"वृन्द": अवतरणों में अंतर
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इनके लिखे दोहे “वृन्द विनोद सतसई” में संकलित हैं। वृन्द के “बारहमासा” में बारहों महीनों का सुन्दर वर्णन है। “भाव पंचासिका” में शृंगार के विभिन्न भावों के अनुसार सरस छंद लिखे हैं। “शृंगार शिक्षा” में [[नायिका भेद]] के आधार पर आभूषण और शृंगार के साथ नायिकाओं का चित्रण है। नयन पचीसी में नेत्रों के महत्व का चित्रण है। इस रचना में [[दोहा]], [[सवैया]] और [[घनाक्षरी]] [[छन्द|छन्दों]] का प्रयोग हुआ है। पवन पचीसी में ऋतु वर्णन है।
हिन्दी में वृन्द के समान सुन्दर दोहे बहुत कम कवियों ने लिखे हैं। उनके दोहों का प्रचार शहरों से लेकर गाँवों तक में है। पवन पचीसी में "षड्ऋतु वर्णन" के अन्तर्गत वृन्द ने पवन के वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर ऋतुओं के स्वरूप और प्रभाव का वर्णन किया है। वृन्द की रचनाएँ रीति परम्परा की हैं। उनकी “नयन पचीसी” युगीन परम्परा से जुड़ी कृति हैं। इसमे दोहा, सवैया और घनाक्षरी छंदों का प्रयोग हुआ है। इन छंदो का प्रभाव पाठकों पर पड़ता है। “यमक सतसई” मे विविध प्रं कार से यमक अलंकार का स्वरूप स्पष्ट किया गया
वृन्द के नीति के दोहे जन साधारण में बहुत प्रसिद्ध हैं। इन दोहों में लोक-व्यवहार के अनेक अनुकरणीय सिद्धांत हैं। वृन्द कवि की रचनाएँ रीतिबद्ध परम्परा में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। इन्होंने सरल, सरस और विदग्ध सभी प्रकार की काव्य रचनाएँ की हैं।
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