"द्विपक्षीय राजनय": अवतरणों में अंतर
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राजनय का सामान्य, सरल तथा सीध मार्ग यह है कि विदेश विभाग तथा इनके द्वारा नियुक्त [[राजदूत]] समस्याओं के समाधान आपस में बातचीत द्वारा कर लेते हैं। इस प्रकार राज्यों के सम्बन्ध सुचारु रूप से चलते रहते हैं। राज्यों के मध्य पारस्परिक व्यक्तिगत सम्पर्क दोनों के मध्य सम्बन्धों को मधुर बनाता है।
== परिचय ==
राज्यों के मध्य राजनयिक सम्बन्ध अति प्राचीन काल से चले आ रहे हैं। ये उतने ही प्राचीन हैं जितने की राज्य। प्राचीन काल में राज्यों के मध्य मतभेद होने पर दोनों देशों के प्रतिनिधियों द्वारा समस्या का हल ढूंढा जाता था और मतभेदों को समाप्त करने का प्रयास किया जाता था। आधुनिक युग में भी ऐसा ही किया जाता है और इसे द्विपक्षीय राजनय का नाम दिया गया है।
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द्विपक्षीय राजनय का उपभोग कभी-कभी प्राचार के लिए भी किया जाता है। ऐसी स्थिति में यह एक महत्वाकांक्षी नेता के हाथों में विजय प्राप्त का साधन बन जाता है न कि न्यायोचित समझौते का आधार। प्रायः यह देखा गया है कि इस प्रकार की वार्ता में न तो निर्णय पूरे लिये जाते हैं और जो निर्णय लिये जाते हैं उन्हें समय की कमी के कारण उनको अधीनस्थ अधिकारियों पर छोड़ दिया जाता है। रूस ओर अमरीका के मधुर सम्बन्ध न बन सकने का यही एक कारण है।
== लाभ ==
द्विपक्षीय राजनय द्वारा कभी-कभी व्यक्तिगत सम्पर्क से दो देशों के मध्य मैत्री सम्बन्ध दृढ़ हो जाते हैं। इस प्रकार के सम्मेलन द्वारा प्रत्यक्ष तथा शीघ्र निर्णय लिए जा सकते हैं जो उस समय की समस्या के समाधान के लिए उचित हो। यदि निर्णय नहीं भी लिये जाते तो राजनयिक प्रत्यनों से समझौते का रूप ले सकता है। द्विपक्षीय सम्मेलन अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं को भली-भांति समझने, अपने व अन्य के दृष्टिकोण को समझने का अच्छा साधन है। इसके माध्यम से लोकप्रियता भी प्राप्त की जा सकती है।
== दोष ==
द्विपक्षीय राजनय का एक दोष यह है कि इसके द्वारा निर्णय जल्दी लिये जाते हैं जिनमें पूर्ण व परिपक्व विचारों का अभाव होता है। हर पक्ष अपनी सुविधानुसार इन निर्णयों का अलग-अलग मतलब लगाता है। इनके निर्णय को लागू करने में भी टालमटोल की जाती है। आज के किसी भी अति व्यस्त राज्याध्यक्ष के पास इतना समय नहीं होता कि वह जटिल समस्याओं को समझ सके। इसका परिणाम यह निकलता है कि इस तरह के सम्मेलन असफल रहते हैं। नेहरू-लियाकत पैक्ट एक ऐसा ही सम्मेलन था जिसके परिणामस्वरूप भारत-पाक के सम्बन्ध मधुर होने के बजाय बिगड़े। 1960 के पेरिस सम्मेलन में भी रूस और अमरीका के सम्बन्ध मैत्रीपूर्ण होने के स्थान पर खराब हुये।
[[द्वितीय महायुद्ध]] के बाद द्विपक्षीय राजनय का आज के युग में महत्व कम होता जा रहा है। अब इसका स्थान [[बहुपक्षीय राजनय]] (Multilateral Diplomacy) ने ले लिया है।
== इन्हें भी देखें==
*[[बहुपक्षीय राजनय]]
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