"दिक्-काल": अवतरणों में अंतर

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बोल्याई, लोबातचेवस्की, रीमान इत्यादि गणितज्ञों ने यह सिद्ध किया कि यूक्लिडीय ज्यामिति के कुछ स्वयंतथ्यों में उचित परिवर्तन करने पर अयूक्लिडीय ज्यामितियों का निर्माण हो सकता है। यद्यपि अयूक्लिडीय ज्यामितियों के अनेक सिद्धांत यूक्लिडीय ज्यामिति के सिद्धांतों से भिन्न होते हैं, तथापि वे अयोग्य नहीं होते हैं। विशेषत: रीमान के अयूक्लिडीय ज्यामिति से यह स्पष्ट हुआ कि यूक्लिडीय ज्यामिति ही केवल मौलिक नहीं है। यद्यपि अयूक्लिडीय ज्यामितियाँ कल्पना करने में कठिन होती हैं, तथापि तर्कसम्मत होने से उनके फल अत्यंत रोचक तथा उपयुक्त होते हैं। इनमें तीन से अधिक विमितियों के दिक्‌ की (जिसे हम "अति दिक्‌' कह सकते हैं) जो कल्पना होती है, उस दिक्‌ की वक्रता की कल्पना विशेष रूप से उपयुक्त हुई।
 
== भारतीय धर्म-दर्शन में दिक्-काल की अवधारणा ==
क्व भूतं क्व भविष्यद् वा वर्तमानमपि क्व वा | क्व देशः क्व च वा नित्यं स्वमहिम्नि स्थितस्य मे ||१९- ३||<ref>अष्टावक्र गीता, भाग १९, श्लोक ३</ref>
:अष्टावक्र गीता राजा जनक और इनके गुरु अष्टावक्र के बीच हुए संवाद है, जिसके परिणाम स्वरूप राजा जनक को परमज्ञान की प्राप्ति हुई। भाग१९ में परमज्ञान प्राप्ति के बाद अपने अनुभव व्यक्त करते हुए भौतिक जगत की विभिन्न अवधारणाओं से मुक्ति की घोषणा करते हुए, दिक् व काल को एक ही साथ वर्णित किया हैं।
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== बाहरी कड़ियाँ ==
* [[Stanford Encyclopedia of Philosophy]]: "[http://plato.stanford.edu/entries/spacetime-iframes/ Space and Time: Inertial Frames]" by Robert DiSalle.
== सन्दर्भ ==
{{टिप्पणीसूची}}