे दिया।
 
क्लाइव के भारत आने के पहले कंपनी के डाइरेक्टरों ने एक आदेश जारीकर कंपनी के नौकरों को भेंट लेने की मनाही कर दी थी। क्लाइव ने बंगाल पहुंचते ही समस्त सिविल और फौजी अफसरों से एक दस्तावेज पर हस्ताक्षर कराए, जिससे भेंट लेना नाजायज हो गया। बंगाल पहुंच कर क्लाइव ने देखा कि बहुत से पदों पर नए लोग काम कर रहे हैं और वे नाजायज मुनाफा उठा रहे हैं। क्लाइव ने व्यापार की नीति में परिवर्तन किया और उससे जो लाभ हुआ उसे कंपनी के नौकरों में बाँट दिया। उसकी नीति का जिसने विरोध किया उसे उसने हटा दिया और अन्य लोगों को मद्रास से लाकर उनकी जगह रखा।