"विवर्तन": अवतरणों में अंतर

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जब [[प्रकाश]] या [[ध्वनि]] तरंगे किसी अवरोध से टकराती हैं, तो वे अवरोध के किनारों पर मुड जाती हैं और अवरोधक के की ज्यामितिय छाया में प्रवेश कर जती हैं। तरंगो के इस प्रकार मुड़ने की घटना को '''विवर्तन''' (Diffraction) कहते हैं ।हैं। ऐसा पाया गया है कि लघु आकार के अवरोधों से टकराने के बाद तंगें मुड़ जातीं हैं तथा जब लघु आकार के छिद्रों (openings) से होकर तरंग गुजरती है तो यह फैल जाती है। सभी प्रकार की तरंगों से विवर्तन होता है (ध्वनि, जल तरंग, विद्युतचुम्बकीय तरंग आदि)।
 
== परिचय एवं इतिहास ==
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=== विवर्तन ग्रेटिंग (Diffraction Grating) ===
दो समीपवर्ती रेखाछिद्रों का विवर्तन पैटर्न एक रेखाछिद्र के विवर्तन पैटर्न से कुछ भिन्न होता है। एक रेखाछिद्र के पैटर्न में जहाँ जहाँ उच्चिष्ठ मिलता है, दो रेखाछिद्र के पैटर्न में उन्हीं स्थानों पर कई धारियाँ बनती हैं, जो पहले के बैंडों की अपेक्षा अधिक पतली और तीक्ष्ण होती हैं। ज्यों-ज्यों रेखाछिद्रों की संख्या बढ़ती जाती है, द्वितीयक उच्चिष्ठ की धारियाँ क्षीण होती जाती हैं और मुख्य उच्चिष्ठ की धारियाँ अत्यंत तीक्ष्ण होती जाती हैं ।हैं। रेखाछिद्रों की चौड़ाई तथा उनकी पारस्परिक दूरी भी इन धारियों की तीक्ष्णता को बहुत प्रभावित करती है। शीशे की समतल पट्टी पर हीरे की कनी से रेखाएँ खींच दी जाएँ, तो प्रत्येक दो रेखा के बीच का पारदर्शक स्थान रेखाछिद्र का काम करता है। ऐसे ही रेखाछिद्रों के समूह को '''ग्रेंटिंग''' कहते हैं। ग्रेटिंग का आविष्कार फ्राउनहोफर ने किया था। उन्होंने दो [[स्क्रू]] के ऊपर महीन तार लपेटकर ग्रेटिंग बनाया था। प्रत्येक दो तारों के बीच का स्थान रेखाछिद्र का काम करता है। आगे चलकर उन्होंने काँच के प्लेट पर रेखाएँ खींचकर ग्रेटिंग बनाया। रोलैंड ने 1882 ई. में ग्रेटिंग की रेखाएँ बनानेवाली मशीन बनाई। आजकल अच्छी मशीनों द्वारा एक इंच पर 30,000 या 40,000 तक रेखाएँ खींची जाती हैं।
 
यदि किसी प्रकाशस्रोत के सम्मुख लेंस रखकर, एकवर्णी समांतर किरणों को एक ग्रेटिंग पर डाला जाए, तो इससे प्राप्त विवर्तन में एक दूसरी से दूर दूर कई तीक्ष्ण रेखाएँ पाई जाती हैं। ये रेखाएँ वास्तव में रेखाछिद्र स्रोत का विवर्तन बिंब होती हैं। बीच की सबसे तीव्र रेखा को '''शून्य कोटि''' (Zero order) की रेखा कहते हैं। इसके दोनों ओर पहली, दूसरी, तीसरी आदि रेखाएँ क्रमश: प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय कोटि की रेखाएँ कहलाती हैं। यदि ग्रेटिंग पर श्वेत प्रकाश डाला जाए, तो शून्य कोटि की रेखा श्वेत होती है, किंतु अन्य कोटि की रेखाओं स्थान पर स्पेक्ट्रम प्राप्त होते हैं। इन्हें क्रमश: प्रथम, द्वितीय, तृतीय आदि कोटि के स्पेक्ट्रम कहा जाता है। यदि ग्रेटिंग से विवर्तित होनेवाले प्रकाश का तरंगदैर्ध्य '''l''', आपतित तरंगाग्र का आपतन कोण '''i''' और विवर्तन कोण '''q''' हो तथा किन्हीं दो समीपस्थ रेखाछिद्रों के मध्यबिंदुओं की पारस्परिक दूरी '''d''' हो, तो
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== किरीट या कोरोना (Corona) ==
बहुधा आकाश में बादलों की उपस्थिति के समय [[सूर्य]] अथवा [[चंद्रमा]] के चारों ओर एक चमकीला घेरा दिखाई पड़ता है। इसे किरीट कहते हैं ।हैं। पानी की नन्हीं बूँदों द्वारा प्रकाश का विवर्तन होने से ही किरीट बनते हैं। स्पष्ट किरीट के लिए नन्हीं बूँदों का समाकार होना आवश्यक होता है। ये बूँदे जितनी ही अधिक छोटी होती हैं किरीट का व्यास उतना ही बड़ा होता है। टी यंग (T. Young) ने किरीटों का व्यास नापकर जलकणों के व्यास की गणना करने के लिए यंत्र बनाया था, जिसे '''तंतुमापी''' (Eriometer) कहते हैं।
 
== विवर्तन और व्यतिकरण में भेद ==