"विराम (चिन्ह)": अवतरणों में अंतर

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काशिकाकार ने उपर्युक्त विरामों से आगे बढ़कर भी विचार किया है। उनका कहना है कि शब्द की हर दो ध्वनियों के बीच थोड़ा सा विराम होता है अर्थात् हर दो व्यंजनों या स्वरव्यंजन के बीच। इसे वे आधी मात्रा के बराबर मानते हैं। आधी मात्रा आज की दृष्टि से उदासीन स्वर या ह्रस्वार्ध स्वर के बराबर मानी जा सकती है।
 
भारत में लेखन के विरामचिह्नों का प्रयोग काफी प्राचीन काल से मिलता है। [[सम्राट अशोक|अशोक]] के [[अभिलेख|अभिलेखों]] में - "," तथा "।" प्रयोग हुआ है। इसी प्रकार पूर्व प्रदेशीय [[चालुक्य वंश|चालुक्य]] अभिलेखों में "।" का प्रयोग मिलता है ।है। भारत में विरामचिह्नों का व्यवस्थित एवं नियमित प्रयोग यूरोपीय संपर्क के बाद [[प्रेस]] के प्रचार के साथ बढ़ा।
 
== यूरोप में विरामचिन्ह ==